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चमकी बुखार का कहर आयुर्वेद करेगा असर

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देश में कई जगह एवं विशेष रूप से बिहार में दिमागी  बुखार / चमकी बुखार अपने प्रचंड रुप में सैकड़ों लोगों की मौत का कारण बन गया है। सम्पूर्ण एलोपैथी चिकित्सा पद्धति ने अपने हाथ खड़े कर लिए हैं। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री को भी आना पड़ा पर रिजल्ट ?

आयुर्वेदज्ञों को आगे आ कर मानवता के हित में काम करना ही होगा, दूसरा कोई उपाय नहीं है। मुझे लगता है निम्नलिखित इलाज प्राण रक्षा करने में समर्थ होगा :-
*शहद के साथ दालचीनी का पाउडर – चार वक्त
* महा सुदर्शन घन बटी + स्वर्ण बसंत मालती रस + अमृतारिष्ट – दो वक्त
* लवंग + कज्जली + शहद – तीनों वक्त
* हरताल गोदंती भस्म + मोती पिष्ठी + प्रवाल पिष्ठी – तीन बार चन्दनादि तेल लगाने हेतु।

कोई सामान्य व्यक्ति वगैर आयुर्वेदज्ञों की सलाह व उचित देखरेख के बिना इस फार्म्यूलेशन का प्रयोग न करे। आप सभी विद्वान आयुर्वेदज्ञों से अनुरोध है कि यदि आप अपना अनुभव शेयर करें तो बहुत कृपा होगी।

डॉ विवेक श्रीवास्तव
जीवक आयुर्वेदा


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World Autism Awareness Day: कहीं आपका बच्चा भी तो ऑटिज्म से पीड़ित नहीं ?

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क्या आपका बच्चा आपके चेहरे के हावभाव को देखकर कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है? क्या वह आपकी आवाज सुनने के बावजूद न तो खुश होता है और न ही कुछ जवाब देता है? क्या वह दूसरे बच्चों की तुलना में ज्यादा चुप रहता है? अगर आपके बच्चे में भी ये लक्षण हैं तो हो सकता है कि वह ऑटिज्म से पीड़ित हो। क्या है आटिज्म? कैसे पहचानें ? और क्या है इलाज़ ? इसी विषय पर चर्चा कर रहे हैं जीवक आयुर्वेदा के निदेशक टी के श्रीवास्तव।

आटिज्म क्या है ?
आटिज्म एक मस्तिष्क का विकार है जो अक्सर इससे ग्रस्त व्यक्ति का दूसरों के साथ संबंधित होना कठिन बनाता है। आटिज्म में, मस्तिष्क के विभिन्न क्षेत्र एक साथ काम करने में विफल हो जाते हैं। इसे आटिज्म स्पेक्ट्रम विकार भी कहा जाता है।

आटिज्म स्पेक्ट्रम विकार के तीन प्रकार हैं
ऑटिस्टिक डिसऑर्डर (Autistic Disorder)
एस्पर्जर सिन्ड्रोम (Asperger Syndrome)
परवेसिव डेवलपमेंटल डिसऑर्डर (Pervasive Developmental Disorder)

आटिज्‍म के लक्षण

अपने नाम पर प्रतिक्रिया देने में विफल रहना।
गले से लगाने या पकड़ने पर विरोध करना और अकेले खेलना पसंद करना।
नज़रें मिलाने से बचना और चेहरे के अभिभावों का न होना।
न बोलना या बोलने में देरी करना या पहले ठीक से बोलने वाले शब्द या वाक्यों को न बोल पाना।
वार्तालाप को शुरू नहीं कर पाना या जारी नहीं रख पाना या केवल अनुरोध के लिए बातचीत शुरू करना।
एक असामान्य लय से बोलना, एक गीत की आवाज़ या रोबोट जैसी आवाज़ का उपयोग करना।
शब्दों या वाक्यांशों को दोहराना लेकिन उनके उपयोग की समझ न होना।
सरल प्रशनों या दिशाओं को समझने में असमर्थता।
अपनी भावनाओं को व्यक्त न करना और दूसरों की भावनाओं से अनजान रहना।
निष्क्रिय, आक्रामक या विघटनकारी होने के कारण सामाजिक संपर्क से बचना।
कुछ गतिविधियों को दोहराना, जैसे – हिलना, घूमना या हाथ फड़फड़ाना या खुद को नुक्सान पहुंचाने वाली गातीधियाँ (जैसे सिर पटकना)।
विशिष्ट दिनचर्या या अनुष्ठान विकसित करना और थोड़े ही बदलाव में परेशान हो जाना।
लगातार हिलते रहना।
असहयोगी व्यवहार करना या बदलने के लिए प्रतिरोधी होना।
समन्वय की समस्याएं या अजीब गतिविधियां करना (जैसे पैर के पंजों पर चलना)।
रौशनी, ध्वनि और स्पर्श के प्रति असामान्य रूप से संवेदनशील होना और दर्द महसूस न करना।
कृत्रिम खेलों में शामिल न होना।
असामान्य तीव्रता या ध्यान लगाकर कोई कार्य या गतिविधि करते रहना।
भोजन की अजीब पसंद होना, जैसे कि केवल कुछ खाद्य पदार्थों को खाना या कुछ खास बनावट वाले पदार्थों का ही सेवन करना।

