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बढ़ा है यूरिक एसिड तो अपनाएँ समाप्त करने का यह अचूक नुस्खा

जोड़ों के दर्द में आमतौर पर रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है , प्रस्तुत है इसे कम करने का एक घरेलू उपाय –
25-30 ग्राम पुदीना की पत्तियाँ व उसके कोमल तने को एक गिलास पानी में उबालें 8-10 उफान आने पर उसे छानकर पी लें | कुछ दिन प्रातः खाली पेट इसका सेवन करने से रक्त से यूरिक एसिड की मात्रा कम होने लगती है |

जाने यूरिक एसिड के बारे में।अगर कभी आपके पैरों उंगलियों, टखनों और घुटनों में दर्द हो तो इसे मामूली थकान की वजह से होने वाला दर्द समझ कर अनदेखा न करें यह आपके शरीर में यूरिक एसिड बढ़ने का लक्षण हो सकता है।

इस स्वास्थ्य समस्या को गाउट आर्थराइट्सि कहा जाता है।

क्यों होता है ऐसा? 
1. यह समस्या शरीर में प्रोटीन की अधिकता के कारण होती है। प्रोटीनएमिनो एसिड के संयोजन से बना होता है। पाचन की प्रक्रिया के दौरान जब प्रोटीन टूटता है तो शरीर में यूरिक एसिड बनता है, जो कि एक तरह का एंटी ऑक्सीडेंट होता है।

आमतौर सभी के शरीरमें सीमित मात्रा में यूरिक एसिड का होना सेहत के लिए फायदेमंद साबित होताहै, लेकिन जब इसकी मात्रा बढ़ जाती है तो रक्त प्रवाह के जरिये पैरों की उंगलियों, टखनों, घुटने, कोहनी, कलाइयों और हाथों की उंगलियों के जोड़ों में इसके कण जमा होने लगते हैं और इसी के रिएक्शन से जोड़ों में दर्द और सूजन होने लगता है।

2. यह आधुनिक अव्यवस्थित जीवनशैली से जुड़ी स्वास्थ्य समस्या है।

इसी वजह से 25 से 40 वर्ष के युवा पुरुषों में यह समस्या सबसे अधिक देखने को मिलती है। स्त्रियों में अमूमन यह समस्या 50वर्ष की उम्र के बाद देखने को मिलती है।

3. रेड मीट, सी फूड, रेड वाइन, प्रोसेस्डचीज, दाल, राजमा, मशरूम, गोभी, टमाटर, पालक आदि के अधिक मात्रा में सेवन से भी यूरिक एसिड बढ़ जाता है।

4.अधिक उपवास या क्रैश डाइटिंग से भी यह समस्या बढ़ जाती है।

5. आमतौर पर किडनी रक्त में मौजूद यूरिक एसिड की अतिरिक्त मात्रा को यूरिन के जरिये बाहर निकाल देती है, लेकिन जिन लोगों की किडनी सही ढंग से काम नहीं कर रही होती, उनके शरीर में भी यूरिक एसिड बढ़ जाता है।

6.अगर व्यक्ति की किडनी भीतरी दीवारोंकी लाइनिंग क्षतिग्रस्त हो तो ऐसे में यूरिक एसिड बढ़ने की वजह से किडनी में स्टोन भी बनने लगता है।

बचाव

1. अधिक से अधिक मात्रा में पानी पीने की कोशिश करें।

इससे रक्त में मौजूद अतिरिक्त यूरिक एसिड यूरिन के जरिये शरीर से बाहर निकल जाता है।

2. दर्द वाले स्थान पर कपड़े में लपेटकरबर्फ की सिंकाई फायदेमंद साबित होती है।

3. संतुलित आहार लें- जिसमें, कार्बोहइड्रेट, प्रोटीन, फैट, विटमिन और मिनरल्स सब कुछ सीमित और संतुलित मात्रा में होना चाहिए। आम तौर पर शाकाहारी भारतीय भोजन संतुलित होता है और उसमें ज्यादा फेर-बदल की जरूरत नहीं होती।

4. नियमित एक्सराइज इस समस्या से बचने का सबसे आसान उपाय है क्योंकि इससे शरीर में अतिरिक्त nu प्रोटीन जमा नहीं हो पाता।

5. इस समस्या से ग्रस्त लोगों को नियमित रूप से दवाओं का सेवन करते हुए,हर छह माह के अंतराल पर यूरिक एसिड की जांच करानी चाहिए।

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सामान्य वात रोग: वात कण्टक (मौच-एड़ी का दर्द)

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किसी अस्थिसंधि (ज्वाइंट) के स्नायु (लिगामेन्ट) , जब अपनी क्षमता से अधिक खिंच जाते हैं , तो इस प्रकार की चोट को मोच (sprain) कहते हैं। चोट लगने के साथ ही, सूजन शुरू हो जाती है। मोच किसी भी जोड़ में हो सकता है। पर, एड़ी और कलाई के जोड़ पर ज्यादा मोच आती है।

