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कब्ज के लिए प्राकृतिक उपचार

कब्ज होने का अर्थ है आपका पेट ठीक तरह से साफ नहीं हुआ है या आपके शरीर में तरल पदार्थ की कमी है। कब्ज के दौरान व्यक्ति तरोजाता महसूस नहीं कर पाता। अगर आपको लंबे समय से कब्ज रहता है और आपने इस बीमारी का इलाज नहीं कराया है तो ये एक भयंकर बीमारी का रूप ले सकती है। कब्ज होने पर व्यक्ति को पेट संबंधी दिक्कते भी होती हैं, जैसे पेट दर्द होना, ठीक से फ्रेश होने में दिक्कत होना, शरीर का मल पूरी तरह से न निकलना इत्यादि।

कब्ज के लिए प्रभावी प्राकृतिक उपचार तो मौजूद है ही साथ ही इस उपचार के माध्यम से भी कब्ज को दूर किया जा सकता है।

आइए जानें कब्ज के लिए कौन-कौन से आयुर्वेदिक उपचार मौजूद हैं।

• कब्ज होने पर अधिक मात्रा में पानी पीने की सलाह दी जाती है, गर्म पानी पीने से फ़ायदा होता हैं।
पानी की कमी से आंतों में मल सूख जाता है और मल निष्कासन में जोर लगाना पडता है।
इसलिये कब्ज से परेशान रोगियों के लिये सर्वोत्तम सलाह तो यह है कि मौसम के मुताबिक 24 घंटे में 3 से 5 लिटर पानी पीने की आदत डालना चाहिये।
सुबह उठते ही सवा लिटर पानी पीयें।
फ़िर 3-4 किलोमिटर तेज चाल से भ्रमण करें।
शुरू में कुछ अनिच्छा और असुविधा महसूस होगी लेकिन धीरे-धीरे आदत पड जाने पर कब्ज जड से मिट जाएगी।
• कब्ज के रोगी को तरल पदार्थ व सादा भोजन जैसे दलिया, खिचड़ी इत्यादि खाना चाहिए।
• कब्ज के दौरान कई बार सीने में भी जलन होने लगती हैं। ऐसे में एसीडिटी होने और कब्ज होने पर शक्कर और घी को मिलाकर खाली पेट खाना चाहिए।
• हरी सब्जियों और फलों जैसे पपीता, अंगूर, गन्ना, अमरूद, टमाटर, चुकंदर, अंजीर फल, पालक का रस या कच्चा पालक, किश्मिश को पानी में भिगोकर खाने, रात को मुनक्का खाने से कब्ज दूर करने में मदद मिलती है।
• दरअसल, पानी और तरल पदार्थों की कमी कब्ज का मुख्य कारण है। तरल पदार्थों की कमी से मल आंतों में सूख जाता है और मल निष्कासन में जोर लगाना पडता है। जिससे कब्ज रोगी को खांसी परेशानी होने लगती है।
• इसबगोल की की भूसी कब्ज में परम हितकारी है। दूध या पानी के साथ 2-3 चम्मच इसबगोल की भूसी रात को सोते वक्त लेना फ़ायदे मंद है। दस्त खुलासा होने लगता है।यह एक कुदरती रेशा है और आंतों की सक्रियता बढाता है।
• खाने में हरे पत्तेदार सब्जियों के अलावा रेशेदार सब्जियों का सेवन खासतौर पर करना चाहिए। इससे शरीर में तरल पदार्थों में बढ़ोत्तरी होती है।
• चिकनाई वाले पदार्थ भी कब्ज के दौरान लेना अच्छा रहता है।
• गर्म पानी और गर्म दूध कब्ज दूर करते हैं। रात को गर्म दूध में केस्टनर यानी अरंडी का तेल डालकर पीना कब्ज को दूर करने में कारगार है।
• नींबू को पानी में डालकर, दूध में घी डालकर, गर्म पानी में शहद डालकर पीने से कब्ज दूर होती है। सुबह-सुबह गर्म पानी पीने से भी कब्ज को दूर करने में बहुत मदद मिलती है।
• अलसी के बीज का पाउडर पानी के साथ लेने से कब्ज में राहत मिलती है
इस तरह के प्रभावी प्राकृतिक उपचार और आयुर्वेदिक उपचार के माध्यम से कब्ज को स्थायी रूप से आसानी से दूर किया जा सकता है।
• दो सेव प्रतिदिन खाने से कब्ज में लाभ होता है।
• अमरूद और पपीता ये दोनो फ़ल कब्ज रोगी के लिये अमॄत समान है। ये फ़ल दिन मे किसी भी समय खाये जा सकते हैं। इन फ़लों में पर्याप्त रेशा होता है और आंतों को शक्ति देते हैं। मल आसानी से विसर्जित होता है।
• अंगूर मे कब्ज निवारण के गुण हैं। सूखे अंगूर याने किश्मिश पानी में 3 घन्टे गलाकर खाने से आंतों को ताकत मिलती है और दस्त आसानी से आती है। जब तक बाजार मे अंगूर मिलें नियमित रूप से उपयोग करते रहें।
• अंजीर कब्ज हरण फ़ल है। 3-4 अंजीर फ़ल रात भर पानी में गलावें। सुबह खाएं। आंतों को गतिमान कर कब्ज का निवारण होता है।
• मुनक्का में कब्ज नष्ट करने के गुण हैं। 7 नग मुनक्का रोजाना रात को सोते वक्त लेने से कब्ज रोग का स्थाई समाधान हो जाता है।
कब्जियत की शिकायत होने पर हींग के चूर्ण में थोड़ा सा मीठा सोड़ा मिलाकर रात्रि को फांक लें, सबेरे शौच साफ होगा।

किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य समस्या होने पर हेल्पलाइन 7704996699 पर सम्पर्क करें !


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हार्ट अटैक का कारण और निवारण

आजकल हाल ही में हृदयाघात अधिक देखे जा रहे हैं इसका सबसे बड़ा कारण वैक्सीनेशन भी है -तो आप सभी को मैं एक योग बताने जा रहा हूं उसको प्रयोग करें आपकी हृदय में ब्लॉकेज भी होगी तो वह भी नष्ट हो जाएगी -हार्ट अटैक आपको नहीं आएगा -हृदय के ब्लॉकेज एवं संपूर्ण शरीर के ब्लॉकेज ठीक हो जाएंगे|

दिल दिमाग को पुष्ट करता है यह घबराहट बेचैनी डर आदि को ठीक करता है, दिल दिमाग को बब्बर शेर की तरह बनता है एक बार इस्तेमाल कर के लाभ प्राप्त अवशय करे -यह सभी प्रकार के प्रकृति वाले व्यक्ति सेवन कर सकते हैं, वैक्सीनेशन के प्रभाव से बचने के लिए बहुत ही उत्तम योग है बनाएं और लाभ प्राप्त करें दिल दिमाग को पुष्ट करके स्वस्थ्य को बनाए रखें ,

 

  • योगेंद्र रस1 ग्राम
  • मोती पिष्टी5 ग्राम
  • अकीक पिष्टी 10 ग्राम
  • जहरमोहरा पिष्टी 10 ग्राम
  • नागार्जुनअभ्रक भस्म 5 ग्राम
  • सिद्ध मकरध्वज 1 ग्राम

इन सभी की एक से दो घंटे घुटाई करके 60 पुड़िया बना ले बराबर मात्रा कि, 1-1पुडिया सुबह शाम शहद के साथ सेवन करें, भोजन के1 घंटे पहले ले। भोजन के बाद अर्जुनारिष्ट सारस्वतारिष्ट कुमारीआसव दो दो दो ढक्कन ले बराबर पानी मिलाकर।

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बढ़ा है यूरिक एसिड तो अपनाएँ समाप्त करने का यह अचूक नुस्खा

जोड़ों के दर्द में आमतौर पर रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है , प्रस्तुत है इसे कम करने का एक घरेलू उपाय –
25-30 ग्राम पुदीना की पत्तियाँ व उसके कोमल तने को एक गिलास पानी में उबालें 8-10 उफान आने पर उसे छानकर पी लें | कुछ दिन प्रातः खाली पेट इसका सेवन करने से रक्त से यूरिक एसिड की मात्रा कम होने लगती है |

जाने यूरिक एसिड के बारे में।अगर कभी आपके पैरों उंगलियों, टखनों और घुटनों में दर्द हो तो इसे मामूली थकान की वजह से होने वाला दर्द समझ कर अनदेखा न करें यह आपके शरीर में यूरिक एसिड बढ़ने का लक्षण हो सकता है।

इस स्वास्थ्य समस्या को गाउट आर्थराइट्सि कहा जाता है।

क्यों होता है ऐसा? 
1. यह समस्या शरीर में प्रोटीन की अधिकता के कारण होती है। प्रोटीनएमिनो एसिड के संयोजन से बना होता है। पाचन की प्रक्रिया के दौरान जब प्रोटीन टूटता है तो शरीर में यूरिक एसिड बनता है, जो कि एक तरह का एंटी ऑक्सीडेंट होता है।

आमतौर सभी के शरीरमें सीमित मात्रा में यूरिक एसिड का होना सेहत के लिए फायदेमंद साबित होताहै, लेकिन जब इसकी मात्रा बढ़ जाती है तो रक्त प्रवाह के जरिये पैरों की उंगलियों, टखनों, घुटने, कोहनी, कलाइयों और हाथों की उंगलियों के जोड़ों में इसके कण जमा होने लगते हैं और इसी के रिएक्शन से जोड़ों में दर्द और सूजन होने लगता है।

2. यह आधुनिक अव्यवस्थित जीवनशैली से जुड़ी स्वास्थ्य समस्या है।

इसी वजह से 25 से 40 वर्ष के युवा पुरुषों में यह समस्या सबसे अधिक देखने को मिलती है। स्त्रियों में अमूमन यह समस्या 50वर्ष की उम्र के बाद देखने को मिलती है।