आटिज्म क्यों होता है?
ऑटिज्म के वास्तविक कारण के बारे में फिलहाल जानकारी नहीं है। पर्यावरण या जेनेटिक प्रभाव, कोई भी इसका कारण हो सकता है। वैज्ञानिक इस संबंध में जन्म से पहले पर्यावरण में मौजूद रसायनों और किसी संक्रमण के प्रभाव में आने के प्रभावों का भी अध्ययन कर रहे हैं। शोधों के अनुसार बच्चे के सेंट्रल नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुंचाने वाली कोई भी चीज ऑटिज्म का कारण बन सकती है। कुछ शोध प्रेग्नेंसी के दौरान मां में थायरॉएड हॉरमोन की कमी को भी कारण मानते हैं। इसके अतिरिक्त समय से पहले डिलीवरी होना। डिलीवरी के दौरान बच्चे को पूरी तरह से आक्सीजन न मिल पाना। गर्भावस्था में किसी बीमारी व पोषक तत्वों की कमी प्रमुख कारण है।
बच्चे के जन्म के छह माह से एक वर्ष के भीतर ही इस बीमारी का पता लग जाता है कि बच्चा सामान्य व्यवहार कर रहा है या नहीं। शुरुआती दौर में अभिभावकों को बच्चे के कुछ लक्षणों पर गौर करना चाहिए। जैसे बच्चा छह महीने का हो जाने पर भी किलकारी भर रहा है या नहीं। एक वर्ष के बीच मुस्कुरा रहा है या नहीं या किसी बात पर विपरीत प्रतिक्रिया दे रहा है या नहीं। ऐसा कोई भी लक्षण नजर आने पर अभिभावक को तुरंत किसी अच्छे मनोचिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।

आटिज्‍म से बचाव
आटिज्म होने से रोका नहीं जा सकता है लेकिन आप इसके कुछ जोखिम को कम कर सकते हैं यदि आप निम्नलिखित जीवनशैली के परिवर्तनों का प्रयास करते हैं –
स्वस्थ रहें – नियमित जाँच करवाएं, अच्छी तरह संतुलित भोजन और व्यायाम करें। सुनिश्चित करें कि आपकी अच्छी जन्मपूर्व देखभाल हुई है और सभी सुझाए गए विटामिन व पूरक आहार लें।
गर्भावस्था के दौरान दवाएं न लें – गर्भावस्था में किसी भी प्रकार की दवा लेने से पहले अपने डॉक्टर से पूछें। खासकर दौरों को रोकने वाली दवाएं।
शराब न लें – गर्भावस्था के दौरान शराब का सेवन न करें।
डॉक्टर की सलाह लें – यदि आपको आटिज्म के कोई भी लक्षण दिखें तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लें, आप जीवक आयुर्वेदा के हेल्पलाइन नंबर 7704996699 पर निःशुल्क सलाह प्राप्त कर सकते हैं।


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इंटरनेशनल डे ऑफ हैप्पीनेस: इन रोगों से रहना है दूर तो रहे खुश

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20 मार्च को दुनियाभर में इंटरनेशनल डे ऑफ हैप्पीनेस या अंतरराष्ट्रीय खुशी दिवस मनाया जाता है। मतलब कि आज सिर्फ और सिर्फ खुशियां ही मनाना। नो रोना-धोना, नो गुस्सा, ओन्ली हैप्पीनेस विद स्माइल। खुश रहना आपके सेहत के लिए बेहद लाभदायक है इसी विषय पर जानकारी दे रहे जीवक आयुर्वेदा के निदेशक टी के श्रीवास्तव।

लगातार मानसिक दबाव या तनाव कई तरह के मानसिक विकारों को जन्म देता है, अनेक शारीरिक समस्याओं का कारण बनता है, जैसे उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग, थायराइड आदि, इसके बारे में हम आपको विस्तािर से जानकारी देते हैं.

डिप्रेशन के कारण बीमारियां

हमें दैनिक कार्यों में अनेक प्रकार के तनाव झेलने पड़ते हैं। खासतौर पर वर्तमान युग की तेज रफ्तार जिन्दगी में हमें रोज अनेकों समस्याओं से जूझना पड़ता है और इसके कारण तनाव होता है। लगातार मानसिक दबाव या तनाव अनेक मानसिक विकारों को जन्म देता है, अनेक शारीरिक समस्याओं का शिकार बनता है. जैसे उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग, थायरोइड इत्यादि। चलिये जानें डिप्रेशन के कारण कौंन कौंन सी बीमारियां हो सकती हैं-

