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मल बद्धता (constipation)- आयुर्वेदीय विचार व चिकित्सा!

रोगी जब आयुर्वेदिक चिकित्सक के पास मलबद्धता (constipation) की शिकायत लेकर आता है तो 90% चिकित्सक रोगी को वतनलोमक या रेचन औषधि देते है। आप सभी इससे सहमत होंगे, परंतु क्या यह उचित चिकित्सा है ? ऐसे उपचार से शुरू में कुछ रोगियों में लाभ भी देखने को मिलता है, परंतु कुछ समय में रोगी फिर से वही परेशानी लेकर या तो आपके पास दोबारा आता है या फिर से allopathic laxative या फिर मार्केट में उपलब्ध विरेचक कल्प इत्यादि लेना शुरू कर देता है। क्या आपने कभी विचार किया है की छोटी सी दिखने वाली इस समस्या का उपचार इतना कठिन क्यों है, अथवा यह रोगी को सालो तक क्यों सत्ताती रहती है। आइए इस विषय में कुछ तथ्यो पर विचार करे।
मल, पाचन-तंत्र का सबसे आख़िरी उत्पाद होता है। मल की प्रकृति इस बात पर निर्भर करती है की किस प्रकार का आहार आप लेते है, किस समय पर लेते है तथा, किस मानसिक भाव से लेते है। आहार में क्या खाए क्या ना खाएँ इसकी जानकारी आयुर्वेद में विस्तार पूर्वक आयी है, इसलिए उसका अध्ययन करे और वैसे ही रोगी को भी निर्देश दे। दूसरा पड़ाव है की आहार काल को फ़िक्स करना। तीसरा की आहार कारते समय पूर्ण ध्यान आहार पर रहे ना की अन्य कही और। क्योंकि स्रोतस का निर्माण तथा उसकी सेहत उन्मे बहाने वाले द्रव्यों पर ही निर्भर होती है, वैसे ही इन नियमो का पालन कर आहार का पाचन ठीक होता है तथा मल ठीक बनता है । अब इस मल को बाहर निकालने के लिए जिस अपान वायु की ज़रूरत रहती है वह तभी ठीक रहेगी जब रोगी मल विसर्जन सुबह वात के काल (सुबह 2-6 बजे ) में करे। यही कारण है की सुबह जितने जल्दी उठा जाए उतना ही असानी से मल त्याग होता है।

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अच्छा कोलेस्ट्रॉल बढ़ाना है तो करें यह उपाय

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अच्छा कोलेस्ट्रॉल क्या है ?

कोलेस्ट्रॉल कोशिकाओं की दीवारों, नर्वस सिस्टम के सुरक्षा कवच और हॉर्मोस के निर्माण में अहम भूमिका निभाता है। यह प्रोटीन के साथ मिलकर लिपोप्रोटीन बनाता है, जो फैट को खून में घुलने से रोकता है। यह एक वसायुक्त तत्व है, जिसका उत्पादन लिवर करता है। शरीर में दो तरह के कोलेस्ट्रॉल होते हैंअच्छा कोलेस्ट्रॉल जिसे HDL (हाई डेंसिटी लिपोप्रोटीन) कहते हैं एवं बुरा कोलेस्ट्रॉल जिसे LDL ( लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन) कहा जाता है। HDL कोलेस्ट्रॉल हल्का होता है, जो कि रक्त नलिकाओं में जमी वसा को अपने साथ बहा ले जा सकता है। जबकि LDL चिपचिपा और गाढ़ा होता है। इसकी मात्रा अधिक होने पर यह ब्लड वेसेल्स और आर्टरी की दीवारों पर जम जाता है, जिससे रक्त के बहाव में रुकावट आती है। LDL बढ़ने से मोटापा, उच्च रक्तचाप एवं हार्ट अटैक जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

कोलेस्ट्रॉल की जांच कैसे करें ?

