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अस्थमा और आयुर्वेदिक इलाज

दिन प्रतिदिन हवा में बढ़ते प्रदुषण से अस्थमा के मरीज बढ़ते जा रहे है ये भी एक तरह की जानलेवा बीमारी है अगर लापरवाही बरती जाए तो! और सर्दी के मौसम में अस्थमा के मरीजों को सबसे ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ता है। दमा फेफड़ों के वायु मार्ग से जुड़ी ये ऐसी बीमारी है जिसमें श्वास नली में सूजन बढ़ जाती है और श्वास मार्ग सिकुड़ जाता है। इस बीमारी से पीड़ित इंसान को सांस लेने में दिक्कत होती है!खांसी, बंद नाक, छाती का सूजन होना, सुबह तथा शाम को सांस लेने में तकलीफ इत्यादि अस्थमा के लक्षण हैं।अस्थमा के मरीजों को खांसी के कारण फेफड़ों से कफ निकलता है जो कई बार बाहर नहीं निकलता तो मरीज को काफी परेशानी होती है। सर्द मौसम में अस्थमा के मरीजों को परेशानी से बचना है तो आयुर्वेद के मुताबिक इलाज़करें ।इस बीमारी का उपचार आयुर्वेद द्वारा जड़ से समाप्त होगा।

जीवक आयुर्वेद अपनी रस रसायन चिकित्सा द्वारा शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाता है एवं पंचकर्म द्वारा इस रोग को जड़ से खत्म कर दुबारा इसका प्रभाव शरीर पर नही होने देता!

पंचकर्म में स्वेदनकर्म, वस्ती कर्म, नास्य कर्म द्वारा जल्दी लाभ होता है!

गुनगुने पानी में शहद का सेवन करने से अस्थमा के इलाज में मदद मिलती है।

आहार में लहसुन, अदरक और काली मिर्च को जरूर शामिल करें, यह अस्थमा से लड़ने में मदद करते हैं।

जीवक आयुर्वेदा: 7704996699


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सोरायसिस की आयुर्वेदीय चिकित्सा

सोरायसिस एक त्वचा विकार है। जो अधिक से अधिक लोगों को प्रभावित कर रहा है। सोरायसिस स्किन से जुड़ी एक ऑटोइम्यून डिसीज है, जो किसी भी उम्र में हो सकती है! सोरायसिस स्किन से जुड़ी एकबीमारी है त्वचा पर एक लाल रंग की मोटी परत बन जाती है, जो चकत्ते की तरह दिखती है। इन चकत्तों में खुजली के साथ दर्द और सूजन भी महसूस हो सकती है। आमतौर पर इसका असर कोहनी के बाहरी हिस्से और स्कैल्प घुटने पर ज्यादा देखा जाता है। दरअसल, सोराइसिस रोग तभी होता है जब रोग प्रतिरोधक तंत्र स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला करता है. इससे त्वचा की कई कोशिकाएं बढ़ जाती है, जिससे त्वचा पर सूखे और कड़े चकत्ते बन जाते हैं, क्योंकि त्वचा की कोशिकाएं त्वचा की सतह पर बन जाती!शरीर में विटामिन डी, ओमेगाथ्री,की कमी से भी त्वचा रोग का खतरा बढ़ जाता है

जीवक आयुर्वेदा अपनी दवाओं से और पंचकर्म चिकित्सा द्वारा शरीर में मौजूद दोष दूर कर शरीर को अंदर से स्वस्थ बनाता है! सोरियासिस में पंचकर्मथेरेपी के वमन और विरेचन कर्म फायदेमंद होता है! शरीर को अंदर से शुद्ध कर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है! सोरियासिस का मरीज़ जीवक आयुर्वेदा की दवा से धीरे धीरे पूरी तरह स्वस्थ हो जाता है।

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सफेद दाग और आयुर्वेदिक चिकित्सा

सफेद दाग (leucoderma) ये एक त्वचा रोगहै! जो किसी भी उम्र में त्वचा पर होने वाला विकार है,यह एक ऑटोइम्यूनडिज़ीज़ है, जिसमें व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता खत्म होने लगती है जिससे त्वचा को नुकसान पहुंचाने लगती है! ऐसी स्थिति में त्वचा की रंगत निर्धारित करने वाले मेलेनोसाइट्स नामक सेल्स धीरे-धीरे नष्ट होने लगते हैं, जिससे त्वचा पर सफेद धब्बे नज़र आने लगते हैं!

