सर्वाइकल सपोंदेलोसिस (Cervical Spondelysis)

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सर्वाइकल सपोंदेलोसिस (Cervical Spondelysis)

cervical

सर्वाइकल सपोंदेलोसिस (Cervical Spondelysis)

गर्दन में दर्द होना एक आम समस्‍या बन गई है और अब तो इस बीमारी का उम्र से भी कुछ लेना देना नहीं रहा। इधर कुछ सालों मे अगर हम गौर करें तो सरवाईकल स्पान्डयलोसिस के रोगियों मे बेतहाशा वृद्दि हुयी है। इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे लम्बे समय तक डेस्क वर्क या पढ़ाई-लिखाई करना, कठोर तकिए का इस्तेमाल करना, टेढे-मेढे होकर सोना, अथवा लेटकर टीवी देखना आदि।

लक्षण और कारण रोग के लक्षण कोई आवशयक नहीं कि सिर्फ़ गर्दन की दर्द और जकडन को ही लेकर आयें। विभिन्न रोगियों मे अलग -2 तरह के लक्षण देखे जाते हैं:

गर्दन की दर्द और जकडन, गर्दन स्थिर रहना, बहुत कम या न घूमना।

  • चक्कर आना ।
  • कन्धे का दर्द, कन्धे की जकडन और बाँह की नस का दर्द ।
  •  ऊगलियों और हथेलियों का सुन्नपन
  •  गर्दन की दर्द के प्रमुख कारण:

वजह अनेक लेकिन सार एक, अनियमित और अनियंत्रित लाइफ़ स्टाईल। वजह आप स्वंय खोजें:

  • टेढे-मेढे होकर सोना, हमेशा लचक्दार बिछौनों पर सोना, आरामदेह सोफ़ों तथा गद्देदार कुर्सी पर घटो बैठे रहना, सोते समय ऊँचा सिरहाना (तकिया) रखना, लेट कर टी वी देखना ।
  • गलत ढंग से वाहन चलाना
  • बहुत झुक कर बैठ कर पढना, लेटकर पढना ।
  • घटों भर सिलाई, बुनाई, व कशीदा करने वाले लोगों।
  • गलत ढंग से और शारीरिक शक्ति से अधिक बोझ उठाना
  • व्यायाम न करना और चिंताग्रस्त जीवन जीना।
  • संतुलित भोजन न लेना, भोजन मे विटामिन डी की कमी रहना, अधिक मात्रा मे चीनी और मीठाईयाँ खाना।
  • गठिया से पीडित रोगी
  • घंटों कम्पयूटर के सामने बैठना और ब्लागिगं करना

                                                            

कुछ उपाय

1 गर्दन को घ़ड़ी की दिशा में हल्के-हल्के पाँच या दस बार घुमाएँ, फिर यही क्रिया विपरीत दिशा में करें। अपनी ठुड्डी को सीने की तरफ़ झुकायें, रुकें,तत्पश्चात सिर को पीछे ले जायें। अपने सिर को बायें तरफ़ के कान की तरफ़ मोडें, रुकें और तत्पश्चात मध्य मे लायें। यही क्रम बायें तरफ़ भी करें।

2 गरदन में दर्द होने पर किसी भी तेल से हलके-हलके मालिश करें। मालिश हमेशा ऊपर से नीचे की ओर ही करें, यानी गरदन से कंधे की ओर करें। मालिश के बाद गर्म पानी की थैली से या कांच की बोतल में गर्म पानी भरकर सिकाई करें। सिकाई के बाद तुरंत खुली हवा में न जाएँ।

3 नर्म व कम ऊँचाई वाला तकिया प्रयोग करें। आपका बिस्तर समतल हो, झूलेनुमा न हो।

4 तीव्र दर्द के हालात मे गर्म पानी में नमक डाल कर सिकाई करें। यह क्रम दिन मे कम 3-4 बार अवश्य करें। दर्द को जल्द आराम देने मे यह काफ़ी लाभदायक है।

5 यदि फिर भी दर्द से छुटकारा न मिले तो डॉक्टर से जाँच कराएँ। बगैर डॉक्टरी सलाह के कोई भी दर्द निवारक दवा न लें। फिजियोथेरेपिस्ट के बताए अनुसार ही गर्दन का व्यायाम करें।