कोलेस्ट्रॉल की जांच के लिए लिपिड प्रोफाइल नाम का ब्लड टेस्ट कराया जाता है। किसी स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में कुल कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 200 mg/dl से कम जिसमें HDL 60mg/dl से अधिक और LDL 100 mg/dl से कम होना चाहिए।

अच्छा कोलेस्ट्रॉल बढ़ाने के उपाय :

इन खाद्यों से बढ़ा सकते हैं अच्छा (HDL) कोलेस्ट्रॉल

1- लहसुन –प्रतिदिन प्रात: खाली पेट लहसुन की|दो कलियाँ छीलकर छोटे-छोटे टुकड़े कर पानी के साथ निगल लें। लहुसन में पाए जाने वाले एंजाइम्स बुरे कोलेस्ट्रॉल (LDL) एवं हाई ब्लडप्रेशर को कम करने में सहायक हैं।
2- ड्राईफ्रूट्स -प्रतिदिन प्रात: रात्रि के भीगे हुए 5 बादाम, 2 अखरोट एवं 5 पिस्ता का सेवन शरीर में फाइबर एवं ओमेगा-3 की पूर्ति करता है जोकि बुरे कोलेस्ट्रॉल (LDL) को घटाने और अच्छे कोलेस्ट्रॉल (HDL)को बढ़ाने में सहायक है।
3- ओट्स –ओट्स में बीटा ग्लूकॉन होता है जो कब्ज को दूर करता है। यह LDL कोलेस्ट्रॉल के अवशोषण को रोकता है। इसीलिए नियमित रूप से प्रतिदिन 1 कटोरा ओट्स का सेवन बढ़े हुए कोलेस्ट्रॉल के स्तर में कमी लाता है।
4- अंकुरित अन्न –, दालें और अंकुरित अन्न,रक्त से LDL कोलेस्ट्रॉल को बाहर निकालने में लिवर की मदद करते हैं। ये चीजें अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने में भी सहायक होती हैं।
गठिया के रोगी दालों के सेवन से पूर्व रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा की जांच अवश्य करा लें। यदि यूरिक एसिड बढ़ा हो तो दालों का सेवन कम करें।
5- खट्टे फल एवं नींबू –नींबू प्रजाति के फलों में पाए जाने वाले तत्व शरीर को मेटाबालिज्म को बढ़ाते हैं जोकि कोलेस्ट्रॉल को कम करने में सहायक होता है। इसके लिए प्रात: शौच जाने के पहले गुनगुने पानी में – नींबू का रस पीया जा सकता है। संतरा, मौसमी ,अनन्नास जैसै फलों का सेवन भी लाभदायक है

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विरुद्ध आहार है धीमा जहर

विरुद्ध आहार 2 या अधिक भोजन का वह संयोजन है जो उनके गुण / वीर्य आदि में मिल जाता है। उनके बीच इस तरह के एक विरोधी गुण के परिणामस्वरूप भोजन है, जो न तो पचता है और न ही समाप्त होता है। यह धीमे जहर के रूप में कार्य करता है जिससे हमारे शरीर में अनेक रोग और समस्याएं उत्पन्न होती हैं।

विरुधाहार को समझें

देश विरुद्ध

उन खाद्य पदार्थों से बचें जो पर्यावरण के तापमान से मेल नहीं खाते हैं। उदा. सरसों का तेल गर्म होने के कारण उत्तरी (North) भारत में और नारियल का तेल ठंडा होने के कारण दक्षिणी (South) भारत में प्रयोग किया जाता है। २. काल विरुद्ध
ऐसे भोजन से परहेज करें जो मौसम या दिन के समय के अनुकूल न हो। दिनचर्या और ऋतुचर्या का पालन करे।
उदा. जामुन का फल सुबह खाली पेट लेने से वात दोष बढ़ता है। रात के समय दही नहीं खाना चाहिए। ३. अग्नि विरुद्ध
उन चीजों से बचें जो हमारे पेट में अग्नि की शक्ति को कम करती हैं। जैसे भूख न लगने पर खाना, ठंडी चीजें खाना आदि। दो भोजन के मध्य में 4 घंटे का अंतर रखे।