पैर की एडि़यों में स्थित वात विषम ( ऊंची – नीची ) भूमि पर, पैर रखने से, उसमें दर्द होता है , तो उसे ‘ वात कण्टक ‘ रोग कहते है । अत्यधिक चलने – फिरने से या वात कफ मिलकर,मिलकर, संधियों ( जोडो़ ) में स्थित रक्तवाहिनीयों को खराब कर देता है , तो इस रोग की उत्पत्ति होती है । इस रोग में , गुल्फ – संधियों में दर्द के साथ, सूजन हो जाती है । इससे संधियों में खिचांव होने लगता है । रोगी चलने – फिरने में कठिनाई अनुभव करता है ।

उपचार

1- गर्म पानी में , तारपीन का तेल डालकर, उस पानी से दर्द वाले स्थान की सिकाई करें । ऐसा करने से, सूजन और दर्द में शीघ्रता से आराम होता है ।
2 शहद, चूना व पिसी प्याज को मिलाकर, मौच वाले स्थान पर लेप करने से, सूजन व दर्द में तुरंत लाभ होता है ।
3- आमाहल्दी , प्याज, कालाजीरा, मुसव्वर को कांजी में पीसकर व सरसों के तेल में मिलाकर, उसे गर्म करके मौच पर भाप देने से, आराम मिलता है ।

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आयुर्वेद में ऋतुचर्या (Ritucharya in Ayurveda)

बसंत ऋतु (14 मार्च से 14 मई) को बहुत महत्वपूर्ण समझा जाता है। भारतीय सभ्यता में उदित आयुर्वेद के अनुसार ऋतुचर्या का मुख्य प्रयोजन मनुष्य के शरीर को रोगों से दूर रखकर स्वस्थ रखना है। हमारा शरीर पाँच तत्वों (भूमि, आकाश, अग्नि, वायु, और जल) से बना है और इसमें सात धातुएँ शामिल हैं। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए इन सभी तत्वों और धातुओं का संतुलन आवश्यक होता है।

इन सभी की एक-एक अग्नियां हैं और एक अतिरिक्त अग्नि है जिसे जठराग्नि बोलते हैं, जो भोजन पाचन से संबंधित है। ऋतुओं में बदलाव के साथ-साथ इन अग्नियों के तेज और शांत होने की गति में भी बदलाव आता रहता है और अगर हम इनको संतुलित रखने के लिए सही भोजन नहीं करेंगे तो ये दोषों और बीमारियां का रूप ले लेंगी। तो इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि हम ऋतु के अनुसार अपने खान-पान को बदलें।

आइए जानें की आखिर में ऋतुचर्या क्या है

हम आज के समय चल रही ऋतु की बात करेंगे जिस से आपको लाभ हो सके

वसंत ऋतु की बात करें तो हिन्दू पंचांग में ये चैत्र से वैशाख महीने तक को और इंग्लिश कैलेंडर में मार्च, अप्रैल, और मई महीनों को बोलते हैं। यह शीत और ग्रीष्म ऋतु का संधि समय होता है। इस समय न ही अधिक ठण्ड पड़ती है और न गर्मी।

शीत ऋतु में जमा हुआ कफ इस ऋतु में सूर्य की किरणों की वजह से पिघलने लगता है और जठराग्नि भी शांत हो जाती है। मौसम में परिवर्तन के साथ लोगों के स्वास्थ्य में भी गहरा असर होने लगता है। इस ऋतु में बीमारियों को दूर रखने के लिए कफ में वृद्धि करने वाला भोजन करने की सलाह दी जाती है। आपको लवण, मधुर, और अम्ल रस से युक्त खाना खाना चाहिए।

बसंत ऋतु के स्वस्थ रहने के आहार

कड़वे रस वाले द्रव्य, बैंगन, नीम, चन्दन का जल, विजयसार, अदरक का रस, मुलेठी, काली मिर्च, तुलसी, मुनक्का, अरिष्ट, आसव, फलों का रस, खिचड़ी, खांड, दलीय, मूंग की दाल, शहद, पुराने जौ, गेहूँ , मक्खन लगी रोटी, भीगा व अंकुरित चना, राई, नीबू, खास का जल, धान की खील, आंवला, बहेड़ा, हरड़, पीपल, सोंठ, जिमीकंद क कच्ची मूली, केले के फूल, पालक, लहसुन, करेला, खजूर, मलाई, रबड़ी, आदि।

आयुर्वेद औषधि को जरूरत नहीं सिर्फ आहार विहार से किसी भी रोग पर विजय पाई जा सकती है

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शरीर को रखे रोगमुक्त अपनाएं अल्कालिन (क्षारीय) भोजन और दिन चर्या जानिये स्वस्थ शरीर का pH मान और जाने इससे जुड़ी बीमारिया