कैंसर

कैंसर के लगभग 60 प्रतिशत रोगी डिप्रेशन से भी ग्रस्त होते हैं क्योंकि अवसाद के कारण इक्यूनसिस्टम बदल जाता है। किसी भी व्यक्ति के अवसाद ग्रस्त होने के पीछे मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, आनुवांशिक तथा जैव वैज्ञानिक कारण हो सकते हैं। अवसाद से पीडि़त रोगी का उपचार आमतौर पर सायकोथैरेपी के द्वारा किया जाता है।

के लगभग 60 प्रतिशत रोगी डिप्रेशन से भी ग्रस्त होते हैं क्योंकि अवसाद के कारण इक्यूनसिस्टम बदल जाता है। किसी भी व्यक्ति के अवसाद ग्रस्त होने के पीछे मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, आनुवांशिक तथा जैव वैज्ञानिक कारण हो सकते हैं। अवसाद से पीडि़त रोगी का उपचार आमतौर पर सायकोथैरेपी के द्वारा किया जाता है।

मोटापा

एक अध्ययन में पाया गया है कि बचपन के अवसाद का अगर जल्द इलाज और रोकथाम कर लिया जाए, तो वयस्क होने पर दिल की बीमारी का खतरा कम हो सकता है। अवसादग्रस्त बच्चों के मोटे, निष्क्रिय होने और धूम्रपान करने की संभावना होती है जो किशोरावस्था में ही दिल की बीमारियों के कारण बन सकते हैं। अमेरिका की युनिवर्सिटी ऑफ साउथ फ्लोरिडा में मनोविज्ञान में यह शोध हुआ।

डिमेंशिया

नए शोध से पता चला है कि अवसाद से ग्रस्त लोगों में डिमेंशिया होने का ख़तरा सामान्य से दो गुना अधिक हो सकता है। डिमेंशिया से इंसान की मानसिक क्षमता, व्यक्तित्व और व्यवहार पर प्रभाव पड़ता है। जिन लोगों को डिमेंशिया होता है उनकी याद्दाश्त पर असर पड़ता है. अमरीकन पत्रिका न्यूरोलॉजी में ये तथ्य प्रकाशित हुए।

समय से पहले बुढ़ापा

मानसिक बीमारी पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर (पीटीएसडी) से पीड़ित लोगों को समय से पहले बुढ़ापा आने का खतरा होता है। नए शोध में यह बात सामने आई है। पीटीएसडी कई मानसिक विकारों जैसे गंभीर अवसाद, गुस्सा, अनिद्रा, खान-पान संबंधी रोगों तथा मादक द्रव्यों के सेवन से जुड़ी व्याधि है।

दिल की बीमारियां

एक अध्ययन में पाया गया है कि बचपन के अवसाद का अगर जल्द इलाज और रोकथाम कर लिया जाए, तो वयस्क होने पर दिल की बीमारी का खतरा कम हो सकता है। अवसादग्रस्त बच्चों के मोटे, निष्क्रिय होने और धूम्रपान करने की संभावना होती है जो किशोरावस्था में ही दिल की बीमारियों के कारण बन सकते हैं।

मधुमेह

अवसाद की समस्या मधुमेह की ओर इशारा करती है। कई सालों से यह माना जाता था कि अवसाद की समस्या की जड़ मधुमेह है। हाल के कई शोधों में यह बिंदु सामने आया कि अवसाद से समस्या जटिल होती है। विशेषज्ञों का मानना है कि मधुमेह के पीछे चिंता और तनाव का ही हाथ होता है. यदि कोई व्यक्ति अवसाद ग्रस्त है तो उसे मधुमेह होने की संभावना सामान्य व्यक्ति के मुकाबले दुगनी होती है।

बहरेपन का खतरा अधिक

हाल ही में हुए एक शोध में बहरेपन से संबंधित एक नई जानकारी मिली है। इस शोध की मानें तो अवसाद में रहने वाले लोगों को बहरेपन का खतरा ज्याबदा होता है।  अमेरीका में हुए इस शोध में शोधकर्ताओं ने 18 साल व इससे अधिक उम्र के पुरुषों और महिलाओं पर अध्ययन किया। इसका असर पुरुषों की तुलना में महिलाओं पर अधिक दिखा।

क्यों मनाया जाता है हैप्पीनेस डे

संयुक्त राष्ट्र संघ (यूनाइटेड नेशन्स) ने 20 मार्च को इंटरनेशनल हैप्पीनेस डे के रूप में घोषित किया है। 12 जुलाई 2012 को यूनाइटेड नेशन्स की जनरल असेंबली ने इस बात की घोषणा की कि पूरे विश्व में प्रतिवर्ष 20 मार्च को हैप्पीनेस डे मनाया जाएगा। पिछले साल यानी 2013 से इसे विश्वभर में पूरे उत्साह के साथ मनाना शुरू किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य विश्व में सभी को अवसाद मुक्त कर खुश रखना है ।

कामयाबी का राज है हैप्पीनेस

आपको पता है, खुश रहने से कठिनाइयां कम आती हैं और अगर आ भी जाएं तो कठिन से कठिन समस्या का 50 फीसदी समाधान तुरंत ही हो जाता है। जो लोग खुश रहते हैं, वे अपने जीवन में खुशियां बांटने के साथ-साथ दूसरों के लिए भी प्रेरणा का काम करते हैं।