3. रेड मीट, सी फूड, रेड वाइन, प्रोसेस्डचीज, दाल, राजमा, मशरूम, गोभी, टमाटर, पालक आदि के अधिक मात्रा में सेवन से भी यूरिक एसिड बढ़ जाता है।

4.अधिक उपवास या क्रैश डाइटिंग से भी यह समस्या बढ़ जाती है।

5. आमतौर पर किडनी रक्त में मौजूद यूरिक एसिड की अतिरिक्त मात्रा को यूरिन के जरिये बाहर निकाल देती है, लेकिन जिन लोगों की किडनी सही ढंग से काम नहीं कर रही होती, उनके शरीर में भी यूरिक एसिड बढ़ जाता है।

6.अगर व्यक्ति की किडनी भीतरी दीवारोंकी लाइनिंग क्षतिग्रस्त हो तो ऐसे में यूरिक एसिड बढ़ने की वजह से किडनी में स्टोन भी बनने लगता है।

बचाव

1. अधिक से अधिक मात्रा में पानी पीने की कोशिश करें।

इससे रक्त में मौजूद अतिरिक्त यूरिक एसिड यूरिन के जरिये शरीर से बाहर निकल जाता है।

2. दर्द वाले स्थान पर कपड़े में लपेटकरबर्फ की सिंकाई फायदेमंद साबित होती है।

3. संतुलित आहार लें- जिसमें, कार्बोहइड्रेट, प्रोटीन, फैट, विटमिन और मिनरल्स सब कुछ सीमित और संतुलित मात्रा में होना चाहिए। आम तौर पर शाकाहारी भारतीय भोजन संतुलित होता है और उसमें ज्यादा फेर-बदल की जरूरत नहीं होती।

4. नियमित एक्सराइज इस समस्या से बचने का सबसे आसान उपाय है क्योंकि इससे शरीर में अतिरिक्त nu प्रोटीन जमा नहीं हो पाता।

5. इस समस्या से ग्रस्त लोगों को नियमित रूप से दवाओं का सेवन करते हुए,हर छह माह के अंतराल पर यूरिक एसिड की जांच करानी चाहिए।

स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या होने पर हेल्पलाइन 7704996699 पर सम्पर्क करें !


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सामान्य वात रोग: वात कण्टक (मौच-एड़ी का दर्द)

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किसी अस्थिसंधि (ज्वाइंट) के स्नायु (लिगामेन्ट) , जब अपनी क्षमता से अधिक खिंच जाते हैं , तो इस प्रकार की चोट को मोच (sprain) कहते हैं। चोट लगने के साथ ही, सूजन शुरू हो जाती है। मोच किसी भी जोड़ में हो सकता है। पर, एड़ी और कलाई के जोड़ पर ज्यादा मोच आती है।

पैर की एडि़यों में स्थित वात विषम ( ऊंची – नीची ) भूमि पर, पैर रखने से, उसमें दर्द होता है , तो उसे ‘ वात कण्टक ‘ रोग कहते है । अत्यधिक चलने – फिरने से या वात कफ मिलकर,मिलकर, संधियों ( जोडो़ ) में स्थित रक्तवाहिनीयों को खराब कर देता है , तो इस रोग की उत्पत्ति होती है । इस रोग में , गुल्फ – संधियों में दर्द के साथ, सूजन हो जाती है । इससे संधियों में खिचांव होने लगता है । रोगी चलने – फिरने में कठिनाई अनुभव करता है ।

उपचार

1- गर्म पानी में , तारपीन का तेल डालकर, उस पानी से दर्द वाले स्थान की सिकाई करें । ऐसा करने से, सूजन और दर्द में शीघ्रता से आराम होता है ।
2 शहद, चूना व पिसी प्याज को मिलाकर, मौच वाले स्थान पर लेप करने से, सूजन व दर्द में तुरंत लाभ होता है ।
3- आमाहल्दी , प्याज, कालाजीरा, मुसव्वर को कांजी में पीसकर व सरसों के तेल में मिलाकर, उसे गर्म करके मौच पर भाप देने से, आराम मिलता है ।

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आयुर्वेद में ऋतुचर्या (Ritucharya in Ayurveda)

बसंत ऋतु (14 मार्च से 14 मई) को बहुत महत्वपूर्ण समझा जाता है। भारतीय सभ्यता में उदित आयुर्वेद के अनुसार ऋतुचर्या का मुख्य प्रयोजन मनुष्य के शरीर को रोगों से दूर रखकर स्वस्थ रखना है। हमारा शरीर पाँच तत्वों (भूमि, आकाश, अग्नि, वायु, और जल) से बना है और इसमें सात धातुएँ शामिल हैं। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए इन सभी तत्वों और धातुओं का संतुलन आवश्यक होता है।