आर्युवेद में रोग प्रतिरोधक क्षमता कोबढ़ा कर शरीरका detoxification कर रोगी के शरीर को स्वस्थ बना देता है जिससे कई रोग से छुटकारा पाया जा सकता है

जीवक आयुर्वेदाकी दवा और पंचकर्म चिकित्सा द्वारा सफेद रोग (leucoderma) ठीक हो सकताहै। सफेद रोग जिस व्यक्ति को हो जाता है, उसे बहुत आत्मग्लानि होने लगती है। इसलिए जरूरी है कि सफेद रोग (leucoderma) का चिकित्सा सही तरीके से कर इस रोग से पूरीतरह छुटकारा पाया जाएं। हमारी दवाओं से स्किन में धीरे धीरे परिवर्तन होने लगता है फिर वो स्किन कलर में आने लगता है।

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डिप्रेशन और आयुर्वेदिक इलाज!

क्या है डिप्रेशन? डिप्रेशन एक आम मानसिक बीमारी है यह एक ऐसी अवस्था है जब व्यक्ति का मन और दिमाग निगेटिविटी, चिंता, तनाव और उदासी से घिर जाता है ।लगातार दुखी रहना किसी भी चीज में रुचि न लेना,जींदगी को बदलने वाली घटनाएँ, जैसे- शोक, अपनी नौकरी खो देना।इस अवस्था में व्यक्ति की सोचने-समझने की क्षमता खत्म हो जाती है और वह धीरे-धीरेखोखला होने लगता है ।जिस व्यक्ति को यह प्रभावित करता है, उसे यह बहुत नुकसान पहुंचा सकता है और उसके काम, परिवार और जीवन को खत्मकरदेताहै। जब डिप्रेशन सबसे खराब स्थिति पर पहुंच जाता है, तब यह आत्महत्या का कारण बन जाताहै।

तनाव के लक्षण!

सिरदर्द

नींद न आना

गुस्सा और हताश होना

किसी एक चीज़ पर ध्यान न लगा पाना

लगातार उदास और दुखी रहना

असहाय और निराश महसूस करना

आत्मसम्मान कम होना

रोने जैसा महसूस करना

चिड़चिड़ापन और दूसरों को सहन न कर पाना

चीजों मेंरुचि न होना

निर्णय लेने में मुश्किल होना

चिंतित और बेचैन होना

खुद को खत्म करने या खुद को नुकसान पहुंचाने के विचार होना

दूसरों को नज़रअंदाज़करना

जीवकआयुर्वेदा में आयुर्वेदिय रसायन औषधिऔर पंचकर्म चिकित्सा द्वारा डिप्रेशन को जड़ से खत्म किया जा सकताहै!

शिरोधरा, शिरोबस्ती, नस्य कर्म से डिप्रेशन सेछुटकारा पाया जा सकता है!

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gathiya

जोड़ो का दर्द और आयुर्वेद

जोड़ो का दर्द एक आम समस्या बन गए है! मल्टीविटामिन,मिनरल और कैल्शियम की कमी से शरीर की मांसपेशियों और हड्डियोंमें दर्द हो सकता है!बढ़ता वजन भी कारण है सर्दियों में ये समस्या और बढ़ जाती हैं। बढ़ते हुए वजनऔर चोट लगने की वजह से कार्टिलेज घिसजाती है, कार्टिलेज के डैमेजहोने और दर्द के साथघुटनोमें दर्द होने की स्थितिको osteoarthritis कहतेहै।घुटने में दर्द,सुजन,जकड़न,चलने ,उठने बैठने के परेशानी आयुर्वेदिक इलाज इस परस्थिति में लाभकारी साबित होता है, दवाओं डाइटऔर पंचकर्म द्वाराइस बीमारी से छुटकारा पाया जा सकता है।जीवक आयुर्वेदा की दवाओं से कार्टिलेज धीरे धीरे रिपेयर होने लगती है , जिसकी वजह से मरीज़ को घुटने के दर्द और सुजन में पूरी तरह आराम मिल जाता हैं। मरीज़ पहले की तरह आराम से चल फिर सकता है।जिन मरीजों में प्रोब्लम पुरानी होती है उनको पंचकर्म चिकित्सा की सलाह दी जाती है, बहुत अच्छा परिणाम मिलता है।

कुछ घरेलू उपाय:

  1. गरम पानी में सेंधा नमक डाल के उस पानी सेदर्द की जगह की सिकाई करें!
  2. सरसो के तेल में लहसन पका के उस तेल से मालिश करें!
  3. हल्दी मेथीऔर सोंठ को समान मात्रा में लेकरपावडरबना ले,सुबह शाम सेवन करें।
  4. रोजाना 2से3 लहसन की कालिया खाली पेट सेवन करें!
  5. रोज सोने से पहले हल्दी वाले दूध का सेवन करें!
  6. मूंग दाल अपने डाइट में शामिल करे!
  7. सब्जियां जैसे सहजन और परवल खाएं!