जीवनशैली में परिवर्तन और उसी सन्दर्भ में शरीर की एसिडिक कंडीशन को अल्कलाइन में बदलने से अनेक रोगों से मुक्ति मिल जाती है।

योग अपनाए सुंदर जीवन पावे

शरीर को कर लो अल्कलाइन हार्ट, कैंसर, किडनी, थायराइड, शुगर, आर्थराइटिस, सोरायसिस भी पास नहीं फटकेगा।

कोई भी रोग हो चाहे कैंसर भी, Alkaline वातावरण में पनप नहीं सकता। डायबिटीज, कैंसर, हार्ट, ब्लड प्रेशर, जोड़ों का दर्द, UTI – पेशाब के रोग, ऑस्टियोपोरोसिस , सोरायसिस, यूरिक एसिड का बढ़ना, गठिया, थायराइड , गैस, बदहज़मी, दस्त, हैज़ा, थकान, किडनी के रोग, पेशाब सम्बंधित रोग, पत्थरी और अन्य कई प्रकार के जटिल रोग। इन सबको सही करने का सबसे सही और सस्ता उपयोग है शरीर को एल्कलाइन कर लेना।

पहले तो जानिए पी एच लेवल क्या है?

इसको समझने के लिए सबसे पहले आपको PH को समझना होगा, हमारे शरीर में अलग-अलग तरह के द्रव्य पाए जाते हैं, उन सबकी PH अलग अलग होती है,

हमारे शरीर की सामान्य Ph 7.35 से 7.41 तक होती है,

PH पैमाने में PH 1 से 14 तक होती है, 7 PH न्यूट्रल मानी जाती है, यानी ना एसिडिक और ना ही एल्कलाइन। 7 से 1 की तरफ ये जाती है तो समझो एसिडिटी यानी अम्लता बढ़ रही है, और 7 से 14 की तरफ जाएगी तो Alkalinity यानी क्षारीयता बढ़ रही है।

अगर हम अपने शरीर के अन्दर पाए जाने वाले विभिन्न द्रव्यों की PH को Alkaline की तरफ लेकर जाते हैं। तो हम बहुत सारी बीमारियों के मूल कारण को हटा सकते हैं, और उनको हमेशा के लिए समाप्त कर सकते हैं।

Cancer and PH – कैंसर

उदहारण के तौर पर सभी तरह के कैंसर सिर्फ Acidic Environment में ही पनपते हैं।
क्योंकि कैंसर की कोशिका में शुगर का ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में Fermentation होता है जिससे अंतिम उत्पाद के रूप में लैक्टिक एसिड बनता है और यही लैक्टिक एसिड Acidic Environment पैदा करता है जिस से वहां पर एसिडिटी बढती जाती है और कैंसर की ग्रोथ बढती जाती है। ये हम सभी जानते हैं कि कैंसर होने का मूल कारण यही है कि कोशिकाओं में ऑक्सीजन बहुत कम मात्रा में और ना के बराबर पहुँचता है। वहां पर मौजूद ग्लूकोस लैक्टिक एसिड में बदलना शुरू हो जाता है।

Gout and PH – गठिया

दूसरा उदहारण है– Gout जिसको गठिया भी कहते हैं, इसमें रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे रक्त एसिडिक होना शुरू हो जाता है। जितना ब्लड अधिक एसिडिक होगा उतना ही यूरिक एसिड उसमे ज्यादा जमा होना शुरू हो जायेगा। अगर हम ऐसी डाइट खाएं जिससे हमारा पेशाब अल्कलाइन हो जाए तो ये बढ़ा हुआ यूरिक एसिड अल्कलाइन पेशाब में आसानी से बाहर निकल जायेगा।

UTI and PH – पेशाब का संक्रमण

तीसरा उदहारण है — UTI जिसको Urinary tract infection कहते हैं, इसमें मुख्य रोग कारक जो बैक्टीरिया है वो E.Coli है, ये बैक्टीरिया एसिडिक वातावरण में ही ज्यादा पनपता है। इसके अलावा Candida Albicanes नामक फंगस भी एसिडिक वातावरण में ही ज्यादा पनपता है। इसीलिए UTI तभी होते हैं जब पेशाब की PH अधिक एसिडिक हो।

Kidney and PH – किडनी

चौथा एक और उदाहरण देते हैं किडनी की समस्या मुख्यतः एसिडिक वातावरण में ही होती है, अगर किडनी का PH हम एल्कलाइन कर देंगे तो किडनी से सम्बंधित कोई भी रोग नहीं होगा। मसलन क्रिएटिनिन, यूरिक एसिड, पत्थरी इत्यादि समस्याएँ जो भी किडनी से सम्बंधित हैं वो नहीं होंगी।

वर्तमान स्थिति

आजकल हम जो भी भोजन कर रहें हैं वो 90 प्रतिशत तक एसिडिक ही है, और फिर हमारा सवाल होता है कि हम सही क्यों नहीं हो रहे ? या फिर कहते हैं कि हमने ढेरों इलाज करवाए मगर आराम अभी तक नहीं आया। बहुत दवा खायी मगर फिर भी आराम नहीं हो रहा। तो उन सबका मुख्यः कारण यही है कि उनका PH लेवल कम हो जाना अर्थात एसिडिक हो जाना।

कैसे बढ़ाएं PH level ?

