आयुर्वेद में ही है कैंसर का इलाज़
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कैंसर की चिकित्सा के दौरान जीवक आयुर्वेदा व मैने यह अनुभव किया कि 98% कैंसर के मरीज सर्वप्रथम अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति के अनुसार ही अपना ईलाज करवाते हैं। जहाँ सर्वप्रथम उन्हें बहुत अधिक शक्तिशाली एवं भयंकर एन्टीबायोटिक दी जाती है ताकि जो रोग समझ में नहीं आ रहा है, उस पर किसी तरह विजय दिखाई जा सके। ये दवायें शरीर के अन्दर भूचाल ला देती हैं। त्रिदोषों में और अधिक असाम्यता पैदा हो जाती है तथा सबसे अधिक बुरा असर पहले से ही कुपित वात पर पङता है।
जब उन भयंकर एंटीबायोटिक इंजेक्शनों का सार्थक असर भी दिखाई नहीं पड़ता तब विभिन्न टेस्टों के माध्यम से कैंसर होने का सबूत इकट्ठा करते हैं और फिर कीमोथेरेपी, रेडियेशन एवं अन्य अति भयंकर चिकित्सा शुरू कर देते हैं।
आप सभी जानते हैं कीमोथेरेपी / रेडिएशन थेरेपी में क्या होता है – इसमें कैंसर सेल्स को खत्म किया जाता है। कैंसर कोशिकाओं की एक सहज पहचान जो ये कीमोथेरेपी की दवायें करतीं हैं और पहचान कर उन्हें खत्म कर देतीं हैं, वह है – इनके एक से दो, 2 से 4, 4 से 8, 8 से 16,….…में बहुत तेजी से विभक्त होकर बढ़नें की प्रक्रिया । इस कीमोथेरेपी में बस यही एक पहचान है कि जो भी एक कोशिका विभक्त होकर दो कोशिकाओं के रुप में बनने की प्रक्रिया में है, उसे नष्ट कर देना है। (In cancer, the cells keep on dividing until there is a mass of cells.)
अरबों खरबों सेल्स मिलकर शरीरगत एक टिश्यू का निर्माण करते हैं। (Body tissues are made of billions of individual cells.)
This mass of cells becomes a lump, called a tumour.
Because cancer cells divide much more often than most normal cells, chemotherapy is much more likely to kill them.
In cancer, the cells keep on dividing until there is a mass of cells. This mass of cells becomes a lump, called a tumour.
चूंकि मज्जा धातु के अन्तर्गत ही कोशिकाओं का निर्माण होता है, अतः कीमोथेरेपी में Bone marrow tissues को असामान्य ढंग से नष्ट कर दिया जाता है, जिसके फलस्वरूप मज्जागत वात अत्यन्त कुपित हो जाती है और शरीर में भयंकर, असहनीय, अन्तहीन और इलाज हीन दर्द शुरू हो जाता है।
पूरा का पूरा वातवह संस्थान (Neuro System of the Body) छिन्न भिन्न हो जाता है।
ऐसी स्थिति में केवल एक ही आयुर्वेदिक दवा काम कर सकती है और वह अश्वगंधा घृत,पुर्ननवा,हल्दी।