ह्वाइट ब्लड सेल्स बढ़ाने का यह आयुर्वेदिक तरीका है बेहद असरदार

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ह्वाइट ब्लड सेल्स बढ़ाने का यह आयुर्वेदिक तरीका है बेहद असरदार

शरीर की संक्रामक रोगों और बाह्य पदार्थों से रक्षा करने वाली प्रतिरक्षा प्रणाली की कोशिकायें हैं श्वेत रक्त कण । यह हमारे लिए बेहद जरूरी होती हैं क्योंकि ये सेल हमारे शरीर को रोगों से लड़ने की शक्ति प्रदान करती हैं। ये सेल लगातार नष्ट होते और बनते रहते हैं। ह्वाइट ब्लड सेल्स का प्रमुख कार्य ब्‍लड में आये विजातीय पदार्थों और जीवाणुओं को नष्‍ट करके शरीर की रक्षा करना है। एड्स, कैंसर और हेपेटाइटिस जैसी बीमारी के कारण ह्वाइट ब्लड सेल्स की संख्या कम होने लगती है, हालांकि बेहतर आहार और औषधि की मदद से ह्वाइट ब्लड सेल्स की संख्या को बढ़ाया जा सकता है।

आइए जानें ह्वाइट ब्लड सेल्स को प्राकृतिक तरीकों से कैसे बढ़ाया जा सकता है।

जिंक ह्वाइट ब्‍लड सेल में मौजूद एंजाइम के सबसे महत्वपूर्ण घटक होते हैं। इस मिनरल की कमी से शरीर में ह्वाइट ब्‍लड सेल की संख्या कम होने लगती है। इसलिए अपने आहार में जिंक को शामिल करें। जिंक के लिए देशी गाय दूध व गौमूत्र या जिंक के बने पात्र (कांसा जो तांबे व जिंक के मिश्रण से बनता है) में भोजन या इसमे रखे जल का सेवन अति लाभदायक होता है।

विटामिन सी ब्‍लड में कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रण करता है। विटामिन सी ह्वाइट ब्‍लड सेल के ठीक प्रकार से काम करने में मदद करता है और इनकी संख्या को बढ़ाता है, जिससे इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है और किसी भी प्रकार के संक्रमण से लड़ने में मदद मिलती है। विटामिन सी फलों, हरी सब्जियों, टमाटर, शिमला मिर्च, रसीले व खट्टे फलों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

तुलसी में एंटी-ऑक्सीडेंट सबसे अधिक मात्रा में होता हैं साथ ही इसमें कैलोरी बिल्‍कुल भी नहीं होतीं।

विटामिन सी और पोलीफिनॉल के अलावा अन्य एंटी ऑक्सीडेंट भी मौजूद होते हैं जो शरीर में बैक्टीरिया नष्ट करके इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाते हैं तथा ह्वाइट ब्‍लड सेल को भी बढ़ाते हैं।

देशी गाय के दूध से बनी ताजी दही के रोजाना सेवन से शरीर की बीमारियों से लड़ने की क्षमता और ह्वाइट ब्‍लड सेल की संख्या बढ़ती है। दही में दूध के मुकाबले कैल्शियम की मात्रा बहुत अधिक होती है। दही में मौजूद बैक्टीरिया तथा पोषक तत्व शरीर के लिए एंटीबायोटिक का काम करते हैं, और रोगों से लड़ने की क्षमता भी प्रदान करते हैं। दही में हमेशा गुड़ या भूरा या खांड या मिश्री मिलाकर खानी चाहिए।

शरीर को ह्वाइट ब्‍लड सेल बनाने के लिए फोलिक एसिड की जरूरत होती है। और फोलिक एसिड की कमी से लाल रक्त कोशिकाओं का स्तर कम होने से एनीमिया भी हो सकता है। फोलिक एसिड की मात्रा बढ़ाने से आपको मदद मिल सकती है। इसलिए अपने आहार में पालक, सेम, और खट्टे फलों, कच्ची कोई भी सब्जी को खाने से फोलिक एसिड शरीर को अधिक मिलता है।