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कैसा हो कैंसर के मरीज का खान-पान

कैंसर सुनते ही लोग डर जाते है, ये बीमारी हमे शारीरिक और मानसिक दोनो तरीके से कमजोर बना देती है! कैंसर का पता चलते ही अगर इलाज शुरू किया जाए तो उतनी ही ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है,इस केलिए हमे इलाज के साथ साथ अपनी डाइटपर भी ध्यान दे तो और जल्दी इस बीमारी को मात दे सकते है शरीर को कमजोर होने से बचाया जा सकता है इसलिए इलाज के दौरान हाई प्रोटीनफाइबर युक्त भोजन का सेवन करे !

विटामिन ,प्रोटीन और मिनरल युक्त आहार ले!

इसके लिए मछली, अंडे,कम फैट वाले डेयरी प्रोडक्ट, नट बटर, सूखे बीज और मेवे, मटर और मसूर की दाल, सोयाबीन , साबुतअनाजका सेवन कर सकते है।आप अपनी डाइट में कुछ खास सब्जियों को जरूर (Anti cancer foods) शामिल करें। गाजर, कद्दू, टमाटर, मटर, शलजम आदि सब्जियों को जरूर खाएं। इसके अलावा ब्रोकली, पत्तागोभी, फूलगोभी , शिमला मिर्च खासकते हैं। इन सभी सब्जियों मेंग्लूकोसेनोलेटनामकरसायन हैजो सुरक्षात्मक एंजाइम देते हैं, जो खराब एस्ट्रोजन को अच्छे एस्ट्रोजन में तब्दील कर देते हैं। इससे कैंसर के दोबारा होने की संभावना कम हो जाती है।

जामुन, खरबूजा, केला, अनानास, नाशपाती नारियल पानीआदिब्लूबेरी में कई फाइटोकेमिकल्स और पोषक तत्व होते हैं, जो कैंसर विरोधी है स्ट्रॉबेरी, आड़ू, कीवी, संतरा, आमजैसे फलों का सेवन करना चाहिए। ये सभी विटामिन और फाइबर से भरपूर होते हैं। साथ ही अमरूद, एवोकाडो, अंजीर, खुबानी भी शरीर की खोई हुई एनर्जी को वापस पाने के लिए खा सकते हैं। शुगर और कैबोहाइड्रेट्स का सेवन न करें।ऑयली और स्पाइसी खाने का सेवन न करें।

ग्रीन टी का सेवन लाभकारी।

पानी खूब पिए,ताजे नींबू का रस लीजिए,ये आपके शरीर को हाइड्रेट रखने के साथ विटामिन भी देता हैं। हल्दी में मैग्नीशियम, पोटैशियम, आयरन,विटामिन b6, ओमेगा 3, ओमेगा 6, फैटी एसिड और एंटीसेप्टिक गुण होते है। कैंसर से बचाने में हल्दी काफी कारगर है।

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आयुर्वेद में है लीवर रोग की चिकित्सा

लीवर शरीरको फिट रखने केलिए इंजन का काम करता है क्योंकि हम जो भी खाघ पदार्थ एवं पेय पदार्थों का सेवन करते है,उसे डायजेस्ट करने में लीवर की अहम भूमिका होतीहैं।

लीवर की बीमारी का सबसे पहला कारण इंफेक्शन होना,

जैसे अत्यधिक ऑयली, स्पाइसी, अल्कोहलया नशीली पदार्थका सेवन करना,

शुगर रोग या कब्ज की परेशानी में भी लीवर में इंफेक्शन होता है।

लीवर रोग का आयुर्वेदिक उपचार कर के लीवर को स्वस्थ बनाया जा सकता है

पंचकर्म में विरेचन कर्म से लीवर की क्लींजिंग की जाती है।

रोजाना अपने खाने में हरी सब्जियां और फल शामिल करें,

हाई फाइबर डाइट ले,

नमक का इस्तेमाल ज्यादा नाकरें,

अपनी diet मेंलहसुन, कड़ी पत्ता शामिल करें,

गुनगुने पानी का इस्तेमाल करें।

फैटी लीवर को इग्नोर मत कीजिए, लीवर को नुकसान पहुंचा सकता है।

जीवक आयुर्वेदा लीवर के किसी भी प्रकार के रोग को अपनी रस रसायन मेडिसिन से पूरी तरह ठीक कर सकता है। रोगी को यह की चिकित्सा से तत्काल लाभ दिखाई देता है।

रोग को ज्यादा न बढ़ने दे,घर पर इलाज न करें।

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आखिर क्यों होता है कैंसर !

