जानिए – आखिर क्यों होते हैं हम बीमार ?
Category : Blog
आयुर्वेद की हमारे रोजमर्रा के जीवन, खान-पान तथा रहन-सहन पर आज भी गहरी छाप दिखाई देती है । आयुर्वेद की अद्भूत खोज है – ‘त्रिदोष सिद्धान्त’ जो कि एक पूर्ण वैज्ञानिक सिद्धान्त है और जिसका सहारा लिए बिना कोई भी चिकित्सा पूर्ण नहीं हो सकती । इसके द्वारा रोग का शीघ्र निदान और उपचार के अलावा रोगी की प्रकृति को समझने में भी सहायता मिलती है ।
त्रिदोष अर्थात् वात, पित्त, कफ की दो अवस्थाएं होती है –
1. समावस्था (न कम, न अधिक, न प्रकुपित, यानि संतुलित, स्वाभाविक, प्राकृत)
2. विषमावस्था (हीन, अति, प्रकुपित, यानि दुषित, बिगड़ी हुर्इ, असंतुलित, विकृत) ।
वास्तव में वात, पित्त, कफ, (समावस्था) में दोष नहीं है बल्कि धातुएं है जो शरीर को धारण करती है तभी ये दोष कहलाती है । इस प्रकार रोगों का कारण वात, पित्त, कफ का असंतुलन या दोष नहीं है बल्कि धातुएं है जो शरीर को धारण करती है और उसे स्वस्थ रखती है । जब यही धातुएं दूषित या विषम होकर रोग पैदा करती है, तभी ये दोष कहलाती है ।
अत: रोग हो जाने पर अस्वस्थ शरीर को पुन: स्वस्थ बनाने के लिए त्रिदोष का संतुलन अथवा समावस्था में लाना पड़ता है ।
स्वास्थ्य के नियमों का पालन न करने, अनुचित और विरूद्ध आहार-विहार करने, ऋतुचर्या-दिनचर्या, व्यायाम आदि पर ध्यान न देने तथा विभिन्न प्रकार के भोग-विलास और आधुनिक सुख-सुविधाओं में अपने मन और इन्द्रियों को आसक्त कर देने के परिणाम स्वरूप ये ही वात, पित्त, कफ, प्रकुपित होकर जब विषम अवस्था में आ जाते हैं जब अस्वस्थता की स्थिति रहती है।
अत: अच्छा तो यही है कि रोग हो ही नही । इलाज से बचाव सदा ही उत्तम है ।
रोगों पर आरम्भ से ध्यान न देने से ये प्राय: कष्टसाध्य या असाध्य हो जाते हैं । अत: साधारण व्यक्ति के लिए समझदारी इसी में है कि यह यथासंभव रोग से बचने का प्रयत्न करे, न कि रोग होने के बाद डॉक्टर के पास इलाज के लिए भागें ।
वात प्रकोप के लक्षण:
1 शरीर का रूखा-सूखा होना ।
2 धातुओं का क्षय होना या तन्तुओं के अपर्याप्त पोषण के कारण
3 शरीर का सूखा या दुर्बला होते जाना।
4 अंगों की शिथिलता, सुत्रता और शीलता।
5 अंगों में कठोरता और उनका जकड़ जाना।
पित्त प्रकोप के लक्षण:
1 शरीर में दाह (जलन)/आंखों में लालिमा और जलन। हृदय, पेट, अन्नतालिका, गले में जलन प्रतीत होना।
2 गर्मी का ज्यादा अनुभव होना।
3 त्वचा का गर्म रहना, त्वचा पर फोड़े-फुंसियों का निकालना और पकना।
4 त्वचा, मूल, मूत्र, नेत्र, आदि का पीला होना।
5 कंठ सूखना, कंठ में जलन, प्यास का अधिक लगना।
6 मुंह का स्वाद कड़वा होना, कभी-कभी खट्टा होना।
7 अम्लता का बढ़ना, खट्टी डकारें, गले में खट्टा-चरपरा पानी आना।
8 उल्टी जैसा अनुभव होना या जी मिचलाना, उल्टी के साथ सिरदर्द होना।
9 पतले दस्त होना।
कफ प्रकोप के लक्षण:
1 शरीर भारी, शीतल, चिकना और सफेद होना।
2 अंगों में शिथिलता व थकावट का अनुभव होना। आलस्य का बना रहना ।
3 ठंड अधिक लगना ।
4 त्वचा चिकनी व पानी में भिगी हुई सी रहना।
5 मुंह का स्वाद मीठा और चिकना होना। मुंह से लार गिरना।
6 भूख का कम लगना। अरुचि व मंदाग्नि।
7 मल, मूत्र, नेत्र ओर सारे शरीर का सफेद पड़ जाना। मल में चिकनापन और आंव का आना।