इन सभी Alkaline क्षारीय खाद्य पदार्थो का सेवन नित्य करिये…

फल – सेब, खुमानी, ऐवोकैडो, केले, जामुन, चेरी, खजूर, अंजीर, अंगूर, अमरुद, नींबू, आम, जैतून, नारंगी, संतरा,पपीता,आड़ू, नाशपाती, अनानास, अनार, खरबूजे, किशमिश, इमली इत्यादि।

  • इसके अलावा तुलसी, सेंधा नमक, टमाटर, अजवायन, दालचीनी, बाजरा इत्यादि।

मुख्य बात –: आज सभी घरों में कंपनियों का पैकेट वाला आयोडीन सफेद नमक प्रयोग हो रहा है, ये धीमा ज़हर है, यह अम्लीय(acidic) होता है और इसमें सामान्य से आयोडीन की अधिक मात्रा भी होती है, जो अत्यंत घातक है शरीर के लिए। इस नमक से हृदय रोग, थायराइड , कैंसर, लकवा, नपुंसकता, मोटापा,एसिडिटी, मधुमेह, किडनी रोग, लिवर रोग,बाल झड़ना, दृष्टि कम होना जैसे अनेकों रोग कम आयु से बड़ी आयु तक के सभी घर के सदस्यों को हो रहे हैं। जो पैकेट नमक के प्रयोग से पूर्व कभी नही होते थे। इसलिए आयोडीन की कमी का झूठ फैलाकर बीमारी का सामान हर घर तक पहुंचाया गया, जिसने दवाइयों के कारोबार को अरबो, खरबो का लाभ पहुंचाया है।

इसके विकल्प के रूप में आज से ही सेंधा नमक का प्रयोग शुरू कर दीजिए। यह पूरी तरह से प्राकृतिक और क्षारीय (Alkaline) होता है और आयोडीन भी सामान्य मात्रा में होता है। अन्यथा आपके सारे उपचार असफल सिद्ध होते रहेंगे, क्योंकि हर भोजन को सफेद नमक ज़हरीला बना देगा, चाहे कितनी अच्छी सब्जी क्यों न बनाएं आप।
करे योग रहे निरोग

AlkaLine Water बनाने की विधि

रोगी हो या स्वस्थ उसको यहाँ बताया गया ये Alkaline Water ज़रूर पीना है।

इसके लिए ज़रूरी क्षारीय सामान
1 नीम्बू,
25 ग्राम खीरा,
5 ग्राम अदरक,
21 पोदीने की पत्तियां,
21 पत्ते तुलसी,
आधा चम्मच सेंधा नमक,
चुटकी भर मीठा सोडा।

अभी इन सभी चीजों को लेकर पहले छोटे छोटे टुकड़ों में काट लीजिये, निम्बू छिलके सहित काटने की कोशिश करें। एक कांच के बर्तन में इन सब चीजों को डाल दीजिये और इसमें डेढ़ गिलास पानी डाल दीजिये, पूरी रात इस पानी को ढक कर पड़ा रहने दें। और सुबह उठ कर शौच वगैरह जाने के बाद खाली पेट सब से पहले इसी को छान कर पीना है। छानने से पहले इन सभी चीजों को हाथों से अच्छे से मसल लीजिये और फिर इसको छान कर पीजिये।

सावधानी— चाय, कॉफ़ी, चीनी , पैकेट वाला सफेद नमक ये सब ज़हर के समान हैं , अगर आप किसी रोग से ग्रस्त हैं तो सबसे पहले आपको इनको छोड़ना होगा और इसके साथ ऊपर बताये गए फल सब्जियां कच्चे ही सेवन करें।

21 दिन तक इस पानी का सेवन करके देखें। यदि आपको लाभ होता है तो इसे आप 2 से 3 महीने तक जारी रखें।

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मल बद्धता (constipation)- आयुर्वेदीय विचार व चिकित्सा!

