कहीं आपका उठता कदम ऑर्थोराइटिस की ओर तो नहीं
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आज कल के रोजमर्रा के जीवन में घुटनो का दर्द या आर्थराइटिस आम सा होता जा रहा है आइये आखिर क्यों ये रोग इतनी तेजी से बढ़ रही है ; क्यों सभी इसके शिकार होते जा रहे है ।
अर्थराइटिस आखिर है क्या?
ऑर्थोराइटिस शब्द दो शब्दों से मिल कर बना है जिसमे ऑर्थो का अर्थ हड्डी होती है इटिस का अर्थ शोथ होता है जो की वेदना का करण होता है , सामान्य भाषा में बोले तो जोड़ो में सूजन (joint inflammation ) इसका करण मूल है
तो अब हम बात करते है इसके प्रमुख लक्षणों (symptoms) की
- दर्द
- सन्धि (joint) के गति का सीमित होना
- सूजन (inflammation)
- एक या अनेक संधियों में दर्द
- संधियों में अकडापन(stiffness)
- संधियों से आवाज आना
- संधियों का विकृत (deformity)होना
- संधियों की हड्डीयो में कोने का निकलना
यदि ये लक्षण दिख रहे है तो मानिये की हड्डियों की कमजोरी के रोग आने शुरू हो गए । हड्डी के विषय में आपको बता दू की हड्डी फाइबर और मैट्रिक्स से बना ठोस, सख्त और मजबूत संयोजी ऊतक है। इसका मैट्रिक्स प्रोटीन से बना होता है और इसमें कैल्शियम और मैगनीशियम की भी प्रचूरता होती है।
क्या आप जानते हैं कि हड्डियों की मजबूती उसमें मौजूद खनिजोंकी वजह से होती है। यानी की सामान्यत जो इसके निर्माण घटक है वो ही इसके पोषक है।
आयुर्वेद और संधिशोथ
आयुर्वेद में इसके मुख्य करण वात को माना गया है। आयुर्वेद के स्पष्ट कहा गया है की वात की वृद्धि से रुक्ष, लघु खर चल विशद आदि गुणों की वृद्धि होती है जो समान्यः वृद्धावस्था में वृद्धि को प्राप्त कर जॉइंट में रहने वाली श्लेष्मा (fluid) को सुखा कर दुःख और वेदना की विकट स्थिति उत्पन्न कर देता है ।
आधुनिक चिकित्सा पद्धति और संधिशोथ
आधुनिक चिकित्सा पद्धति में घुटने का बदलना या लाक्षणिक चिकित्सा कर रोग के लक्षणों में आराम पहुचना ही एक मात्र विकल्प बताया गया है ।
जीवनशैली की त्रुटि
दर्द के लिए तेल का प्रयोग तो भारत का बच्चा बच्चा जनता है , दूध घी जो हम भारतीयो की नित्य भोजन में प्रयुक्त होने वाली वस्तु होती थी पिछले 2 दशक में हम भारतीयो को दिग्भर्मित किया गया की घी आपको नुकशान करता है ये हृदय ,यकृत आदि को खराब कर देता है और हम सभी ने अपने भोजन से दूध घी आदि को निकाल दिया और फिर अर्थराइटिस जैसे रोगों को महामारी की तरह फैला दिया। हम सभी के आहारो से विविधता का ग़ायब हो जाने एवं हानिकारक रसायन के सेवन ही हम सभी लो बीमार कर रहा है,
आइये हम जाने की आयुर्वेद कैसे काम करती है
आयुर्वेद का मूल सिद्धान्त निदान परिवर्जन – चूँकि हम आपको पहले ही बता चुके है की इस रोग में मूल में वात की वृद्धि है अतः वात को बढ़ाने वाला आहार विहार का त्याग करे। फिर बढ़े वात का शमन कर दिया जाये तो रोग में आराम आने शुरू हो जाती है। आयुर्वेद में चिकित्सा की दो विधा है जिसमे से शोधन चिकित्सा जिसे पंचकर्म के नाम से जाना जाता है जो रोग को शीघ्र ही शमन क्र देती है
पंचकर्म की प्रमुख कर्म
- अभ्यांगम्
- शिरोधारा
- निरुह वस्ती
- अनुवासन वस्ती
- जानु वस्ति इत्यादि
शमन चिकित्सा एवं पंचकर्म के द्वारा जोड़ो की समस्या का स्थायी इलाज सम्भव है।
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