इन सभी की एक-एक अग्नियां हैं और एक अतिरिक्त अग्नि है जिसे जठराग्नि बोलते हैं, जो भोजन पाचन से संबंधित है। ऋतुओं में बदलाव के साथ-साथ इन अग्नियों के तेज और शांत होने की गति में भी बदलाव आता रहता है और अगर हम इनको संतुलित रखने के लिए सही भोजन नहीं करेंगे तो ये दोषों और बीमारियां का रूप ले लेंगी। तो इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि हम ऋतु के अनुसार अपने खान-पान को बदलें।

आइए जानें की आखिर में ऋतुचर्या क्या है

हम आज के समय चल रही ऋतु की बात करेंगे जिस से आपको लाभ हो सके

वसंत ऋतु की बात करें तो हिन्दू पंचांग में ये चैत्र से वैशाख महीने तक को और इंग्लिश कैलेंडर में मार्च, अप्रैल, और मई महीनों को बोलते हैं। यह शीत और ग्रीष्म ऋतु का संधि समय होता है। इस समय न ही अधिक ठण्ड पड़ती है और न गर्मी।

शीत ऋतु में जमा हुआ कफ इस ऋतु में सूर्य की किरणों की वजह से पिघलने लगता है और जठराग्नि भी शांत हो जाती है। मौसम में परिवर्तन के साथ लोगों के स्वास्थ्य में भी गहरा असर होने लगता है। इस ऋतु में बीमारियों को दूर रखने के लिए कफ में वृद्धि करने वाला भोजन करने की सलाह दी जाती है। आपको लवण, मधुर, और अम्ल रस से युक्त खाना खाना चाहिए।

बसंत ऋतु के स्वस्थ रहने के आहार

कड़वे रस वाले द्रव्य, बैंगन, नीम, चन्दन का जल, विजयसार, अदरक का रस, मुलेठी, काली मिर्च, तुलसी, मुनक्का, अरिष्ट, आसव, फलों का रस, खिचड़ी, खांड, दलीय, मूंग की दाल, शहद, पुराने जौ, गेहूँ , मक्खन लगी रोटी, भीगा व अंकुरित चना, राई, नीबू, खास का जल, धान की खील, आंवला, बहेड़ा, हरड़, पीपल, सोंठ, जिमीकंद क कच्ची मूली, केले के फूल, पालक, लहसुन, करेला, खजूर, मलाई, रबड़ी, आदि।

आयुर्वेद औषधि को जरूरत नहीं सिर्फ आहार विहार से किसी भी रोग पर विजय पाई जा सकती है

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शरीर को रखे रोगमुक्त अपनाएं अल्कालिन (क्षारीय) भोजन और दिन चर्या जानिये स्वस्थ शरीर का pH मान और जाने इससे जुड़ी बीमारिया

जीवनशैली में परिवर्तन और उसी सन्दर्भ में शरीर की एसिडिक कंडीशन को अल्कलाइन में बदलने से अनेक रोगों से मुक्ति मिल जाती है।

योग अपनाए सुंदर जीवन पावे

शरीर को कर लो अल्कलाइन हार्ट, कैंसर, किडनी, थायराइड, शुगर, आर्थराइटिस, सोरायसिस भी पास नहीं फटकेगा।

कोई भी रोग हो चाहे कैंसर भी, Alkaline वातावरण में पनप नहीं सकता। डायबिटीज, कैंसर, हार्ट, ब्लड प्रेशर, जोड़ों का दर्द, UTI – पेशाब के रोग, ऑस्टियोपोरोसिस , सोरायसिस, यूरिक एसिड का बढ़ना, गठिया, थायराइड , गैस, बदहज़मी, दस्त, हैज़ा, थकान, किडनी के रोग, पेशाब सम्बंधित रोग, पत्थरी और अन्य कई प्रकार के जटिल रोग। इन सबको सही करने का सबसे सही और सस्ता उपयोग है शरीर को एल्कलाइन कर लेना।

पहले तो जानिए पी एच लेवल क्या है?

इसको समझने के लिए सबसे पहले आपको PH को समझना होगा, हमारे शरीर में अलग-अलग तरह के द्रव्य पाए जाते हैं, उन सबकी PH अलग अलग होती है,

हमारे शरीर की सामान्य Ph 7.35 से 7.41 तक होती है,

PH पैमाने में PH 1 से 14 तक होती है, 7 PH न्यूट्रल मानी जाती है, यानी ना एसिडिक और ना ही एल्कलाइन। 7 से 1 की तरफ ये जाती है तो समझो एसिडिटी यानी अम्लता बढ़ रही है, और 7 से 14 की तरफ जाएगी तो Alkalinity यानी क्षारीयता बढ़ रही है।

अगर हम अपने शरीर के अन्दर पाए जाने वाले विभिन्न द्रव्यों की PH को Alkaline की तरफ लेकर जाते हैं। तो हम बहुत सारी बीमारियों के मूल कारण को हटा सकते हैं, और उनको हमेशा के लिए समाप्त कर सकते हैं।