परहेज और आहार

लेने योग्य आहार

  • सुबह लहसुन की 2-3 कलियाँ खाने से और लहसुन का तेल लगाने से गर्दन के दर्द में शीघ्र छुटकारा मिल सकता है।
  • सेब, लहसुन, अदरक और हल्दी ये सभी सूजन कम करते हैं।
  • ओमेगा 3 और विटामिन ई से भरे-पूरे आहार जैसे कि तैलीय बीज, मेवे और मछली भी जोड़ों की सूजन से राहत देते हैं।
  • दिन में तीन बार चट्टानी नमक डला नीबू का रस पियें।
  • नियमित आहार में चावल के स्थान पर गेहूँ लें और कड़वी सब्जियाँ अधिक शामिल करें जैसे करेला और सहजन।
  • ताज़ी हरी और पत्तेदार सब्जियाँ लेनी चाहिए। भोजन में सलाद अवश्य होना चाहिए। पालक, गाजर, और चुकंदर का रस भी लेना चाहिए।
  • इनसे परहेज करे
  • तले आहार, मसालेदार, तैलीय, माँस की अधिकता, और रिफाइंड आहार जैसे कि मिठाइयाँ, गोलियाँ, ब्रेड और मैदे की बनी अन्य वस्तुएँ जोड़ के रोगों के लिए दोषी हैं।
  • एसिड उत्पन्न करने वाले आहारों के साथ रेड मीट, खट्टी सब्जियाँ और सफ़ेद आलू भी. आपके शरीर में इकठ्ठा एसिड जोड़ों के फूलने को बढ़ावा दे सकता है और सर्वाइकल स्पोंडीलोसिस को अधिक बढ़ा सकता है।                                                                                                                                                        जीवक आयुर्वेदा की रस रसायन चिकित्सा एवं पंचकर्म थेरेपी

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वसंत ऋतु में कैसी हो आपकी ऋतुचर्या

basantबसंत ऋतु में कैसा हो आपका खान पान बता रहे हैं बता रहे हैं जीवक आयुर्वेदा के निदेशक टी के श्रीवास्तव 

वसंत ऋतु में आयुर्वेद ने खान-पान में संयम की बात कहकर व्यक्ति एवं समाज की नीरोगता का ध्यान रखा है। इस ऋतु में लाई, भूने हुए चने, ताजी हल्दी, ताजी मूली, अदरक, पुरानी जौ, पुराने गेहूँ की चीजें खाने के लिए कहा गया है। इसके अलावा मूँग बनाकर खाना भी उत्तम है। नागरमोथ अथवा सोंठ डालकर उबाला हुआ पानी पीने से कफ का नाश होता है। मन को प्रसन्न करें एवं हृदय के लिए हितकारी हों ऐसे आसव, अरिष्ट जैसे कि मध्वारिष्ट, द्राक्षारिष्ट, गन्ने का रस, सिरका आदि पीना लाभदायक है। वसंत ऋतु में आने वाला होली का त्यौहार इस ओर संकेत करता है कि शरीर को थोड़ा सूखा सेंक देना चाहिए जिससे कफ पिघलकर बाहर निकल जाय। सुबह जल्दी उठकर थोड़ा व्यायाम करना, दौडऩा अथवा गुलाटियाँ खाने का अभ्यास लाभदायक होता है। मालिश करके सूखे द्रव्य आँवले, त्रिफला अथवा चने के आटे आदि का उबटन लगाकर गर्म पानी से स्नान करना हितकर है।

इस ऋतु में कड़वे नीम में नयी कोंपलें फूटती हैं। नीम की 15-20 कोंपलें 2-3 काली मिर्च के साथ चबा-चबाकर खानी चाहिए। 15-20 दिन यह प्रयोग करने से वर्षभर चर्मरोग, रक्तविकार और ज्वर आदि रोगों से रक्षा करने की प्रतिरोधक शक्ति पैदा होती है एवं आरोग्यता की रक्षा होती है। इसके अलावा कड़वे नीम के फूलों का रस 7 से 15 दिन तक पीने से त्वचा के रोग एवं मलेरिया जैसे ज्वर से भी बचाव होता है। धार्मिक ग्रंथों के वर्णनानुसार चैत्र मास के दौरान अलौने व्रत (बिना नमक के व्रत) करने से रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है एवं त्वचा के रोग, हृदय के रोग, उच्च रक्तचाप (हाई बी.पी.), गुर्दा (किडनी) आदि के रोग नहीं होते।