हमारा शरीर अनगिनतसेल्स से बना हुआ है हमारेशरीर में लगातार सेल्स काडिवीजनहोता रहता है।जो सामान्यहै ,जब शरीर के किसी विशेष अंग की कोशिकाओं का नियंत्रण बिगड़ जाता है तब कोशिकाएं अनगिनत तरीके सेबढ़ने लगती है।

जब मानव शरीर में जीनलेवलमेंपरिवर्तनहोने लगता है तब कैंसर की शुरुआत होती हैं।.

गुटखा,तम्बाकू या शराब जैसी नशीलेपदार्थ का सेवन करने से भी कैंसर होता है।

कैंसर शरीर में रोग प्रतिरोधकक्षमताको समाप्तकर देता है या कैंसर सैल्सको इम्यूनसिस्टमझेलनहीं पाताहै तब लक्षण नजर आने लगते है।वक्त पर इलाज न कराया जाए तो ये पूरे शरीरमें फैलजाता है।

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डायबिटीज का आयुर्वेदिक इलाज़

शुगर में बड़े काम का है करेला:
करेला में विटामिन ए,विटामिन सी,फाेलेट भरपूर मात्रा में होता है।करेला ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में मदद करता है।इंसुलिन की कमी से शरीर शुगर पचा नहीं पाता है,जिससे शुगर की मात्रा बढ़ जाती है और ये खून में मिलकर शरीर में सर्कुलेट होने लगता है।करेला इसी प्रोसेस को सही करता है।डायबिटिज में करेले के बीज का सेवन करने से शरीर में ब्लड शर्करा को कम करने में मदद करता है।ऐसा इसलिये है करेले में इंसुलिन की तरह काम करने वाले गुण होते है,जो ऊर्जा के लिये कोशिकाओं में ग्लूकोज़ लाने में मदद करते हैं।फिर इसके बीज़ पाचनतंत्र को ठीक करके इंसुलिन के रिलीज को और बढ़ाते है,जो कोशिकाओं को ग्लूकोज़ का उपयोग करने और इसे आपके लिवर,मांसपेशियों और वसा में स्थानान्तरित करने में मदद करते हैं।जीवक आयुर्वेदा,फोन नं०7704996699


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आयुर्वेदिक औषधियों में विराजमान हैं माँ नवदुर्गा

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मां दुर्गा नौ रूपों में अपने भक्तों का कल्याण करती है एवं उनके सारे रोग दोष एवं संकट का नाश करती हैं। प्रकृति में उपलब्ध आयुर्वेदिक औषधियां इस बात का जीता जागता प्रमाण है। इन औषधियों को मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों के रूप में जाना जाता है। नवदुर्गा के नौ औषधि स्वरूपों को मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति में दर्शाया गया है। आयुर्वेद की चिकित्सा प्रणाली के इस रहस्य को ब्रह्माजी द्वारा उपदेश में दुर्गाकवच कहा गया है।

प्रकृति में उपलब्ध आयुर्वेदिक औषधियां समस्त जन मानस के रोगों को दूर करने और उनसे बचा कर रखने के लिए एक कवच का कार्य करती हैं, इसलिए इसे दुर्गाकवच कहा गया है। इनके प्रयोग से मनुष्य अकाल मृत्यु से बचकर सौ वर्ष जीवन जी सकता है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार देवी नौ औषधि के रूप में मनुष्य की प्रत्येक बीमारी को ठीक कर रक्त का संचार उचित एवं साफ कर मनुष्य को स्वस्थ करती हैं।

प्रथम शैलपुत्री अर्थात हरड़

नवदुर्गा का प्रथम रूप शैलपुत्री है। कई प्रकार की समस्याओं में काम आने वाली औषधि हरड़, हिमावती है जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप है। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है। यह सात प्रकार की होती है। इसमें …