Cancer and PH – कैंसर

उदहारण के तौर पर सभी तरह के कैंसर सिर्फ Acidic Environment में ही पनपते हैं।
क्योंकि कैंसर की कोशिका में शुगर का ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में Fermentation होता है जिससे अंतिम उत्पाद के रूप में लैक्टिक एसिड बनता है और यही लैक्टिक एसिड Acidic Environment पैदा करता है जिस से वहां पर एसिडिटी बढती जाती है और कैंसर की ग्रोथ बढती जाती है। ये हम सभी जानते हैं कि कैंसर होने का मूल कारण यही है कि कोशिकाओं में ऑक्सीजन बहुत कम मात्रा में और ना के बराबर पहुँचता है। वहां पर मौजूद ग्लूकोस लैक्टिक एसिड में बदलना शुरू हो जाता है।

Gout and PH – गठिया

दूसरा उदहारण है– Gout जिसको गठिया भी कहते हैं, इसमें रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे रक्त एसिडिक होना शुरू हो जाता है। जितना ब्लड अधिक एसिडिक होगा उतना ही यूरिक एसिड उसमे ज्यादा जमा होना शुरू हो जायेगा। अगर हम ऐसी डाइट खाएं जिससे हमारा पेशाब अल्कलाइन हो जाए तो ये बढ़ा हुआ यूरिक एसिड अल्कलाइन पेशाब में आसानी से बाहर निकल जायेगा।

UTI and PH – पेशाब का संक्रमण

तीसरा उदहारण है — UTI जिसको Urinary tract infection कहते हैं, इसमें मुख्य रोग कारक जो बैक्टीरिया है वो E.Coli है, ये बैक्टीरिया एसिडिक वातावरण में ही ज्यादा पनपता है। इसके अलावा Candida Albicanes नामक फंगस भी एसिडिक वातावरण में ही ज्यादा पनपता है। इसीलिए UTI तभी होते हैं जब पेशाब की PH अधिक एसिडिक हो।

Kidney and PH – किडनी

चौथा एक और उदाहरण देते हैं किडनी की समस्या मुख्यतः एसिडिक वातावरण में ही होती है, अगर किडनी का PH हम एल्कलाइन कर देंगे तो किडनी से सम्बंधित कोई भी रोग नहीं होगा। मसलन क्रिएटिनिन, यूरिक एसिड, पत्थरी इत्यादि समस्याएँ जो भी किडनी से सम्बंधित हैं वो नहीं होंगी।

वर्तमान स्थिति

आजकल हम जो भी भोजन कर रहें हैं वो 90 प्रतिशत तक एसिडिक ही है, और फिर हमारा सवाल होता है कि हम सही क्यों नहीं हो रहे ? या फिर कहते हैं कि हमने ढेरों इलाज करवाए मगर आराम अभी तक नहीं आया। बहुत दवा खायी मगर फिर भी आराम नहीं हो रहा। तो उन सबका मुख्यः कारण यही है कि उनका PH लेवल कम हो जाना अर्थात एसिडिक हो जाना।

कैसे बढ़ाएं PH level ?

इन सभी Alkaline क्षारीय खाद्य पदार्थो का सेवन नित्य करिये…

फल – सेब, खुमानी, ऐवोकैडो, केले, जामुन, चेरी, खजूर, अंजीर, अंगूर, अमरुद, नींबू, आम, जैतून, नारंगी, संतरा,पपीता,आड़ू, नाशपाती, अनानास, अनार, खरबूजे, किशमिश, इमली इत्यादि।

  • इसके अलावा तुलसी, सेंधा नमक, टमाटर, अजवायन, दालचीनी, बाजरा इत्यादि।

मुख्य बात –: आज सभी घरों में कंपनियों का पैकेट वाला आयोडीन सफेद नमक प्रयोग हो रहा है, ये धीमा ज़हर है, यह अम्लीय(acidic) होता है और इसमें सामान्य से आयोडीन की अधिक मात्रा भी होती है, जो अत्यंत घातक है शरीर के लिए। इस नमक से हृदय रोग, थायराइड , कैंसर, लकवा, नपुंसकता, मोटापा,एसिडिटी, मधुमेह, किडनी रोग, लिवर रोग,बाल झड़ना, दृष्टि कम होना जैसे अनेकों रोग कम आयु से बड़ी आयु तक के सभी घर के सदस्यों को हो रहे हैं। जो पैकेट नमक के प्रयोग से पूर्व कभी नही होते थे। इसलिए आयोडीन की कमी का झूठ फैलाकर बीमारी का सामान हर घर तक पहुंचाया गया, जिसने दवाइयों के कारोबार को अरबो, खरबो का लाभ पहुंचाया है।

इसके विकल्प के रूप में आज से ही सेंधा नमक का प्रयोग शुरू कर दीजिए। यह पूरी तरह से प्राकृतिक और क्षारीय (Alkaline) होता है और आयोडीन भी सामान्य मात्रा में होता है। अन्यथा आपके सारे उपचार असफल सिद्ध होते रहेंगे, क्योंकि हर भोजन को सफेद नमक ज़हरीला बना देगा, चाहे कितनी अच्छी सब्जी क्यों न बनाएं आप।
करे योग रहे निरोग