मात्रा विरुद्ध

हर भोजन की एक सीमा होती है जिसके भीतर हमें खाना चाहिए। हमें अपनी पाचन क्षमता की सीमा का भी पालन करना चाहिए। भूक ना होने पर भोजन नहीं करना चाहिए।

सात्म्य विरुद्ध

जो भोजन हमारे मन के लिए अप्रिय हो उसे नहीं खाना चाहिए। ६. वातादि दोष विरुध
उन खाद्य पदार्थों से बचें जो हमारे शरीर में वर्तमान में मौजूद दोष को बढ़ाएंगे।
उदा. मधुमेह मे मधुरता बढ़ी रहती है, तो मधुर रस को कम सेवन करना चाहिए।

संस्कार विरुद्ध

खाने से पहले कुछ खाना पकाना/गर्म करना चाहिए और कुछ खाना नहीं खाना चाहिए। उदा. दूध उबाल कर ही पीना चाहिए। दही, शहद को खाने से पहले गर्म नहीं करना चाहिए। धारोष्ण दूध अपवाद है। वह दोहन के 30 मिनट मे सेवन करना चाहिए।

वीर्य विरुध

जो भोजन तासीर में गर्म हो, उसे ठंडी तासीर वाले भोजन के साथ नहीं खाना चाहिए।

कोष्ट विरुद्ध

वही खाएं जो हमारी आंतों की निर्मूलन शक्ति को पूरा करता हो।

अवस्था विरुध

अपनी उम्र, अपने काम/जीवनशैली आदि के अनुसार ही खाएं।

क्रम विरुद्ध (क्रम विरुद्ध)

भोजन करते समय एक विशेष क्रम का पालन करना चाहिए। मीठा, खट्टा, लवण, तिखा, कड़वा और कसैला खाने का शास्त्रीय क्रम है। भोजन को छाछ के साथ समाप्त करें।
भोजन के तुरंत पहले व अंत में पानी न पिएं।
भूख लगने पर पानी न पिएं। भुक लगाने पर ही भोजन करे।
प्यास लगने पर भोजन न करें। प्यास लगने पर ही पानी पिएं।
घी की चीजों का सेवन करने के तुरंत बाद पानी न पिएं।

परिहार विरुद्ध

उन सभी सब्जियों को न मिलाएं जो पाचन की गति को धीरे और अग्नि को मंद करती हो।

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हरड़ : पेट रोगों की रामबाण औषधि, शरीर के विकारों को दूर कर बनाए चुस्त, जानिए इसके गुण

कहते है की समस्त रोगों की जड़ पेट में होती है और अगर पेट ठीक तो 90% बीमारियां हमे होती ही नही।

पेट के समस्त रोगों में लाभदायक है हरड़

घरेलू रूप में छोटी हरड़ का ही अधिकतर उपयोग किया जाता है। हरीतकी संपूर्ण शरीर के लिए फायदेमंद है विशेष रूप से कब्ज, बवासीर, पेट के कीड़ों को दूर करने, नेत्र ज्योति व भूख बढ़ाने, पाचन तथा अलग-अलग मौसम में होने वाले रोगों में भी ये प्रभावी होती है।

शरीर में कहीं भी सूजन और घाव में फायदेमंद है। छोटी हरड़ को हल्का घी में फूलने तक भूनकर बारीक पाउडर बनाकर सेवन करें। हरड़ एक चम्मच गुनगुने पानी के साथ लेने से पाचन व कब्ज संबंधी समस्या में लाभ मिलता है। ब्लड प्रेशर, लिवर, खांसी, जुकाम, एलर्जी, एसिडिटी, मोटापा और हृदय संबंधी समस्या में काम आती है

गैस और कब्ज सदा के लिए खत्म करे

काली हरड़ यानि की छोड़ी हरड़ को पानी से धोकर किसी साफ कपड़े से पौंछ कर रख लें। दोनो समय भोजन के पश्चात एक हरड़ या दो हरड़ को मुहँ में रखकर चूस लिया करें। लगभग एक घंटे में हरड़ में घुल जाती है!