रोगी जब आयुर्वेदिक चिकित्सक के पास मलबद्धता (constipation) की शिकायत लेकर आता है तो 90% चिकित्सक रोगी को वतनलोमक या रेचन औषधि देते है। आप सभी इससे सहमत होंगे, परंतु क्या यह उचित चिकित्सा है ? ऐसे उपचार से शुरू में कुछ रोगियों में लाभ भी देखने को मिलता है, परंतु कुछ समय में रोगी फिर से वही परेशानी लेकर या तो आपके पास दोबारा आता है या फिर से allopathic laxative या फिर मार्केट में उपलब्ध विरेचक कल्प इत्यादि लेना शुरू कर देता है। क्या आपने कभी विचार किया है की छोटी सी दिखने वाली इस समस्या का उपचार इतना कठिन क्यों है, अथवा यह रोगी को सालो तक क्यों सत्ताती रहती है। आइए इस विषय में कुछ तथ्यो पर विचार करे।
मल, पाचन-तंत्र का सबसे आख़िरी उत्पाद होता है। मल की प्रकृति इस बात पर निर्भर करती है की किस प्रकार का आहार आप लेते है, किस समय पर लेते है तथा, किस मानसिक भाव से लेते है। आहार में क्या खाए क्या ना खाएँ इसकी जानकारी आयुर्वेद में विस्तार पूर्वक आयी है, इसलिए उसका अध्ययन करे और वैसे ही रोगी को भी निर्देश दे। दूसरा पड़ाव है की आहार काल को फ़िक्स करना। तीसरा की आहार कारते समय पूर्ण ध्यान आहार पर रहे ना की अन्य कही और। क्योंकि स्रोतस का निर्माण तथा उसकी सेहत उन्मे बहाने वाले द्रव्यों पर ही निर्भर होती है, वैसे ही इन नियमो का पालन कर आहार का पाचन ठीक होता है तथा मल ठीक बनता है । अब इस मल को बाहर निकालने के लिए जिस अपान वायु की ज़रूरत रहती है वह तभी ठीक रहेगी जब रोगी मल विसर्जन सुबह वात के काल (सुबह 2-6 बजे ) में करे। यही कारण है की सुबह जितने जल्दी उठा जाए उतना ही असानी से मल त्याग होता है।

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ह्वाइट ब्लड सेल्स बढ़ाने का यह आयुर्वेदिक तरीका है बेहद असरदार

शरीर की संक्रामक रोगों और बाह्य पदार्थों से रक्षा करने वाली प्रतिरक्षा प्रणाली की कोशिकायें हैं श्वेत रक्त कण । यह हमारे लिए बेहद जरूरी होती हैं क्योंकि ये सेल हमारे शरीर को रोगों से लड़ने की शक्ति प्रदान करती हैं। ये सेल लगातार नष्ट होते और बनते रहते हैं। ह्वाइट ब्लड सेल्स का प्रमुख कार्य ब्‍लड में आये विजातीय पदार्थों और जीवाणुओं को नष्‍ट करके शरीर की रक्षा करना है। एड्स, कैंसर और हेपेटाइटिस जैसी बीमारी के कारण ह्वाइट ब्लड सेल्स की संख्या कम होने लगती है, हालांकि बेहतर आहार और औषधि की मदद से ह्वाइट ब्लड सेल्स की संख्या को बढ़ाया जा सकता है।

आइए जानें ह्वाइट ब्लड सेल्स को प्राकृतिक तरीकों से कैसे बढ़ाया जा सकता है।

जिंक ह्वाइट ब्‍लड सेल में मौजूद एंजाइम के सबसे महत्वपूर्ण घटक होते हैं। इस मिनरल की कमी से शरीर में ह्वाइट ब्‍लड सेल की संख्या कम होने लगती है। इसलिए अपने आहार में जिंक को शामिल करें। जिंक के लिए देशी गाय दूध व गौमूत्र या जिंक के बने पात्र (कांसा जो तांबे व जिंक के मिश्रण से बनता है) में भोजन या इसमे रखे जल का सेवन अति लाभदायक होता है।

विटामिन सी ब्‍लड में कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रण करता है। विटामिन सी ह्वाइट ब्‍लड सेल के ठीक प्रकार से काम करने में मदद करता है और इनकी संख्या को बढ़ाता है, जिससे इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है और किसी भी प्रकार के संक्रमण से लड़ने में मदद मिलती है। विटामिन सी फलों, हरी सब्जियों, टमाटर, शिमला मिर्च, रसीले व खट्टे फलों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

तुलसी में एंटी-ऑक्सीडेंट सबसे अधिक मात्रा में होता हैं साथ ही इसमें कैलोरी बिल्‍कुल भी नहीं होतीं।

विटामिन सी और पोलीफिनॉल के अलावा अन्य एंटी ऑक्सीडेंट भी मौजूद होते हैं जो शरीर में बैक्टीरिया नष्ट करके इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाते हैं तथा ह्वाइट ब्‍लड सेल को भी बढ़ाते हैं।