खुशी से दूर रहेगी दिल की बीमारी

खुश रहने और सकारात्मक सोच रखने से हृदय रोगों से दूर रहा जा सकता है। 1700 लोगों पर दस वर्ष तक किए गए अध्ययन के बाद यह बात सामने आई है कि जो लोग हमेशा परेशान रहते हैं और अवसाद से घिरे रहते हैं, उनमें हृदय रोग होने की आशंका अधिक होती है। अध्ययन से यह बात भी सामने आई कि जिन लोगों के जीवन में खुशी के पल अधिक आते हैं, उनमें दिल की बीमारी होने की संभावना 22 फीसद कम होती है।

डॉक्टरों का कहना है कि खुश रहने से दिल को बहुत फायदा मिलता है। गुस्सा दिल के लिए बहुत हानिकारक है। हृदय रोगों के मामले को लेकर आने वाले लोगों को वे सलाह देते हैं कि गुस्से की आदत को बदल दिया जाए। गुस्सा आने पर हृदय की गति और ब्लड प्रेशर बढ़ने से हार्ट की डिमांड बढ़ जाती है। ऐसी डिमांड का बढ़ना सबसे खतरनाक होता है। विशेष रूप से हृदय रोगियों के लिए, क्योंकि इससे कई बार एन्जाइना का अटैक भी हो सकता है इसलिए सभी को खुश रहने की कोशिश करनी चाहिए।

खुश रहने से मिलती अच्छी नीद और तनाव होता है कम

 आम जिदंगी में खुश रहने वाले लोगों को नींद अच्छी आती है और वे तनाव में भी कम आते हैं। ऐसे लोग तनाव के दौर से जल्द बाहर आ जाते हैं, जिनका उनके स्वास्थ्य पर अच्छा असर देखने को मिलता है। आमतौर पर लोग एक-दो हफ्ते की छुट्टी लेकर घूमने-फिरने मजा करने जाते हैं, जबकि उन्हें हर दिन खुशी के पल ढूंढने की कोशिश करनी चाहिए। अगर किसी को उपन्यास पढ़ने का शौक है तो एक बार में पढ़ने की बजाय हर 15 मिनट में पढ़ने की कोशिश करनी चाहिए। यह बात हर शौक पर लागू होती है, जिसे करके व्यक्ति को खुशी मिलती है और उसका मूड अच्छा हो जाता है। हालांकि दिल की बीमारी को खुशमिजाज जीवनशैली से जोड़कर देखने का सीमित महत्व है।

क्या है इलाज़ ?

जीवक आयुर्वेदा अवसाद ग्रस्त मरीजों के इलाज़ के लिए अपनी त्रिस्तरीय चिकित्सा पद्धति अपनाता है जिसमे आयुर्वेदिक चिकित्सा, न्यूट्रीशन के साथ साथ योग चिकित्सा को शामिल किया जाता है । इसमें मरीज की स्थिति के अनुसार शमन-शोधन चिकित्सा, स्वस्थ आहार विहार के साथ योग क्रियाएं बताई जाती हैं ।    


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World Sleep Day 2019: जानिए आपके लिए कितनी जरूरी है नींद, इन बातों का रखें ध्यान

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World Sleep Day 2019 हर साल 15 मार्च को वर्ल्ड स्लीप-डे मनाया जाता है। वर्ल्ड स्लीप डे को वर्ल्ड स्लीप डे कमेटी ऑफ द वर्ल्ड स्लीप सोसाइटी द्वारा आयोजित किया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों को नींद की समस्याओं के बोझ से छुटकारा दिलाना और नींद की गड़बडि़यों को लेकर लोगों को जागरूक करना होता है। इस साल वर्ल्ड स्लीप-डे का विषय ‘स्वस्थ नींद, स्वस्थ आयु’ है। वैसे तो नींद सभी को प्यारी होती है और इसके कई फायदे भी हैं। वर्ल्ड स्लीप-डे पर इससे जुड़ी कुछ जरूरी बातें बता रहे हैं जीवक आयुर्वेदा के निदेशक टी के श्रीवास्तव ।

नींद हमारे शरीर और मस्तिष्क दोनों के लिए प्रकृति का वरदान है। दौड़ती-भागती तनाव भरी जिंदगी में नींद का महत्व और बढ़ गया है।
रोजाना की भागदौड़, आपाधापी के चक्कर में हम ठीक से खाना और सोना तक भूल गए हैं, जिसकी वजह से अनेक शारीरिक और मानसिक परेशानियां हमें घेरने लगी हैं। ट्रैफिक की रेडलाइट से लेकर मोबाइल पर बेकार के मैसेजेज, इंटरनेट और न जाने कितनी चीजें हमें व्यर्थ का तनाव देती हैं। दिनभर की भागदौड़ के बाद हम थक कर घर वापस आते हैं तो हमें सुकून भरी और आरामदायक नींद की आवश्यकता होती है। रात में कम से कम 6 से 8 घंटे की नींद लेनी चाहिए, जिससे अगले दिन के कामकाज के लिए अपने मस्तिष्क को तरोताजा कर सकें। इस तरह से हम अपने जीवन का एक तिहाई हिस्सा सोने में बिता देते हैं, जो हमारी सेहत के लिए बेहद जरूरी होता है।