हरड़ खत्म हो जाने के बाद अगर आपने हलका सा बिना मशाले वाला गुड़ चूस लिया तो सोने पर सुहागा हो जायेगा।

इससे गैस की शिकायत दूर होती है शौच खुलकर आती है भूख खूब लगने लगती है।

हरड़ के अन्य गुण

  • इससे पाचन शक्ति बढती है।
  • जिगर के रोग और आँतड़ियों की वायु नष्ट होती है रक्त शुद्ध होता है।
  • चर्म रोग नहीं होता है।
  • यह प्रयोग लगातार करने से शरीर को बीमार होने की नोबत ही नही आती है।
  • यह गैस और कब्ज के लिये सर्वश्रेष्ठ दवा है!

क्योकि आयुर्वेद प्राचीन ग्रन्थों व् अपने अनुभव के आधार पर आपको बताते है की हरड़ को आयुर्वेद में माँ का नाम दिया गया है।और आपको पता है माँ कभी किसी को धोखा नही देती है।

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ठंड के मौसम में तिल जरूर खाएं, जानिए 7 बेहतरीन फायदे

  1. तिल में मोनो-सैचुरेटेड फैटी एसिड होता है जो शरीर से कोलेस्ट्रोल को कम करता है।
  2. तिल खाना दिल से जुड़ी बीमारियों के लिए भी यह बेहद फायदेमंद है।
  3. तिल में सेसमीन नाम का एन्टीऑक्सिडेंट पाया जाता है जो कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने से रोकता है।
  4. तिल में कुछ ऐसे तत्व और विटामिन पाए जाते हैं जो तनाव और डिप्रेशन को कम करने में मदद करते हैं।
  5. तिल में कैल्श‍ियम, आयरन, मैग्नीशियम, जिंक और सेलेनियम जैसे तत्व होते हैं, जो हृदय की मांसपेशि‍यों को सक्रिय रूप से काम करने में मदद करते हैं।
  6. तिल में डाइट्री प्रोटीन और एमिनो एसिड होता है जो बच्चों की हड्डियों के विकास में सहायक होता है।
  7. तिल का तेल त्वचा के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है। इसकी मदद से त्वचा को जरूरी पोषण मिलता है और इसमें नमी बरकरार रहती है।

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बुखार,सर्दी,खासी से है परेशान तो यह पोस्ट आपके लिए है

वर्तमान दिनो में मौसम में बदलाव चल रहा है। इस मौसमीय परिवर्तन के कारण अधिकतर घरो में कोई ना कोई गला खराब, जुकाम, बुखार, शरीर में दर्द आदि किसी ना किसी बीमारी से परेशान है इन्ही बीमारीओ के कुछ सरल घरेलू उपचार बताये जा रहे हे कृपया लाभ उठायें तथा दूसरो को भी लाभान्वित करे :-

गला खराब, जुकाम, खाँसी,गले की ख़राश , साँस लेने में घुटन

  • उपचार
    1- सोंठ – आधा चम्च
    2- पीपली – आधा चम्च
    3- दाल चीनी – आधा चम्च
    4- काली मिर्च – 5 दाने
    5- तुलसी पत्ते – 7

कैसा भी बुखार, खाँसी,बदन में दर्द

  • उपचार
    1- गिलौय चूर्ण – आधा चम्च
    2- सोंठ चूर्ण – आधा चम्च
    3- अम्बा हल्दी – आधा चम्च
    4- तुलसी पत्ते – 7
    5- काली मिर्च – 5 दाने

उपयोग विधि :-
अपनी बीमारी के अनुसार सभी औषधियाँ 2 गिलास पानी में डाल कर उबालें जब एक चौथाई रह जाये तब स्वादानुसार देशी खांड या बिना मसाले का गुड़ डाल कर पी लीजिये और आराम करे ।