देशी गाय के दूध से बनी ताजी दही के रोजाना सेवन से शरीर की बीमारियों से लड़ने की क्षमता और ह्वाइट ब्‍लड सेल की संख्या बढ़ती है। दही में दूध के मुकाबले कैल्शियम की मात्रा बहुत अधिक होती है। दही में मौजूद बैक्टीरिया तथा पोषक तत्व शरीर के लिए एंटीबायोटिक का काम करते हैं, और रोगों से लड़ने की क्षमता भी प्रदान करते हैं। दही में हमेशा गुड़ या भूरा या खांड या मिश्री मिलाकर खानी चाहिए।

शरीर को ह्वाइट ब्‍लड सेल बनाने के लिए फोलिक एसिड की जरूरत होती है। और फोलिक एसिड की कमी से लाल रक्त कोशिकाओं का स्तर कम होने से एनीमिया भी हो सकता है। फोलिक एसिड की मात्रा बढ़ाने से आपको मदद मिल सकती है। इसलिए अपने आहार में पालक, सेम, और खट्टे फलों, कच्ची कोई भी सब्जी को खाने से फोलिक एसिड शरीर को अधिक मिलता है।

लहसुन काली मिर्च सौठ दालचीनी लौंग अदरक मेथी हल्दी में काफी मात्रा में एंटी-ऑक्सीडेंट होता है, जो हमारे इम्यून सिस्टम को बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है। जो शरीर को इन्फेक्शन और बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करता है। प्रतिदिन भोजन में इनका इस्तेमाल करने से पेट के अल्सर और कैंसर से बचाव होता है और ह्वाइट ब्‍लड सेल की संख्या भी बढ़ती है। श्वेत ब्‍लड सेल संक्रमण से लड़ने की क्षमता को बढ़ावा देता है, और इसके अलावा अन्य प्रतिरक्षा कोशिकाओं को उत्तेजित करता है।

श्वेत रक्त कोशिकाओं को बढ़ाने के लिए आपको अपने आहार में शतावर, फ़ूलगोभी, अजमोद, खीरा, लहसुन, प्याज, मशरूम, मूली, संपूर्ण अनाज ,ब्राउन चावल को शामिल करना चाहिए।

पथरी की शिकायत न हो तो गेहूँ के दाने के बराबर चूना किसी भी तरल पेय में लिया जा सकता है।

त्रिफला का नियमित सेवन सुबह शहद या गुड़ के साथ भस्त्रिका प्राणायाम से भी बहुत जल्दी बढ़ जाते हैं

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यूरिक एसिड का बढ़ने से परेशान, बस 05 में असर

आजकल की इस भाग दौड़ वाली जिंदगी और सही खान-पान ना करने की वजह से यूरिक एसिड का बढ़ना एक आम बीमारी बनकर रह गया है। हमारे जिस्म में मौजूद एक प्यूरिन नाम का केमिकल होता है जिसके टूटने से यूरिक ऐसिड बनता है। यह खून के जरिए किडनी तक पहुंचता है, वैसे तो यूरिक ऐसिड मूत्र की शक्ल में शरीर से बाहर निकल जाता है लेकिन कई बार यह शरीर में ही जमा होने लगता है।

यूरिक एसिड क्या है?

यूरिक एसिड तेजाब होता है जो खून और मूत्र में मौजूद होता है यूरिक एसिड पानी में नहीं घुलता, लेकिन अलकलाहन और नमक में आसानी से घुल जाता है।

पहचान

  • पैरों-जोड़ों में दर्द,
  • एड़ियों में दर्द,
  • गांठों में सूजन,
  • ज्यादा देर बैठने पर या उठने में पैरों की एड़ियों में बर्दाश्त न करने वाला दर्द,
  • शुगर लेवल बढ़ना,
  • सोते वक़्त पैर में जकड़न,
  • चलने में परेशानी,
  • घुटनों में दर्द,
  • पैर के अंगूठे में खुजली आदि।

उपाय

-सुरंजान शीरीं 10 ग्राम
-सोंठ बिना रेशे की 10 ग्राम
-मीठा सोडा 10 ग्राम

हर एक दवा 10/10 ग्राम लेकर बारीक पीसकर पाउडर बना लें बस यूरिक एसिड की दवा तैयार है।

इस्तेमाल का तरीका

एक ग्राम यह दवा खाना खाने के आधा घंटा बाद सुबह दोपहर और शाम तीनों वक़्त इस्तेमाल करें पांचवी खुराक से ही यूरिक एसिड पर यह दवा हमला करना शुरू कर देती है।

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बिगड़ा क्रिएटनीन लेवल आजमाएं नीम और पीपल

क्या क्रिएटनीन का लेवल बिगड़ गया है.?
क्या बगैर किसी अंग्रेजी दवाइयों के सामान्य करना चाहते हैं.?
तो आप देसी और घरेलू नुस्खों से क्रीएटिनिन स्तर को एकदम सामान्य कर सकते हैं..!
जी हां नीम और पीपल को मिलाकर कर सकते हैं किडनी में क्रिएटनीन का स्तर समान्य ?