दो तरह की नींद
हम दो तरह की नींद लेते हैं। एक वह नींद, जिससे हम शारीरिक रूप से ज्यादा क्रियाशील रहते हैं। इसमें हमारी आंखें हिलती-डुलती रहती हैं। इस नींद में जब हम कोई स्वप्न देखते हैं तो उसे याद रख पाते हैं। दूसरी तरह की नींद में हमारी शारीरिक क्रिया न्यूनतम होती है। इस समय हम गहरी नींद में होते हैं, जिससे शरीर और मस्तिष्क को ज्यादा आराम और सुकून मिलता है। इस चैनभरी नींद से एक तरह से हमारे शरीर का उपचार होता है। लोगों के सोने की आदत अलग-अलग किस्म की होती है। कुछ लोग लंबी नींद लेने में विश्वास रखते हैं, तो कुछ थोड़े समय की नींद लेते हैं। 6 घंटे की नींद लेने वाले व्यक्ति काफी चुस्त-दुरुस्त होते हैं, जबकि 9 घंटे और इससे ज्यादा लंबी नींद लेने वाले लोग नींद के आशक्त होते हैं।

नीद न आने वाली बीमारी (अनिद्रा)
अनिद्रा एक नींद से सम्बन्धित समस्या है, जो दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रभावित करती है। संक्षेप में, अनिद्रा से पीड़ित व्यक्तियों के लिए नींद आना या सोते रहना मुश्किल होता है। अनिद्रा के प्रभाव बहुत भयंकर हो सकते हैं। अनिद्रा आमतौर पर दिन के समय नींद, सुस्ती, और मानसिक व शारीरिक रूप से बीमार होने की सामान्य अनुभूति को बढाती है। मनोस्थिति में होने वाले बदलाव (मूड स्विंग्स), चिड़चिड़ापन और चिंता इसके सामान्य लक्षणों से जुड़े हुए हैं। अनिद्रा में नींद से जुड़े विकारों की एक विस्तृत श्रृंखला है, जिसमें अच्छी नींद के अभाव से लेकर नींद की अवधि में कमी से जुडी समस्याएं हैं। अनिद्रा को आमतौर पर तीन प्रकारों में विभाजित किया जाता है।

अस्थायी अनिद्रा: यह तब होती है, जब लक्षण तीन रातों तक रहते हैं।
एक्यूट अनिद्रा: इसे अल्पकालिक अनिद्रा भी कहा जाता है। लक्षण कई हफ्तों तक जारी रहते हैं।
क्रोनिक अनिद्रा: यह आमतौर पर महीनों और कभी-कभी सालों तक रहती है।

दिल के लिए है खतरनाक
नींद और हृदय गति का गहरा संबंध होता है। एक ताजा में शोध में यह बात सामने आयी है। हृदय रोगियों पर किए गए ताजा अध्ययन में पाया गया कि 96 फीसदी हृदय रोगियों में नींद के दौरान श्वसन संबंधी समस्या पाई जाती है। एक अन्य अध्ययन में यह बात साफ हुई थी कि 58 प्रतिशत हृदय रोगी नींद संबंधित समस्या से ग्रसित होते हैं और इनमें से 85 फीसदी को इस समस्या तथा हृदय रोग और नींद की कमी के संबंध का पता नहीं होता।

बनती है ओबेसिटी का कारण
न्यूजीलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ ओटागो के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन के बाद कहा कि नींद की कमी के कारण किशोरों को मोटापे का खतरा बढ़ जाता है। शोध से यह भी साफ हुआ कि किशोरियों के मामले में ऐसा नहीं है। यदि कोई किशोरी कम नींद ले पाती है तो उसे इस कारण मोटापे की समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा।

सोने के तरीके से कम हो जाएगी पेट
लोगों के बीच एक सोच घर कर गई है कि रात को नहीं खाने से कुछ वज़न कम हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं है। आप कभी खाली पेट न सोएं। खाली पेट सोने की वजह से आपको नींद नहीं आएगी और नींद की कमी से आपका मोटापा बढ़ सकता है।

कमजोर होती है याददाशत
अगर आप बढ़ती उम्र के साथ पर्याप्त नींद नहीं ले रहे, तो सावधान हो जाइए। आपके दिमाग के घटते आयतन का संबंध कम नींद से हो सकता है। ब्रिटेन में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के अध्ययन के मुताबिक, नींद की कमी का संबंध मस्तिष्क के विभिन्न भागों जैसे अग्रभाग (फ्रंटल), कालिक (टेंपोरल) के आयतन में तेजी से कमी से हो सकता है।