AlkaLine Water बनाने की विधि

रोगी हो या स्वस्थ उसको यहाँ बताया गया ये Alkaline Water ज़रूर पीना है।

इसके लिए ज़रूरी क्षारीय सामान
1 नीम्बू,
25 ग्राम खीरा,
5 ग्राम अदरक,
21 पोदीने की पत्तियां,
21 पत्ते तुलसी,
आधा चम्मच सेंधा नमक,
चुटकी भर मीठा सोडा।

अभी इन सभी चीजों को लेकर पहले छोटे छोटे टुकड़ों में काट लीजिये, निम्बू छिलके सहित काटने की कोशिश करें। एक कांच के बर्तन में इन सब चीजों को डाल दीजिये और इसमें डेढ़ गिलास पानी डाल दीजिये, पूरी रात इस पानी को ढक कर पड़ा रहने दें। और सुबह उठ कर शौच वगैरह जाने के बाद खाली पेट सब से पहले इसी को छान कर पीना है। छानने से पहले इन सभी चीजों को हाथों से अच्छे से मसल लीजिये और फिर इसको छान कर पीजिये।

सावधानी— चाय, कॉफ़ी, चीनी , पैकेट वाला सफेद नमक ये सब ज़हर के समान हैं , अगर आप किसी रोग से ग्रस्त हैं तो सबसे पहले आपको इनको छोड़ना होगा और इसके साथ ऊपर बताये गए फल सब्जियां कच्चे ही सेवन करें।

21 दिन तक इस पानी का सेवन करके देखें। यदि आपको लाभ होता है तो इसे आप 2 से 3 महीने तक जारी रखें।

अधिक जानकारी के लिए हेल्पलाइन 7704996699 पर सम्पर्क करें !


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मल बद्धता (constipation)- आयुर्वेदीय विचार व चिकित्सा!

रोगी जब आयुर्वेदिक चिकित्सक के पास मलबद्धता (constipation) की शिकायत लेकर आता है तो 90% चिकित्सक रोगी को वतनलोमक या रेचन औषधि देते है। आप सभी इससे सहमत होंगे, परंतु क्या यह उचित चिकित्सा है ? ऐसे उपचार से शुरू में कुछ रोगियों में लाभ भी देखने को मिलता है, परंतु कुछ समय में रोगी फिर से वही परेशानी लेकर या तो आपके पास दोबारा आता है या फिर से allopathic laxative या फिर मार्केट में उपलब्ध विरेचक कल्प इत्यादि लेना शुरू कर देता है। क्या आपने कभी विचार किया है की छोटी सी दिखने वाली इस समस्या का उपचार इतना कठिन क्यों है, अथवा यह रोगी को सालो तक क्यों सत्ताती रहती है। आइए इस विषय में कुछ तथ्यो पर विचार करे।
मल, पाचन-तंत्र का सबसे आख़िरी उत्पाद होता है। मल की प्रकृति इस बात पर निर्भर करती है की किस प्रकार का आहार आप लेते है, किस समय पर लेते है तथा, किस मानसिक भाव से लेते है। आहार में क्या खाए क्या ना खाएँ इसकी जानकारी आयुर्वेद में विस्तार पूर्वक आयी है, इसलिए उसका अध्ययन करे और वैसे ही रोगी को भी निर्देश दे। दूसरा पड़ाव है की आहार काल को फ़िक्स करना। तीसरा की आहार कारते समय पूर्ण ध्यान आहार पर रहे ना की अन्य कही और। क्योंकि स्रोतस का निर्माण तथा उसकी सेहत उन्मे बहाने वाले द्रव्यों पर ही निर्भर होती है, वैसे ही इन नियमो का पालन कर आहार का पाचन ठीक होता है तथा मल ठीक बनता है । अब इस मल को बाहर निकालने के लिए जिस अपान वायु की ज़रूरत रहती है वह तभी ठीक रहेगी जब रोगी मल विसर्जन सुबह वात के काल (सुबह 2-6 बजे ) में करे। यही कारण है की सुबह जितने जल्दी उठा जाए उतना ही असानी से मल त्याग होता है।

सही जानकारी और उचित इलाज के लिए हेल्पलाइन 7704996699 पर सम्पर्क करें…


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अच्छा कोलेस्ट्रॉल बढ़ाना है तो करें यह उपाय

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अच्छा कोलेस्ट्रॉल क्या है ?

कोलेस्ट्रॉल कोशिकाओं की दीवारों, नर्वस सिस्टम के सुरक्षा कवच और हॉर्मोस के निर्माण में अहम भूमिका निभाता है। यह प्रोटीन के साथ मिलकर लिपोप्रोटीन बनाता है, जो फैट को खून में घुलने से रोकता है। यह एक वसायुक्त तत्व है, जिसका उत्पादन लिवर करता है। शरीर में दो तरह के कोलेस्ट्रॉल होते हैंअच्छा कोलेस्ट्रॉल जिसे HDL (हाई डेंसिटी लिपोप्रोटीन) कहते हैं एवं बुरा कोलेस्ट्रॉल जिसे LDL ( लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन) कहा जाता है। HDL कोलेस्ट्रॉल हल्का होता है, जो कि रक्त नलिकाओं में जमी वसा को अपने साथ बहा ले जा सकता है। जबकि LDL चिपचिपा और गाढ़ा होता है। इसकी मात्रा अधिक होने पर यह ब्लड वेसेल्स और आर्टरी की दीवारों पर जम जाता है, जिससे रक्त के बहाव में रुकावट आती है। LDL बढ़ने से मोटापा, उच्च रक्तचाप एवं हार्ट अटैक जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

कोलेस्ट्रॉल की जांच कैसे करें ?