हमारे शरीर में दोनों गुर्दे खून साफ़ करते हैं और शरीर को डेटोक्सीफी करते हैं, जिससे शरीर के सभी अंग सही तरीके से काम करते रहे।

यदि किडनी को कोई इन्फेक्शन या कोई अन्य बीमारी होती है तो यह अच्छे से काम नहीं कर पाती, जिस वजह से शरीर को और भी कई बीमारिया होने की सम्भावना बढ़ जाती है।

किडनी का रोग एक काफी दर्दनाक तथा कष्टदायक बीमारी है।

कारण

  • खाने की गलत आदतें,
  • व्यस्त जीवनशैली,
  • संक्रमित पानी और
  • वायु प्रदुषण के कारण


आजकल गुर्दे (किडनी) के रोग बढ़ने लगे हैं, जिसके इलाज के लिए डॉक्टर कई बार डायलिसिस की सलाह देते हैं और समस्या गंभीर होने पर किडनी ट्रांसप्लांट अर्थात गुर्दे बदलवाने तक की नौबत आ जाती है। इसलिए आज हम आपको किडनी इन्फेक्शन, फेलियर और डैमेज होने के कारण, लक्षण और उपचार के घरेलु और आयुर्वेदिक उपाय बताने जा रहे हैं। इस विशेष रामबाण उपायों कों करके इस जानलेवा बीमारी से छुटकारा पा सकते सकते हैं।

किडनी की बीमारिया होने के अनजान कारण

कम पानी पीना, कोल्ड ड्रिंक्स का सेवन करना, पेशाब रोकना, पूरी नींद ना लेना, ज्यादा नमक खाना, धूम्रपान करना और शराब पीना, खाने में विटामिन और मिनरल्स की कमी होना आदि किडनी के रोग होने के मुख्य कारण होते हैं। जिन लोगो को शुगर, हाई ब्लड प्रेशर होता है और जिनके परविअर में कभी किसी का किडनी फेलियर या किडनी से जुडी कोई बीमारी हुई हो, उनमे किडनी ख़राब होने की सम्भावना दुसरो से अधिक होती है।

किडनी ख़राब होने के लक्षण

किडनी के रोग को पहचानने का सबसे बड़ा लक्षण है पेशाब करते समय दर्द होना या पेशाब में ब्लड आना।

इसके इलावा ठण्ड लगना, भूख कम लगना, शरीर में सूजन आना, शरीर में थकन और कमजोरी आना, पेशाब में प्रोटीन कि मात्रा अधिकहोना, पेशाब में जलन होना और बार-बार पेशाब आना, ब्लड प्रेशर का बढ़ा रहना, स्किन पर रैशेज़ निकलना और खुजली होना, मुंह का सवाद ख़राब होना और मुँह से बदबू आना आदि भी किडनी के रोग के लक्षण हैं।

किडनी का आयुर्वेदिक, प्राकृतिक और घरेलु उपाय

नीम और पीपल की छाल का काढ़ा:
3 गिलास पानी में 10 ग्राम नीम की छाल और 10 ग्राम पीपल की छाल लेकर आधा रहने तक उबाल कर काढ़ा बना लें।

इस काढ़े का सेवन दिन में 3 से 4 बार रोज़ाना करें करते रहें।

इस प्रयोग को करने से सिर्फ सात दिन में आपके शरीर में क्रिएटिनिन का स्तर व्यवस्थित हो सकता है या सामान्य लेवल तक आ सकता है।

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अच्छा कोलेस्ट्रॉल बढ़ाना है तो करें यह उपाय

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अच्छा कोलेस्ट्रॉल क्या है ?

कोलेस्ट्रॉल कोशिकाओं की दीवारों, नर्वस सिस्टम के सुरक्षा कवच और हॉर्मोस के निर्माण में अहम भूमिका निभाता है। यह प्रोटीन के साथ मिलकर लिपोप्रोटीन बनाता है, जो फैट को खून में घुलने से रोकता है। यह एक वसायुक्त तत्व है, जिसका उत्पादन लिवर करता है। शरीर में दो तरह के कोलेस्ट्रॉल होते हैंअच्छा कोलेस्ट्रॉल जिसे HDL (हाई डेंसिटी लिपोप्रोटीन) कहते हैं एवं बुरा कोलेस्ट्रॉल जिसे LDL ( लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन) कहा जाता है। HDL कोलेस्ट्रॉल हल्का होता है, जो कि रक्त नलिकाओं में जमी वसा को अपने साथ बहा ले जा सकता है। जबकि LDL चिपचिपा और गाढ़ा होता है। इसकी मात्रा अधिक होने पर यह ब्लड वेसेल्स और आर्टरी की दीवारों पर जम जाता है, जिससे रक्त के बहाव में रुकावट आती है। LDL बढ़ने से मोटापा, उच्च रक्तचाप एवं हार्ट अटैक जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

कोलेस्ट्रॉल की जांच कैसे करें ?