बढ़ता है तनाव का खतरा
अगर अनिद्रा के लक्षणों का जल्द निदान और इलाज ना कराया जाए, तो यह गंभीर समस्या बन सकती है। एक अध्ययन में यह बात साफ हुई थी कि नींद न आने पर रोगी हमेशा के लिए अवसाद का शिकार हो सकता है। इस स्थिति में व्यक्ति के मस्तिष्क का न्यूरोट्रांसमीटर क्षीण हो जाता है। यदि अवसाद का समय पर इलाज न किया जाए तो यह गंभीर स्थिति बन जाती है।

चिड़चिड़ापन भी होता है
जब आपकी नींद पूरी नहीं होती, तो स्वभाव में चिड़चिड़ापन आना लाजमी है। ऐसे लोगों को बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता है। वे चिंता या अवसाद का शिकार हो सकते हैं। उनका बर्ताव भी असामान्य हो सकता है। उनकी स्मरण शक्ति पर भी असर पड़ता है और वे किसी बात पर अच्छी तरह ध्यान नहीं दे पाते।

तुरंत खाकर न सोएं
तुरंत खाकर न सोएं, खाने और सोने के वक्त कुछ गैप रखें। खाना खाकर तुरंत सोने से ब्लड शुगर और इंसुलिन बढ़ता है, इसकी वजह से वजन बढ़ सकता है। रोजाना रात को एक कप हर्बल चाय पीने से तोंद को कम करने में मदद मिलेगी।

नींद न आना भी है खतरनाक
आजकल की बदलती जीवनशैली में ज़्यादातर लोगों को नींद ने आने की समस्या है। नींद ने आने की इस समस्या को इन्सोमनिया कहते हैं। यह आमतौर पर लाइफस्टाइल में बदलाव होने की वजह से होता है। यह दो तरह का होता है-ट्रान्जिएंट और क्रॉनिक। इसका मुख्य कारण टेंशन, वातावरण में बदलाव, हॉर्मोंन्स में बदलाव है।

अच्छी सेहत के लिए कितनी जरूरी हैं नींद जानिए
नींद उतनी ही जरूरी है जितना कि खाना और व्यायाम। एक शरीर ठीक से काम करे इसके लिए कम से कम 6-8 घंटे की नींद जरूरी है। जो लोग कम सोते हैं उनके शरीर में लेप्टिन (भूख बढ़ाने वाला हार्मोन ) का स्तर कम होने की संभावना अधिक होती है, जिससे भूख बढ़ जाती है।

क्या है अनिद्राके उपाय
अगर किसी व्यक्ति को नींद न आने की समस्या 3 से 4 हफ्तों से ज्यादा समय तक रहती है तो उसे डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। इस बीमारी को कुदरती इलाज से भी काफी हद तक ठीक किया जा सकता है।
सोने से पहले गर्म पानी से स्नान करें। यह एक एक्सरसाइज की तरह होगा। गर्म पानी से नहाने के बाद बेड पर जाते ही आपको नींद आ जाएगी।
दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद आपको अपनी मांस-पेशियों को आराम देने और अच्छी नींद लेने के लिए अपने शरीर को कूल डाउन करने की जरूरत होती है। इसके लिए आप किसी टब या बाल्टी में गुनगुने पानी में अपने पैरों को डुबो कर रख सकते हैं।

अपने शरीर की मांस-पेशियों एवं ऊतकों को आराम देने के लिए आप एक चम्मच एप्सॉम साल्ट/डेड सी सॉल्ट को पानी में डाल सकते हैं। फूट बाथ आपकी त्वचा को अवांछित बैक्टीरिया से बचाती है और दिन भर की थकान से हुए पैर के दर्द को भी कम करती है।
उस गर्म पानी में आप कुछ आवश्यक तेल भी डाल सकते हैं, जिससे आपको रिलैक्स होने में मदद मिलती है। आप तुलसी ऑयल, देवदार वुड ऑयल, लैवेंडर ऑयल, रोजमैरी ऑयल और विंटर ग्रीन ऑयल का इस्तेमाल कर सकते हैं।

आपको केवल इन तेल की 1-2 बूंद पानी की बाल्टी में डालनी है। ये तेल शरीर के भीतरी भाग तक पहुंचकर रोम-रोम को सुकून देते हैं।
गर्म पानी थके हुए शरीर पर जादू का काम करता है। अगर किसी के पास सोने जाने से पहले गर्म पानी से नहाने का समय नहीं है तो कुछ देर तेल मिले गुनगुने पानी में अपने पैर डालकर बैठ सकते हैं।

इस उपाय से स्किन हाईड्रेट हेती है, मांस-पेशियां ढीली पड़ती हैं। इससे रिलैक्स होने में मदद मिलती है, जिससे आपको बिस्तर पर लेटते ही नींद आ जाती है। अनिद्रा से ग्रस्त लोगों के लिए लैवेंडर, जैस्मीन, नेरोली और यांग-लांग जैसे तेल से मालिश भी कारगर उपाय है।


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वर्ल्ड किडनी डे 2019: ऐसे रखें किडनी का ख्याल

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हमारी दोनों किडनियां एक मिनट में 1200 मिलिलीटर रक्त का शोधन करती हैं। ये शरीर से दूषित पदार्थो को भी बाहर निकालती हैं। इस अंग की क्रिया बाधित होने पर विषैले पदार्थ बाहर नहीं आ पाते और स्थिति जानलेवा होने लगती है जिसे गुर्दो का फेल होना (किडनी फेल्योर) कहते हैं। इस समस्या के दो कारण हैं, एक्यूट किडनी फेल्योर व क्रॉनिक किडनी फेल्योर। किडनी की समस्या के बारे में जानने से पहले हमें यह जान लेना चाहिए कि हमारी किडनी हमारे लिए क्या क्या करती है। इस बारे में जानकारी दे रहे हैं जीवक आयुर्वेदा के निदेशक टी के श्रीवास्तव ….