लहसुन काली मिर्च सौठ दालचीनी लौंग अदरक मेथी हल्दी में काफी मात्रा में एंटी-ऑक्सीडेंट होता है, जो हमारे इम्यून सिस्टम को बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है। जो शरीर को इन्फेक्शन और बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करता है। प्रतिदिन भोजन में इनका इस्तेमाल करने से पेट के अल्सर और कैंसर से बचाव होता है और ह्वाइट ब्‍लड सेल की संख्या भी बढ़ती है। श्वेत ब्‍लड सेल संक्रमण से लड़ने की क्षमता को बढ़ावा देता है, और इसके अलावा अन्य प्रतिरक्षा कोशिकाओं को उत्तेजित करता है।

श्वेत रक्त कोशिकाओं को बढ़ाने के लिए आपको अपने आहार में शतावर, फ़ूलगोभी, अजमोद, खीरा, लहसुन, प्याज, मशरूम, मूली, संपूर्ण अनाज ,ब्राउन चावल को शामिल करना चाहिए।

पथरी की शिकायत न हो तो गेहूँ के दाने के बराबर चूना किसी भी तरल पेय में लिया जा सकता है।

त्रिफला का नियमित सेवन सुबह शहद या गुड़ के साथ भस्त्रिका प्राणायाम से भी बहुत जल्दी बढ़ जाते हैं

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ब्लड कैंसर का इलाज आयुर्वेद में पूरी तरह सम्भव

blood cancerब्लड कैंसर यानि एक्यूट माइलॉइड ल्यूकीमिया।   ब्रिटेन के डॉक्टरों की मानें तो ब्लड कैंसर से पहले खून में गड़बड़ी यानी ब्लड डिसऑर्डर होता है। अगर समय रहते डिसऑर्डर का पता लगा लिया जाए तो उसे कैंसर में तब्दील होने से रोका जा सकता है ।

क्या है एक्यूट माइलॉइड ल्यूकीमिया:-

यह खून एवं बोन मैरो यानी अस्थिमज्जा का एक प्रकार का कैंसर है। दरअसल हमारी हड्डियों के अंदर पाई जाने वाली मज्जा ब्लड स्टेम सेल (अपरिपक्व कोशिकाएं) पैदा करता है। यह कोशिकाएं विकास की प्रक्रिया में आगे बढ़ परिपक्व होती हैं। इन्हीं से सफेद रक्त कणिका संक्रमण से लड़ती हैं। लाल रक्त कणिका पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाती हैं और प्लेटलेट्स थक्का बनाकर खून को बहने से रोकती हैं, तैयार होती हैं।
एक्यूट माइलॉइड ल्यूकीमिया में ऐसा विकार पैदा हो जाता है कि सफेद रक्त कणिकाएं परिपक्व होती ही नहीं। वहीं कई लाल रक्त कणिकाएं और प्लेटलेट्स में भी खराबी आने लगती है। अगर समय पर सही इलाज न हो तो यह कैंसर बड़ी तेजी से बेहद खराब दशा में पहुंच जाता है।

ल्यूकेमिया ब्लड कैंसर:-

ल्यूकेमिया होने पर कैंसर के सेल्स शरीर के रक्त बनाने की प्रक्रिया में दखल देने लगते हैं। ल्यूकेमिया रक्त के साथ-साथ अस्थि मज्जा पर भी हमला करता है। इसकी वजह से रोगी को चक्कर आना, खून की कमी होना, कमजोरी होना और हड्डियों में दर्द होने की समस्या होती है। ल्यूकेमिया होने का पता रक्त की जांच से चलता है जिसमें विशिष्ट प्रकार के रक्त कोशिकाओं को गिना जाता है।