कोलेस्ट्रॉल की जांच के लिए लिपिड प्रोफाइल नाम का ब्लड टेस्ट कराया जाता है। किसी स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में कुल कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 200 mg/dl से कम जिसमें HDL 60mg/dl से अधिक और LDL 100 mg/dl से कम होना चाहिए।

अच्छा कोलेस्ट्रॉल बढ़ाने के उपाय :

इन खाद्यों से बढ़ा सकते हैं अच्छा (HDL) कोलेस्ट्रॉल

1- लहसुन –प्रतिदिन प्रात: खाली पेट लहसुन की|दो कलियाँ छीलकर छोटे-छोटे टुकड़े कर पानी के साथ निगल लें। लहुसन में पाए जाने वाले एंजाइम्स बुरे कोलेस्ट्रॉल (LDL) एवं हाई ब्लडप्रेशर को कम करने में सहायक हैं।
2- ड्राईफ्रूट्स -प्रतिदिन प्रात: रात्रि के भीगे हुए 5 बादाम, 2 अखरोट एवं 5 पिस्ता का सेवन शरीर में फाइबर एवं ओमेगा-3 की पूर्ति करता है जोकि बुरे कोलेस्ट्रॉल (LDL) को घटाने और अच्छे कोलेस्ट्रॉल (HDL)को बढ़ाने में सहायक है।
3- ओट्स –ओट्स में बीटा ग्लूकॉन होता है जो कब्ज को दूर करता है। यह LDL कोलेस्ट्रॉल के अवशोषण को रोकता है। इसीलिए नियमित रूप से प्रतिदिन 1 कटोरा ओट्स का सेवन बढ़े हुए कोलेस्ट्रॉल के स्तर में कमी लाता है।
4- अंकुरित अन्न –, दालें और अंकुरित अन्न,रक्त से LDL कोलेस्ट्रॉल को बाहर निकालने में लिवर की मदद करते हैं। ये चीजें अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने में भी सहायक होती हैं।
गठिया के रोगी दालों के सेवन से पूर्व रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा की जांच अवश्य करा लें। यदि यूरिक एसिड बढ़ा हो तो दालों का सेवन कम करें।
5- खट्टे फल एवं नींबू –नींबू प्रजाति के फलों में पाए जाने वाले तत्व शरीर को मेटाबालिज्म को बढ़ाते हैं जोकि कोलेस्ट्रॉल को कम करने में सहायक होता है। इसके लिए प्रात: शौच जाने के पहले गुनगुने पानी में – नींबू का रस पीया जा सकता है। संतरा, मौसमी ,अनन्नास जैसै फलों का सेवन भी लाभदायक है

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विरुद्ध आहार है धीमा जहर

विरुद्ध आहार 2 या अधिक भोजन का वह संयोजन है जो उनके गुण / वीर्य आदि में मिल जाता है। उनके बीच इस तरह के एक विरोधी गुण के परिणामस्वरूप भोजन है, जो न तो पचता है और न ही समाप्त होता है। यह धीमे जहर के रूप में कार्य करता है जिससे हमारे शरीर में अनेक रोग और समस्याएं उत्पन्न होती हैं।

विरुधाहार को समझें

देश विरुद्ध

उन खाद्य पदार्थों से बचें जो पर्यावरण के तापमान से मेल नहीं खाते हैं। उदा. सरसों का तेल गर्म होने के कारण उत्तरी (North) भारत में और नारियल का तेल ठंडा होने के कारण दक्षिणी (South) भारत में प्रयोग किया जाता है। २. काल विरुद्ध
ऐसे भोजन से परहेज करें जो मौसम या दिन के समय के अनुकूल न हो। दिनचर्या और ऋतुचर्या का पालन करे।
उदा. जामुन का फल सुबह खाली पेट लेने से वात दोष बढ़ता है। रात के समय दही नहीं खाना चाहिए। ३. अग्नि विरुद्ध
उन चीजों से बचें जो हमारे पेट में अग्नि की शक्ति को कम करती हैं। जैसे भूख न लगने पर खाना, ठंडी चीजें खाना आदि। दो भोजन के मध्य में 4 घंटे का अंतर रखे।

मात्रा विरुद्ध

हर भोजन की एक सीमा होती है जिसके भीतर हमें खाना चाहिए। हमें अपनी पाचन क्षमता की सीमा का भी पालन करना चाहिए। भूक ना होने पर भोजन नहीं करना चाहिए।