बहुत लाभकारी है- पहले खुद उपयोग करे तत्पश्चात दूसरो बता कर उनको भी लाभान्वित करे ।

बरसात के मौसम् में पानी उबालकर सामान्य तापमान हो जाने पर ताम्रपत्र में रखकर जल, ठंड के मौसम में स्वर्ण पात्र का रखा जल व गर्मी के मौसम में घड़े का ही सेवन करें, ताम्रपात्र व स्वर्ण पात्र न होने पर मूल्यवान होने के कारण इसकी छोटी सी कोई भी वस्तु अपने जल संग्रह करने वाले पात्र में डालकर रखे

भारत माता की जय
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः
जीवक आयुर्वेदा फोन नं०7704996699


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गैस से फूलता है पेट, तो करें ये घरेलू उपाय

आवश्यक समग्री

  • 2 ltr पानी
  • 12 छोटी पुदने की पत्तियां
  • 1 tsp ताजा कद्दूकस किया अदरक
  • 1 कटा हुआ निम्बू
  • 1 छिला हुआ और कटा हुआ खीरा

ड्रिंक को बनाने की विधि

ऊपर बताई गयी सारी समग्री को एक साथ मिक्स करे और आपकी ड्रिंक सेवन के लिए तयार है। दिन में 8-10 गिलास इस ड्रिंक का सेवन करें और आपकी bloated belly की समस्या कुछ ही सेकंड में छूमंतर हो सकती है।

पेट की गैस के लिए 10 अन्य घरेलू उपाय

सोंठ : सोंठ का चूर्ण 3 ग्राम और एरण्ड का तेल 8 ग्राम सेवन करने से कब्ज के कारण होने वाला आध्यमान (अफारा) ठीक हो जाता है। सोंठ का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग 1 ग्राम भाग में कालानमक मिलाकर सुबह और शाम लेने से लाभ होता है।

पोदीना : पोदीना के 5 मिलीलीटर रस में थोड़ा-सा सेंधानमक मिलाकर सेवन करने से आध्यमान (अफारा) ठीक हो जाता है। पोदीने के पत्तों का शर्बत बनाकर पीने से अफारा में लाभ होता है।

अदरक : अदरक 3 ग्राम, 10 ग्राम पिसे हुए गुड़ के साथ सेवन करने से आध्यमान (अफारा, गैस) समाप्त होता है।

लहसुन : लहसुन का पिसा हुआ मिश्रण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग को घी के साथ सेवन करने से पेट में बनी गैस बाहर निकल जाती है।

सौंफ : सौंफ 25 ग्राम को 500 मिलीलीटर पानी में उबालें, जब 100 मिलीलीटर पानी बच जाये तब सेंधानमक व काला नमक 2-2 ग्राम मिलाकर रख लें, फिर इस काढ़े को छानकर पीने से आध्यमान (अफारा, गैस) नष्ट हो जाता है। सौंफ को कूटकर चूर्ण बनाकर रख लें। 5 ग्राम चूर्ण हल्के गरम पानी के साथ सेवन करने से जल्दी पेट का फूलना (अफारा) नष्ट होता है। सौंफ का काढ़ा बनाकर बस्ति (एक क्रिया जिसमें गुदा मार्ग से पानी डालते हैं) देने से गैस में लाभ होता है।

जायफल : जायफल का चूर्ण, सोंठ का चूर्ण और जीरे को पीसकर बारीक पाउडर बना लें। इस बने पाउडर को भोजन करने से पहले पानी के साथ लेने से आध्यमान (अफारा, गैस) को पैदा होने नहीं देता है।

बैंगन : बैंगन को अंगारों पर सेंककर उसमें सज्जीखार मिलाकर पेट पर बांधने से, पेट में भार हो गया हो तो वह दूर होता है। बैंगन की सब्जी में ताजे लहसुन और हींग का छौंक लगाकर खाने से आध्यमान (अफारा, गैस) को होने से रोकता है।