1. गुर्दे (Kidney) की रचना जितनी अटपटी है उसके कार्य उतने ही जटिल हैं। हानिकारक अपशिष्ट उत्पादों और विषैले कचरे को शरीर से बाहर निकालना और शरीर में पानी, तरल पदार्थ, खनिजों आदि का नियमन करना।

2. गुर्दे शरीर में फिल्टर का कार्य करते हैं और दूषित रक्त और दूषित विषाक्त को शरीर से बाहर निकालते हैं, इसलिए इन्हें शरीर का प्राकृतिक फिल्टर भी कहा जाता है।

3. शरीर का लगभग 20-25 प्रतिशत रक्त गुर्दे (किडनी) से पम्प होकर दिल और मस्तिष्क में जाता है।
4. गुर्दे की लम्बाई लगभग 12 से.मी. तक होती है। गुर्दे का वजन लगभग 140 ग्राम तक होता है।

5. खून को साफ करके पेशाब (Urine) बनाने का कार्य करने वाले गुर्दे की सबसे छोटी एवं बारीक छन्नी जिसे नेफ्रोन (Nephron) कहते हैं। प्रत्येक गुर्दे में लगभग दस लाख नेफ्रोन होते हैं।
 
6. प्रत्येक नेफ्रोन के मुख्य दो हिस्से होते हैं पहला ग्लोमेरुलस (Glomerulus) और दूसरा ट्यूब्यूल्स (Tubules)। इसमें ग्लोमेरुलस (रक्त वाहिनियों का गुच्छा) फ़िल्टर का काम करता है और सर्पाकार ट्यूब्यूल्स आर.ओ. का काम करती है, जो घुले हुए अनावश्यक लवणों को हटा देती हैं।

7. आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की ग्लोमेरुलस के नाम से जानी जानेवाली छन्नी प्रत्येक मिनट में लगभग 125 मि.ली. प्रवाही बनाकर प्रथम चरण में 24 घंटों में 180 लीटर पेशाब (Urine) बनाती है। इस 180 लीटर पेशाब (Urine) में अनावश्यक पदार्थ, क्षार और जहरीले पदार्थ भी होते हैं। साथ ही इसमें शरीर के लिए उपयोगी ग्लूकोज तथा अन्य पदार्थ भी होते हैं।

8. ग्लोमेरुलस में बननेवाला 180 लीटर पेशाब (Urine) ट्यूब्यूल्स में आता है, जहाँ उसमें से 99 प्रतिशत द्रव का अवशोषण हो जाता है।

9. गुर्दे जरूरी पदार्थों को रख कर अनावश्यक पदार्थों को पेशाब द्वारा बाहर निकालते हैं जो एक अनोखी, अद्‍भुत तथा जटिल प्रक्रिया है।

10. शरीर में जो सात लीटर पानी होता है, उसकी प्रतिदिन करीब 400 बार छनाई और सफाई होती है।

11. क्या आप जानते हैं कि शरीर के दोनों गुर्दों में प्रति मिनट 1200 मि.ली. लीटर खून स्वच्छ होने के लिए आता है जो हृदय द्वारा शरीर में पहुँचनेवाले समस्त खून के लगभग बीस प्रतिशत के बराबर है। इस तरह 24 घंटे में अनुमानत: 1700 लीटर खून का शुद्धीकरण होता है।

12. गुर्दा मानव शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है। गुर्दे की खराबी, किसी गंभीर बीमारी या मौत का कारण भी बन सकती है।

13. दुनिया में लगभग 500 मिलियन लोग गुर्दे की बीमारियों से ग्रसित हैं।

14. दोनों गुर्दे खराब होने पर व्यक्ति 1 गुर्दा ट्रांसप्लांट (Kidney Transplant) से सामान्य व्यक्ति की तरह जीवन जी सकता है।

15. क्या आप को मालूम है कि पेशाब (Urine) की मात्रा में अत्यंत कमी या वृद्धि गुर्दे के रोग का संकेत है।


अब समझते हैं किडनी की गंभीर बीमारी के बारे में ..


