आयुर्वेद में ऋतुचर्या (Ritucharya in Ayurveda)
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बसंत ऋतु (14 मार्च से 14 मई) को बहुत महत्वपूर्ण समझा जाता है। भारतीय सभ्यता में उदित आयुर्वेद के अनुसार ऋतुचर्या का मुख्य प्रयोजन मनुष्य के शरीर को रोगों से दूर रखकर स्वस्थ रखना है। हमारा शरीर पाँच तत्वों (भूमि, आकाश, अग्नि, वायु, और जल) से बना है और इसमें सात धातुएँ शामिल हैं। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए इन सभी तत्वों और धातुओं का संतुलन आवश्यक होता है।
इन सभी की एक-एक अग्नियां हैं और एक अतिरिक्त अग्नि है जिसे जठराग्नि बोलते हैं, जो भोजन पाचन से संबंधित है। ऋतुओं में बदलाव के साथ-साथ इन अग्नियों के तेज और शांत होने की गति में भी बदलाव आता रहता है और अगर हम इनको संतुलित रखने के लिए सही भोजन नहीं करेंगे तो ये दोषों और बीमारियां का रूप ले लेंगी। तो इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि हम ऋतु के अनुसार अपने खान-पान को बदलें।
आइए जानें की आखिर में ऋतुचर्या क्या है
हम आज के समय चल रही ऋतु की बात करेंगे जिस से आपको लाभ हो सके
वसंत ऋतु की बात करें तो हिन्दू पंचांग में ये चैत्र से वैशाख महीने तक को और इंग्लिश कैलेंडर में मार्च, अप्रैल, और मई महीनों को बोलते हैं। यह शीत और ग्रीष्म ऋतु का संधि समय होता है। इस समय न ही अधिक ठण्ड पड़ती है और न गर्मी।
शीत ऋतु में जमा हुआ कफ इस ऋतु में सूर्य की किरणों की वजह से पिघलने लगता है और जठराग्नि भी शांत हो जाती है। मौसम में परिवर्तन के साथ लोगों के स्वास्थ्य में भी गहरा असर होने लगता है। इस ऋतु में बीमारियों को दूर रखने के लिए कफ में वृद्धि करने वाला भोजन करने की सलाह दी जाती है। आपको लवण, मधुर, और अम्ल रस से युक्त खाना खाना चाहिए।
बसंत ऋतु के स्वस्थ रहने के आहार
कड़वे रस वाले द्रव्य, बैंगन, नीम, चन्दन का जल, विजयसार, अदरक का रस, मुलेठी, काली मिर्च, तुलसी, मुनक्का, अरिष्ट, आसव, फलों का रस, खिचड़ी, खांड, दलीय, मूंग की दाल, शहद, पुराने जौ, गेहूँ , मक्खन लगी रोटी, भीगा व अंकुरित चना, राई, नीबू, खास का जल, धान की खील, आंवला, बहेड़ा, हरड़, पीपल, सोंठ, जिमीकंद क कच्ची मूली, केले के फूल, पालक, लहसुन, करेला, खजूर, मलाई, रबड़ी, आदि।
आयुर्वेद औषधि को जरूरत नहीं सिर्फ आहार विहार से किसी भी रोग पर विजय पाई जा सकती है
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