पीपल : पीपल का चूर्ण 3 ग्राम, सेंधानमक 1 ग्राम को मिलाकर 150 मिलीलीटर छाछ (मट्ठे या तक्र) के साथ पीने से पेट की वायु (गैस) निकल जाती है जिससे आध्यमान (अफारा, गैस) समाप्त हो जाता है। 3 पीपल को पीसकर इतने ही काले नमक में मिलाकर गर्म पानी से सुबह-शाम खाने के आधे घण्टे बाद फंकी लेने से पेट की गैस बाहर निकल जायेगी।

इलायची : इलायची, आंवले का रस या चूर्ण में भुनी हुई हींग लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग और थोड़ा सा नींबू का रस एक साथ मिलाकर सेवन करें। इससे गैस, दर्द और अफारा मिट जाता है।

लौंग : 3 ग्राम लौंग को 200 ग्राम चीनी में उबाल लें। फिर छानकर इस पानी कहनां पीने से अफारा दूर होता है। लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग लौंग को पीसकर गर्म पानी से छान लें। इसे सुबह-शाम रोजाना पीने से अफारा में लाभ होता है।

स्वस्थ्य सम्बन्धी समस्या होने पर संपर्क करें Jivak ayurveda 7704996699


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सर्दियों में त्वचा की देखभाल, चमकता रहेगा चेहरा

सर्तोदियों का मौसम वैसे तो सबको अच्छा लगता है, लेकिन इस मौसम में हमारी त्वचा रूखी और बेजान हो जाती है. इस मौसम में हवा में नमी बेहद कम होती है और ये शुष्क हवा हमारी त्वचा से नमी छीन लेती है. लिहाजा गर्मियों की अपेक्षा सर्दियों में हमें अपने स्किन पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत पड़ती है. इस खबर में हम आपके लिए कुछ ऐसे ही टिप्स बता रहे हैं, जिनके उपयोग से आपकी स्किन रूखी नहीं होगी और हमेशा चमकदार और खूबसूरत बनी रहेगी. 

ठंड के मौसम में फॉलो करें ये स्किन केयर टिप्स

1. विटामिन ई युक्त मॉइश्चराइजर 
ठंड के मौसम में रूखी त्वचा से बचने के लिए विटामिन ई युक्त मॉइश्चराइजर का प्रयोग करना चाहिए. दिन में दो से तीन बार मॉइश्चराइजर का प्रयोग करें और रात को सोने से पहले भी इसे चेहरे पर जरूर लगाएं.

2. माइल्ड स्क्रब 
हम देखते हैं कि सर्दियों में चेहरे पर मृत त्वचा भी जमा होने लगती है, उससे छुटकारा पाने के लिए हफ्ते में तीन बार माइल्ड स्क्रब का इस्तेमाल करें, इससे मृत त्वचा हट जाएगी और चेहरा खिला-खिला रहेगा.

3. नारियल तेल 
नारियल तेल नमी को बरक़रार रखने में सबसे बेहतर माना जाता है, इसे आप नहाने के बाद अपनी त्वचा पर लगा सकते हैं. इसके लिए आप नहाने से एक घंटे पहले त्वचा पर नारियल तेल लगाकर थोड़ी देर मालिश करें और बाद में नहा लें, त्वचा रूखी नहीं होगी.

4. नहाने के लिए गुनगुना पानी 
इस मौसम में आप नहाने के लिए गर्म पानी का इस्तेमाल न करें, इससे त्वचा की नमी और कम होती है, हल्के गुनगुने पानी से ही नहाएं. चेहरा धोने के लिए भी गर्म या ठंडे पानी का इस्तेमाल न करें, बल्कि हल्के गुनगुने पानी से चेहरा धोएं.

5. दूध का इस्तेमाल
अगर आपका चेहरा ड्राई हो गया है तो इसके लिए दूध का इस्तेमाल करें. इसे पूरे चेहरे पर लगाकर थोड़ी देर तक मसाज करें और फिर गुनगुने पानी से चेहरा धो लें, आप रात को भी चेहरे पर दूध लगाकर सो सकते हैं.