कोलेस्ट्रॉल की जांच के लिए लिपिड प्रोफाइल नाम का ब्लड टेस्ट कराया जाता है। किसी स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में कुल कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 200 mg/dl से कम जिसमें HDL 60mg/dl से अधिक और LDL 100 mg/dl से कम होना चाहिए।

अच्छा कोलेस्ट्रॉल बढ़ाने के उपाय :

इन खाद्यों से बढ़ा सकते हैं अच्छा (HDL) कोलेस्ट्रॉल

1- लहसुन –प्रतिदिन प्रात: खाली पेट लहसुन की|दो कलियाँ छीलकर छोटे-छोटे टुकड़े कर पानी के साथ निगल लें। लहुसन में पाए जाने वाले एंजाइम्स बुरे कोलेस्ट्रॉल (LDL) एवं हाई ब्लडप्रेशर को कम करने में सहायक हैं।
2- ड्राईफ्रूट्स -प्रतिदिन प्रात: रात्रि के भीगे हुए 5 बादाम, 2 अखरोट एवं 5 पिस्ता का सेवन शरीर में फाइबर एवं ओमेगा-3 की पूर्ति करता है जोकि बुरे कोलेस्ट्रॉल (LDL) को घटाने और अच्छे कोलेस्ट्रॉल (HDL)को बढ़ाने में सहायक है।
3- ओट्स –ओट्स में बीटा ग्लूकॉन होता है जो कब्ज को दूर करता है। यह LDL कोलेस्ट्रॉल के अवशोषण को रोकता है। इसीलिए नियमित रूप से प्रतिदिन 1 कटोरा ओट्स का सेवन बढ़े हुए कोलेस्ट्रॉल के स्तर में कमी लाता है।
4- अंकुरित अन्न –, दालें और अंकुरित अन्न,रक्त से LDL कोलेस्ट्रॉल को बाहर निकालने में लिवर की मदद करते हैं। ये चीजें अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने में भी सहायक होती हैं।
गठिया के रोगी दालों के सेवन से पूर्व रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा की जांच अवश्य करा लें। यदि यूरिक एसिड बढ़ा हो तो दालों का सेवन कम करें।
5- खट्टे फल एवं नींबू –नींबू प्रजाति के फलों में पाए जाने वाले तत्व शरीर को मेटाबालिज्म को बढ़ाते हैं जोकि कोलेस्ट्रॉल को कम करने में सहायक होता है। इसके लिए प्रात: शौच जाने के पहले गुनगुने पानी में – नींबू का रस पीया जा सकता है। संतरा, मौसमी ,अनन्नास जैसै फलों का सेवन भी लाभदायक है

स्वास्थ्य सम्बंधित समस्या होने पर हेल्पलाइन 7704996699 पर सम्पर्क करें !


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Back Pain (Spine)

Category : Panchakarma at Home

Kati Vasti (कटि वस्ति)

Kati Basti (Vasti) is a traditional Ayurvedic treatment used for lower backache and disorders of lumbosacral region, including slip disc, lumbar spondylosis, sciatica, spinal problems etc. Kati Vasti is a part of external oleation (Snehana) therapy in Ayurveda. It is very safe, non-invasive and green category procedure.

Benefits

Backache
Sciatica
Intervertebral disc protrusion
Lumbar spondylosis
Inflammation of lumber joints characterized by stiffness,
Tenderness and pain
Slip disc

Treatment Duration

Single Sitting : 40 Min.
Total days: 07 Days to 45 Day as directed by Vaidya

Service Cost: ₹ 2000/-


Kati Pichu (कटि पिछु)

Kati Pichu, one of the Purvakarma (पूर्वकर्म) therapies, is considered an effective treatment for diseases of the cranial nerves arising from Vata (वात) disorder. This therapy is very effective for degenerative and painful spinal problems. Some types of pichu are Greeva (Neck region) Pichu, Nabi(Umbilical area) Pichu, Shiro (Head) Pichu and Kati (Lower Back) Pichu. Very useful to cure illnesses like Arthritis and Back pain.

Benefits

Reduces the burning sensation
Backache
Sciatica
Intervertebral disc protrusion
Lumbar spondylosis
Tenderness and pain
Slip disc
It helpful in curing alignment of back region

Treatment Duration

Single Sitting : 40 Min.
Total days: 07 Days to 45 Day as directed by Vaidya

Service Cost: ₹ 1500/-


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    I was Visited at Jivak Ayurveda for dengue on 26th August 2016. From day one I have been taken good care of by the Jivak team. I felt like I was treated by my own family. I was also very happy about a patient care attendant who gave me a sponge bath and also came to talk to me when ever possible to reduce my dengue anxiety. He even noticed the small red spots on my back and reported to the nurse. It was very nice to see so much compassion. Hats off to all of you. I made it a point to take the na… Read more

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