  • हरीतिका (हरी) भय को हरने वाली है।
  • पथया- हित करने वाली है,
  • कायस्थ – जो शरीर को बनाए रखने वाली है,
  • अमृता – अमृत के समान,
  • हेमवती – हिमालय पर होने वाली,
  • चेतकी -चित्त को प्रसन्न करने वाली है और
  • श्रेयसी (यशदाता)- कल्याण करने वाली।

द्वितीय ब्रह्मचारिणी अर्थात ब्राह्मी

नवदुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी है। यह आयु और स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली, रूधिर विकारों का नाश करने वाली और स्वर को मधुर करने वाली है। इसलिए ब्राह्मी को सरस्वती भी कहा जाता है। यह मन एवं मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है और गैस व मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा है। यह मूत्र द्वारा रक्त विकारों को बाहर निकालने में समर्थ औषधि है। इन रोगों से पीड़ित व्यक्ति को ब्रह्मचारिणी की आराधना करनी चाहिए।

तृतीय चंद्रघंटा अर्थात चन्दुसूर

नवदुर्गा का तीसरा रूप है चंद्रघंटा। इसे चन्दुसूर या चमसूर कहा गया है। यह एक ऐसा पौधा है जो धनिये के समान होता है। इस पौधे की पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है, जो लाभदायक होती है। यह औषधि मोटापा दूर करने में लाभप्रद है, इसलिए इसे चर्महन्ती भी कहते हैं। शक्ति को बढ़ाने वाली, हृदय रोग को ठीक करने वाली चंद्रिका औषधि है। इस बीमारी से संबंधित रोगी को चंद्रघंटा की पूजा करनी चाहिए।

चतुर्थ कुष्माण्डा अर्थात पेठा

नवदुर्गा का चौथा रूप कुष्माण्डा है। इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है। इसलिए इस रूप को पेठा भी कहते हैं। इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं जो पुष्टिकारक, वीर्यवर्धक व रक्त के विकार को ठीक कर पेट को साफ करने में सहायक है। मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए यह अमृत समान है। यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है। कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस को दूर करता है। इन बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को पेठा का उपयोग के साथ कुष्माण्डा देवी की आराधना करनी चाहिए।

पंचम स्कंदमाता अर्थात अलसी

नवदुर्गा का पांचवा रूप स्कंदमाता है, जिन्हें पार्वती एवं उमा भी कहते हैं। यह औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं। यह वात, पित्त, कफ रोगों की नाशक औषधि है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति ने स्कंदमाता की आराधना करनी चाहिए।

षष्ठम कात्यायनी अर्थात मोइया

नवदुर्गा का छठा रूप कात्यायनी है। इसे आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका। इसके अलावा इसे मोइया अर्थात माचिका भी कहते हैं। यह कफ, पित्त, अधिक विकार एवं कंठ के रोग का नाश करती है। इससे पीड़ित रोगी को इसका सेवन व कात्यायनी की आराधना करनी चाहिए।

सप्तम कालरात्रि अर्थात नागदौन

दुर्गा का सप्तम रूप कालरात्रि है जिसे महायोगिनी, महायोगीश्वरी कहा गया है। यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है। सभी प्रकार के रोगों की नाशक सर्वत्र विजय दिलाने वाली मन एवं मस्तष्कि के समस्त विकारों को दूर करने वाली औषधि है। इस पौधे को घर में लगाने पर सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। यह सुख देने वाली एवं सभी विषों का नाश करने वाली औषधि है। कालरात्रि की आराधना प्रत्येक पीड़ित व्यक्ति को करनी चाहिए।

अष्टम महागौरी अर्थात तुलसी

नवदुर्गा का अष्टम रूप महागौरी है, जिनका औषधि नाम तुलसी है जो प्रत्येक घर में लगाई जाती है। तुलसी सात प्रकार की होती है- सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र। सभी प्रकार की तुलसी रक्त को साफ करती है एवं हृदय रोग का नाश करती है। इस देवी की आराधना हर सामान्य एवं रोगी को करना चाहिए।

नवम सिद्धिदात्री अर्थात शतावरी

नवदुर्गा का नवम रूप सिद्धिदात्री है, जिसे नारायणी या शतावरी कहते हैं। शतावरी बुद्धि, बल एवं वीर्य के लिए उत्तम औषधि है। यह रक्त विकार एवं वात पित्त शोध नाशक और हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है। सिद्धिदात्री का जो मनुष्य नियमपूर्वक सेवन करते हैं, उनके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। रक्त विकार एवं वात पित्त से पीड़ित व्यक्ति को सिद्धिदात्री देवी की आराधना करनी चाहिए।


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