6. प्रयाप्त पानी पीएं
सर्दियों में हम अक्सर पानी पीना कम कर देते हैं, इसका बुरा असर हमारे स्किन पर होता है और वो ड्राई होने लगती है. इसलिए पानी पीना कम न करें बल्कि दिन में आठ से दस गिलास पानी पिएं, सर्दियों में गुनगुना पानी पीना फायदेमंद होता है.


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सर्दियों में रहें स्वस्थ, ऐसे रखें परिवार का ख्याल

सर्दियों (Winter) का मौसम अपने साथ सर्दी, फ्लू और माइक्रोबियल संक्रमण जैसी बीमारियों को लेकर आता है, ऐसे में इम्युनिटी को मजबूत रखना बहुत जरूरी है! इसलिए इस मौसम में, सभी महत्वपूर्ण पोषक तत्वों से भरपूर पौष्टिक फूड्स को डाइट में शामिल करें! आइए जानें सर्दियों के मौसम में आप कौन से फूड्स डाइट में शामिल (Food Tips) कर सकते हैं!

जड़ों वाली सब्जियां

जड़ों ली सब्जियां जैसे गाजर, शकरकंद, मूली, चुकंदर सहज रूप से गर्म होती हैं| इन सब्जियों को पाचन की प्रक्रिया के दौरान अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है| इससे शरीर के तापमान में वृद्धि होती है| इसके अलावा वे विटामिन, मिनरल और फाइबर में भी उच्च हैं|

हरी पत्तेदार सब्जियां

सर्दी के मौसम में हरी पत्तेदार सब्जियां ताजी मिलती हैं| ये विटामिन, मिनरल, एंटीऑक्सीडेंट और फाइबर से भरपूर होती है| ये बीमार होने के जोखिम को कम करने में मदद करते हैं, ब्लड सर्कुलेशन में सुधार करते हैं और ब्लड शुगर के लेवल को नियंत्रित करने में मदद करते हैं| इसलिए अधिक मात्रा में इनका सेवन करें|

दाल

दाल से बने व्यंजन जैसे खिचड़ी, दाल का सूप, मूंग दाल का हलवा सर्दियों में प्रोटीन, फाइबर और मिनरल से भरपूर व्यंजन हैं|

मसाले

काली मिर्च, मेथी, अजवाइन, अदरक, लहसुन, जीरा जैसी जड़ी-बूटियां और मसाले खांसी और फ्लू से लड़ने में मदद करते हैं| ये भूख और पाचन को उत्तेजित करते हैं और ब्लड सर्कुलेशन में सुधार करते हैं| आयुर्वेद के अनुसार तुलसी शरीर को सभी श्वसन विकारों से लड़ने में मदद करती है और ये एक एंटीसेप्टिक और रोगाणुरोधी एजेंट भी है| इसी तरह, हल्दी में पाया जाने वाला एक सक्रिय तत्व करक्यूमिन एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट है और ऑक्सीडेटिव क्षति से लड़ने में मदद करता है एवं हमारी इम्युनिटी को बढ़ाता है| लहसुन में एलिसिन होता है, इसमें इम्युनिटी बढ़ाने, जीवाणुरोधी और एंटीवायरल गुण होते हैं|

फलों का सेवन

सर्दियों के दौरान संतरे, नींबू और अमरूद जैसे खट्टे फलों से परहेज करने के बारे में एक आम मिथक है क्योंकि इन्हें ठंडा माना जाता है. इससे खांसी और सर्दी हो सकती है| प्रतिदिन दो फल लेने की आदत डालें|

रागी और बाजरा

रागी और बाजरे से बनी रोटी काम्प्लेक्स कार्ब्स, फाइबर और मैग्नीशियम जैसे मिनरल प्रदान करते हैं| ये हाई ब्लड प्रेशर और दिल के दौरे जैसे हृदय रोगों को रोकने में मदद करते हैं जिनकी घटना सर्दियों के दौरान अधिक होती है|