सात्म्य विरुद्ध

जो भोजन हमारे मन के लिए अप्रिय हो उसे नहीं खाना चाहिए। ६. वातादि दोष विरुध
उन खाद्य पदार्थों से बचें जो हमारे शरीर में वर्तमान में मौजूद दोष को बढ़ाएंगे।
उदा. मधुमेह मे मधुरता बढ़ी रहती है, तो मधुर रस को कम सेवन करना चाहिए।

संस्कार विरुद्ध

खाने से पहले कुछ खाना पकाना/गर्म करना चाहिए और कुछ खाना नहीं खाना चाहिए। उदा. दूध उबाल कर ही पीना चाहिए। दही, शहद को खाने से पहले गर्म नहीं करना चाहिए। धारोष्ण दूध अपवाद है। वह दोहन के 30 मिनट मे सेवन करना चाहिए।

वीर्य विरुध

जो भोजन तासीर में गर्म हो, उसे ठंडी तासीर वाले भोजन के साथ नहीं खाना चाहिए।

कोष्ट विरुद्ध

वही खाएं जो हमारी आंतों की निर्मूलन शक्ति को पूरा करता हो।

अवस्था विरुध

अपनी उम्र, अपने काम/जीवनशैली आदि के अनुसार ही खाएं।

क्रम विरुद्ध (क्रम विरुद्ध)

भोजन करते समय एक विशेष क्रम का पालन करना चाहिए। मीठा, खट्टा, लवण, तिखा, कड़वा और कसैला खाने का शास्त्रीय क्रम है। भोजन को छाछ के साथ समाप्त करें।
भोजन के तुरंत पहले व अंत में पानी न पिएं।
भूख लगने पर पानी न पिएं। भुक लगाने पर ही भोजन करे।
प्यास लगने पर भोजन न करें। प्यास लगने पर ही पानी पिएं।
घी की चीजों का सेवन करने के तुरंत बाद पानी न पिएं।

परिहार विरुद्ध

उन सभी सब्जियों को न मिलाएं जो पाचन की गति को धीरे और अग्नि को मंद करती हो।

स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या होने पर हेल्पलाइन 7704996699 पर सम्पर्क करें!


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हरड़ : पेट रोगों की रामबाण औषधि, शरीर के विकारों को दूर कर बनाए चुस्त, जानिए इसके गुण

कहते है की समस्त रोगों की जड़ पेट में होती है और अगर पेट ठीक तो 90% बीमारियां हमे होती ही नही।

पेट के समस्त रोगों में लाभदायक है हरड़

घरेलू रूप में छोटी हरड़ का ही अधिकतर उपयोग किया जाता है। हरीतकी संपूर्ण शरीर के लिए फायदेमंद है विशेष रूप से कब्ज, बवासीर, पेट के कीड़ों को दूर करने, नेत्र ज्योति व भूख बढ़ाने, पाचन तथा अलग-अलग मौसम में होने वाले रोगों में भी ये प्रभावी होती है।

शरीर में कहीं भी सूजन और घाव में फायदेमंद है। छोटी हरड़ को हल्का घी में फूलने तक भूनकर बारीक पाउडर बनाकर सेवन करें। हरड़ एक चम्मच गुनगुने पानी के साथ लेने से पाचन व कब्ज संबंधी समस्या में लाभ मिलता है। ब्लड प्रेशर, लिवर, खांसी, जुकाम, एलर्जी, एसिडिटी, मोटापा और हृदय संबंधी समस्या में काम आती है

गैस और कब्ज सदा के लिए खत्म करे

काली हरड़ यानि की छोड़ी हरड़ को पानी से धोकर किसी साफ कपड़े से पौंछ कर रख लें। दोनो समय भोजन के पश्चात एक हरड़ या दो हरड़ को मुहँ में रखकर चूस लिया करें। लगभग एक घंटे में हरड़ में घुल जाती है!

हरड़ खत्म हो जाने के बाद अगर आपने हलका सा बिना मशाले वाला गुड़ चूस लिया तो सोने पर सुहागा हो जायेगा।

इससे गैस की शिकायत दूर होती है शौच खुलकर आती है भूख खूब लगने लगती है।

हरड़ के अन्य गुण

  • इससे पाचन शक्ति बढती है।
  • जिगर के रोग और आँतड़ियों की वायु नष्ट होती है रक्त शुद्ध होता है।
  • चर्म रोग नहीं होता है।
  • यह प्रयोग लगातार करने से शरीर को बीमार होने की नोबत ही नही आती है।
  • यह गैस और कब्ज के लिये सर्वश्रेष्ठ दवा है!

क्योकि आयुर्वेद प्राचीन ग्रन्थों व् अपने अनुभव के आधार पर आपको बताते है की हरड़ को आयुर्वेद में माँ का नाम दिया गया है।और आपको पता है माँ कभी किसी को धोखा नही देती है।

स्वास्थय सम्बन्धी समस्या होने पर हेल्पलाइन 7704996699 पर सम्पर्क करें!


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