लिंफोमाज ब्लड कैंसर:-

लिंफोमाज ब्लड कैंसर एक प्रकार के सफेद रक्त कोशिकाओं को प्रभावित कर लिम्फोसाइट्स में होता है। लिंफोमाज ब्लड कैंसर के लक्षण ट्यूमर की जगह व आकार पर निर्भर करते हैं। इसकी शुरुआत गर्दन में, भुजाओं के नीचे व पेट व जांघों के बीच वाले भाग में सूजन से होती है।
मल्टीपल मायलोमा ब्लड कैंसर:-
मल्टीपल मायलोमा ब्लड कैंसर के शिकार ज्यादातर बुजुर्ग लोग होते हैं। इसमें सफेद रक्त कोशिकाओं के एक प्रकार प्लाजमा प्रभावित होते हैं। इसके इलाज के लिए रेडिएशन, कीमोथेरेपी व अन्य दवाओं का प्रयोग किया जाता है।

ब्लड कैंसर का निदान:-

खून की जांच : ब्लड कैंसर के निदान के लिए कंप्लीट ब्लड काउंट किया जाता है। इसको सीबीसी भी कहा जाता है। खून के नमूने में विभिन्न प्रकार की रक्त कोशिकाएं होती हैं। जब खून में कोशिकाओं की संख्या ज्यादा मिलती है या खून में जो भी कोशिकाएं होती हैं वह बहुत छोटी होती हैं और असामान्य कोशिकाएं पायी जाती हैं तब जांच से ब्लड कैंसर का पता लगाया जा सकता है।
एक्सरे : सीने का एक्से-रे करके डॉक्टर यह पता लगा सकते हैं कि कैंसर की कोशिकाएं फेफडों में कहां तक फैल गई हैं। चेस्ट एक्स-रे से लिम्फ नोड्स में रक्त कैंसर के संक्रमण का पता लगाया जाता है। फेफडों में कैंसर की कोशिकाओं के संक्रमण का पता एक्स-रे के जरिए किया जाता है।
ट्यूमर मार्कर टेस्ट: ब्लड कैंसर के निदान के लिए चिकित्सक ट्यूमर मार्कर टेस्ट करते हैं। ट्यूमर मार्कर से शरीर के ऊतकों, खून और मूत्र का टेस्ट किया जाता है। जब कैंसर के सेल्स उभरे हुए होते हैं तब इस जांच से रक्त कैंसर का पता लगाया जा सकता है।
यूरीन जांच : ब्लड कैंसर की जांच के लिए मूत्र के सैंपल की जांच की जाती है। माइक्रोस्कोप के जरिए मूत्र से ब्लड कैंसर के सेल्स की जांच की जाती है। मूत्र में एपिथेलियल सेल्स होती हैं जो कि मूत्र के मार्ग पर होती हैं और कैंसर के सेल्स इस मूत्र के रास्ते से बाहर निकलते हैं जिसको माइक्रोस्कोप के जरिए खोजा जा सकता है। इस जांच को यूरीन सीटोलॉजी टेस्ट कहा जाता है। कैंसर के सेल्स जब ज्यादा खतरनाक हो जाते हैं तब इस टेस्ट से इसकी जांच की जा सकती है।

कैंसर के आठ लक्षण:-

पेशाब में आने वाले खून
खून की कमी की बीमारी (एनीमिया)
शौच के रास्ते खून आना
खांसी के दौरान खून का आना
स्तन में गांठ
कुछ निगलने में दिक्कत होना
मीनोपॉस के बाद खून आना
प्रोस्टेट के परीक्षण के असामान्य परिणाम
जीवक अयुर्वेदा के औषधियों से ब्लड कैंसर के मरीजो पर सफल परिणाम मिलें हैं।जीवक आयुर्वेदा की रस रसायन चिकित्सा के द्वारा मज्जा धातु में अनियमित कोशिकाओं के बढ़ने की प्रक्रिया प्रभावित होती हैं।आगे मेटास्टेसिस की प्रक्रिया रुक जाती हैं ।मरीज में धीरें धीरें इम्प्रूवमेंट दिखाई देने लगता हैं।जीवक आयुर्वेदा क चिकित्सक की देख रेख में चिकित्सा करने पर सफल परिणाम मिलते हैं।


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