वसंत ऋतु दरअसल शीत और ग्रीष्म का सन्धिकाल होती है। सन्धि का समय होने से वसंत ऋतु में थोड़ा-थोड़ा असर दोनों ऋतुओं का होता है। प्रकृति ने यह व्यवस्था इसलिए की है ताकि प्राणीजगत शीतकाल को छोडऩे और ग्रीष्मकाल में प्रवेश करने का अभ्यस्त हो जाए। अत: वसंत ऋतु सन्तुलन बनाने की ऋतु है क्योंकि अब ऋतु परिर्वतन के कारण आहार विहार में परिर्वतन करना आवश्यक हो जाता है।

सम्भावित रोग

श्वास, खांसी, बदनदर्द, ज्वर, वमन, अरुचि, भारीपन, भूख कम लगना, कब्ज, पेट दर्द, कृमिजन्य विकार आदि होते हैं।

प्रयोग करें

  • शरीर संशोधन हेतु वमन, विरेचन नस्य, कुंजल आदि।
  • रूखा, कड़वा तीखा, कसैले रस वाले पदार्थों का सेवन।
  • सुबह खाली पेट बड़ी हरड़ का 3-4 ग्राम चूर्ण शहद के साथ रसायन के समान लाभ पहुंचाता है।
  • शुद्ध घी, मधु और दूध की असमान मात्रा में मिश्रण का सेवन करने से शरीर में जमा कफ बाहर निकल आता है।
  • एक वर्ष पुराना जौ, गेहुं व चावल का उपयोग करना उचित है।
  • इस ऋतु में ज्वर बाजरा मक्का आदि रूखे धानों का आहार श्रेष्ठ है।
  • मूंग, मसूर, अरहर, चना की दाल उपयोगी है।
  • मूली, घीया, गाजर, बथुआ, चौलाई ,परवल, सरसों, मैथी, पत्तापालक, धनिया, अदरक आदि का सेवन करना हितकर है।
  • हल्दी से पीला किया गया भोजन स्वास्थ के लिए बहुत उपयोगी होता है क्योंकि हल्दी भी कफनाशक है।
  • सूर्योदय से पूर्व उठकर शौचादि से निवृत होकर योगासन करना चाहिए।
  • तेल की मालिश करना उत्तम है।
  • प्रयोग न करें
  • नए- अन्न, शीतल, चिकनाई युक्त, भारी, खट्टे एवं मीठे द्रव्य, उड़द, आलू, प्याज, गन्ना, नए गुड़, भैंस का दूध व सिंघाड़े का सेवन मना है।
  • दिन में सोना, एक स्थान पर लम्बे समय तक बैठे रहना उचित नहीं है।
  • ठंडे पेय, आइसक्रीम, बर्फ के गोले चॉकलेट, मैदे की चीजें, खमीरवाली चीजें, दही आदि पदार्थ बिल्कुल त्याग देने चाहिए।
  • पचने में भारी पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • चावल खाना ही हो तो दिन में खाना चाहिए, रात में नहीं।

आयुर्वेद के अनुसार बसंत ऋतु में शरीर के श्रुतों ( बॉडी चैनेल्स ) की शुद्धि के लिए पंचकर्म चिकित्सा मुख्य रुप से वमन क्रिया उत्तम मानी जाती है। इस क्रिया के जरिये प्रकुपित कफ शरीर से बाहर निकलता है। पंचकर्म हमेशा आयुर्वेदिक चिकित्सा की देखरेख में ही करना चाहिए। इसके अलावा उदर्वतन (जड़ी बूटी के पावडर के मालिश) करना और गर्म पानी से गरारे करना भी कफ को कम करने में सहायक है।


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जानिए क्या है स्तन कैंसर का आयुर्वैदिक उपचार

breast-cancer1पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को कई तरह की बीमारियों से जुझना पड़ता है। उन्हीं में से एक है स्तन कैंसर। स्तन में वैसे तो कई तरह की बीमारियाँ पाई जाती है, लेकिन जो स्तन कैंसर होता है वो बहुत ही जानलेवा होता है। इस प्रकार की बीमारी से बहुत ही कम स्त्रियों के बचने की उम्मीद होती है। इसके अलावा उन्हें कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ता है जैसे कि…