क्रॉनिक किडनी फेल्योर
शुरूआत में इस रोग के लक्षण स्पष्ट नहीं होते लेकिन धीरे-धीरे थकान, सुस्ती व सिरदर्द आदि होने लगते हैं। कई मरीजों में पैर व मांसपेशियों में खिंचाव, हाथ-पैरों में सुन्नता और दर्द होता है। उल्टी, जी-मिचलाना व मुंह का स्वाद खराब होना इसके प्रमुख लक्षण हैं।

कारण :
इस रोग में किडनी की छनन-यूनिट (नेफ्रॉन्स) में सूजन आ जाती है और ये नष्ट हो जाती है। डायबिटीज व उच्च रक्तचाप से भी किडनी प्रभावित होती है। पॉलीसिस्टिक किडनी यानी गांठें होना, चोट, क्रॉनिक डिजीज, किडनी में सूजन व संक्रमण, एक किडनी शरीर से निकाल देना, हार्ट अटैक, शरीर के किसी अन्य अंग की प्रक्रिया में बाधा, डिहाइड्रेशन या प्रेग्नेंसी की अन्य गड़बडियां
इसका कारण हो सकती हैं ।
लक्षण : पेशाब कम आना, शरीर विशेषकर चेहरे पर सूजन, त्वचा में खुजली, वजन बढ़ना, उल्टी व सांस से दुर्गध आने जैसे लक्षण हो सकते हैं।

आयुर्वेद में इलाज:
आयुर्वेद में दोनों किडनियों, मूत्रवाहिनियों और मूत्राशय इत्यादि अवयवों को मूत्रवह स्रोत का नाम दिया गया है। पेशाब की इच्छा होने पर भी मूत्र त्याग नहीं करना और खानपान जारी रखना व किडनी में चोट लगना जैसे रोगों को आयुर्वेद में मूत्रक्षय एवं मूत्राघात नाम से जाना जाता है। आयुर्वेदिक के अनुसार रूक्ष प्रकृति व विभिन्न रोगों से कमजोर हुए व्यक्ति के मूत्रवह में पित्त और वायु दोष होकर मूत्र का क्षय कर देते हैं जिससे रोगी को पीड़ा व जलन होने लगती है, यही रोग मूत्रक्षय है। इसमें मूत्र बनना कम या बंद हो जाता है।

क्या है उपाय :
इस तरह की समस्या होने पर यह उपाय अपनाएं, तनाव न लें। नियमित अनुलोम-विलोम व प्राणायाम का अभ्यास करें। ब्लड प्रेशर बढ़ने पर नमक, इमली, अमचूर, लस्सी, चाय, कॉफी, तली-भुनी चीजें, गरिष्ठ आहार, अत्यधिक परिश्रम, अधिक मात्रा में कसैले खाद्य-पदार्थ खाने, धूप में रहने और चिंता से बचें। काला नमक खाएं, इससे रक्त संचार में अवरोध दूर होता है। किडनी खराब हो तो ऎसे खाद्य-पदार्थ न खाएं, जिनमें नमक व फॉस्फोरस की मात्रा कम हो। पोटेशियम की मात्रा भी नियंत्रित होनी चाहिए। ऎसे में केला फायदेमंद होता है। इसमें कम मात्रा में प्रोटीन होता है।
तरल चीजें सीमित मात्रा में ही लें। उबली सब्जियां खाएं व मिर्च-मसालों से परहेज करें।

औषधियां: आयुर्वेदिक औषधियों पुनर्नवा मंडूर, गोक्षुरादी गुग्गुलु, चंद्रप्रभावटी, श्वेत पर्पटी, गिलोय सत्व, मुक्ता पिष्टी, मुक्तापंचामृत रस, वायविडंग इत्यादि का सेवन विशेषज्ञ की देखरेख में ही करें। नियमित रूप से एलोवेरा, ज्वारे व गिलोय का जूस पीने से हीमोग्लोबिन बढ़ता है।

कैसी हो डाइट : गाजर, तुरई, टिंडे, ककड़ी, अंगूर, तरबूज, अनानास, नारियल पानी, गन्ने का रस व सेब खाएं लेकिन डायबिटीज है तो गन्ने का रस न पिएं। इन चीजों से पेशाब खुलकर आता है। मौसमी, संतरा, किन्नू, कीवी, खरबूजा, आंवला और पपीते खा सकते हैं। रात को तांबे के बर्तन में रखा पानी सुबह पिएं। सिरम क्रेटनीन व यूरिक एसिड बढ़ने पर रोगी प्रोटीन युक्त पदार्थ जैसे मांस, सूखे हुए मटर, हरे मटर, फै्रंचबीन, बैंगन, मसूर, उड़द, चना, बेसन, अरबी, कुलथी की दाल, राजमा, कांजी व शराब आदि से परहेज करें। नमक, सेंधा नमक, टमाटर, कालीमिर्च व नींबू का प्रयोग कम से कम करें। इस रोग में चैरी, अनानास व आलू खाना लाभकारी होता है।

डॉक्टर से लें सलाह : किडनी से सम्बंधित किसी भी प्रकार के लक्षण दिखने पर या कोई भी समस्या होने पर डॉक्टर से सलाह लें । जीवक आयुर्वेदा के हेल्पलाइन नम्बर 7704996699 पर निःशुल्क परामर्श ले सकते हैं ।


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