सूखे मेवे और बीज

तिल, मूंगफली, बादाम, खजूर, मेथी के बीज जैसे मेवा और तिलहन प्रोटीन, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन और फाइबर से भरपूर होते हैं. तिलचिक्की, मूंगफली के लड्डू और खजूर की बर्फी जैसे फूड्स इम्युनिटी को बढ़ाते हैं| ये मेटाबॉलिज्म को तेज करते हैं|

हाइड्रेटेड रहें

गर्म रहने के लिए हाइड्रेटेड रहें| पानी आपके आंतरिक तापमान को नियंत्रित करने में मदद करता है| प्यास न लगने पर भी सही मात्रा में पानी पिएं|

घी

आयुर्वेद चावल और खिचड़ी और यहां तक ​​कि सर्दियों की मिठाइयों में घी डालने की सलाह देता है क्योंकि ये पाचन में मदद करता है और शरीर को हेल्दी फैट प्रदान करता है|


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विटिलिगो/सफेद दाग (ल्यूकोडर्मा) अभिशाप नहीं, आटोइम्यून डिसआर्डर है

यह एक प्रकार का त्वचारोग है। इसमें शरीर की स्वस्थ कोशिकायें प्रभावित हो जाती है। इस बिमारी का क्रम बेहद परिवर्तनीय है। कुछ रोगियो में स्थिर रहता है और कुछ रोगियो में बहुत तेजी से बढ़ता  है।

जब आपके शरीर में मेलनोसाइट्स मरने लगते है, तब त्वचा पर कई सफेद धब्बे बनने शुरू हो जाते है। यह एक आटोइम्यून डिसआर्डर की वजह से होता है।

आयुर्वेद के अनुसार पित्तया वात के असंतुलन से ल्यूकोडर्मा की समस्या होती है। जीवक आयुर्वेदा में पंचकर्म के माध्यम से बाँडी को डिटाक्सीफाई किया जाता है। इसके आलावा बाकुची वीज, खदिर, दारुहरिद्रा, करंज, आरग्यवध (अमलतास) आदि एवं गंधक रसायन,रस माणिक्य मजिष्ठादि क्वाथ, माणिक्य खदिर व त्रिफला बहुत प्रभावी है। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा दिया जाता है। औषधियाँ व आइटमेंट  दोनों उपलब्ध है। तीन महीने में परिणाम दिखने लगता है। रोगी को कापर के बर्तन  में 8 घंटा पानी को रखने के बाद पीना चाहिए। हरी पत्तेदार सब्जियाँ, मटर, लौकी, सोयाबिन दाल ज्यादा खाना चाहिये। हर रोज एक कटोरी भीगे काले चने व 3/4 बादाम व गिलोय व एलोविरा जूसतुलसी व मूली के बीज बहुत उपयोगी है। खट्टी चीजे (साइट्रस फ्रूट्रस) दही, लस्सी, मैदा, गोभी, उरद दाल, नानवेज व फास्ट फूड, साफ्ट ड्रिंक्स कम मात्रा मे खाये लम्बे समय तक तेज गर्मी व एक्सपोजर से बचना चाहिये।

शरीर के किसी हिस्से में सफेद दाग के लक्षण दिखाई देने पर आप जीवक आयुर्वेदा के हेल्पलाइन 7704996699 पर सम्पर्क कर सही जानकारी प्राप्त कर सकते हैं!


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    I was Visited at Jivak Ayurveda for dengue on 26th August 2016. From day one I have been taken good care of by the Jivak team. I felt like I was treated by my own family. I was also very happy about a patient care attendant who gave me a sponge bath and also came to talk to me when ever possible to reduce my dengue anxiety. He even noticed the small red spots on my back and reported to the nurse. It was very nice to see so much compassion. Hats off to all of you. I made it a point to take the na… Read more

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