स्तनों में सुजन, अतिस्थूल स्तन, थनैला, अविकसित स्तन आदि समस्याएं। स्तनों में जब भी किसी प्रकार की समस्या हो तो तुरंत उपचार करवाना चाहिए। लेकिन कुछ ऐसी समस्या होने पर औरतें डॉक्टर के पास जाने से हिचकिचाती हैं। ऐसे में उन्हें चाहिए कि वो अपने घर में रहकर आयुर्वैदिक उपचार करें। वैसे हमारा मानना है कि उन्हें डॉक्टर से भी सलाह लेनी चाहिए।

स्तन कैंसर के कारण

स्तन कैंसर महिला के शरीर की कोशिकाओं का एक रोग होता है। हमारे शरीर का प्रत्येक अंग कोशिकाओं से बना होता है। जैसे-जैसे हमारे शरीर को जरूरत होती है ये कोशिकाएं विभिन्न भागों में बंट जाती है, लेकिन कई बार ऐसा होता है कि शरीर के अंगों में ये असामान्य तरीके से बढ़ती रहती हैं। लगातार बढ़ने से ये कोशिकाएं एक साथ जमा हो जाती हैं, जो बाद में एक गांठ बनकर ट्यूमर का रूप धारण कर लेती है। स्तन कैंसर के कारण कुछ इस प्रकार से है…

1. किसी महिला स्तन संबंधी कोई रोग पहले हुआ हो, तो उसे स्तन कैंसर भी हो सकता है।
2. महिला के शरीर की कोशिकाएं जब असामान्य रूप से बढ़ती हैं, तो यह रोग हो सकता है।
3. इस रोग के कारण महिला का मासिक धर्म उम्र से पहले या अधिक देरी से हो सकता है।
4. इस रोग के कारण महिला अधिक देरी से माँ बनती है।

स्तन कैंसर के लक्षण

1. स्तन कैंसर की शुरुआत में महिला के स्तनों मे छोटी-छोटी गांठे बनती है, लेकिन छुने से इन गांठो का पता नहीं चलता।
2. महिला के स्तनों में जो गांठे होती है, उनमें लगातार दर्द रहता है।
3. महिलाओं के स्तन अचानक से बढ़ने लगते हैं।
4. स्तन कैंसर की शुरुआत में महिलाओं के स्तनों के साइड में सुजन आ जाती है।
5. स्तन कैंसर होने पर स्तन के निप्पल लाल तो होते ही हैं, कई बार इनमें खून भी निकलने लगता है।
6. स्तनों में छोटी छोटी फुंसी भी निकल सकती है।
7. स्तन की त्वचा में झुर्रियां का आना स्तन कैंसर के लक्षण हो सकते हैं।

स्तनों  कैंसर के आयुर्वैदिक उपचार

1. अगर किसी महिला में स्तन कैंसर के लक्षण नजर आते हैं, तो इससे बचने के लिए हर्बल ग्रीन टी का प्रयोग कर सकते हैं, इसके लिए हर्बल टी को एक गिलास पानी में डालकर उबालें और तब तक उबालें जब तक पानी आधा न रह जाए फिर इस पानी का सेवन करें। रोज ग्रीन टी का सेवन करने से स्तनों की बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
2. स्तनों के कैंसर से बचने के लिए अंगूर और अनार के जूस का नियमित रूप से सेवन करें। इससे महिलाओं को स्तन के कैंसर की सम्भावना कम होती है।
3. इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए सोंठ, नमक, मूली, सरसों के दाने और सहिजन के बीज लें। बराबर मात्रा में इन्हें पिस लें, बाद में इस मिश्रण को अपने स्तनों पर लगायें। फिर नमक की एक पोटली तैयार करें , फिर 20 मिनट तक उस पोटली से स्तनों को सकाई करें। कुछ दिनों तक ऐसा करने से आप को स्तन कैंसर से मुक्ति मिल जायेगी।
4. अगर आप चाहते हैं कि यह रोग न हो तो रोजाना लहसुन का सेवन करें।
5. अगर इस कैंसर की शुरुआत है तो यह अधिक न बढ़े इसके लिए महिलाएं पोई के पत्ते को पीसकर एक पिंड तैयार करें और अपने स्तनों पर उस लेप को लगा लें। इसको अपने स्तनों पर बांध भी सकती है। ऐसा करके कैंसर को बढ़ने से रोका जा सकता है।


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