Health Benefits of OMEGA-3 Fatty Acid: Jivak Ayurveda
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इस वीडियो में हम फेफड़े के कैंसर (Lung Cancer) के बारे में चर्चा करेंगे और जानेंगे इसके लक्षण, बचाव एवं आयुर्वेदिक उपचार के बारे में !
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इस वीडयो में हम चर्चा करेंगे हमारे शारीर में प्रोटीन की क्या आवश्कता है ? यह किस तरह काम करता है ? और एक दिन में हमें कितना प्रोटीन लेना चाहिए ? इस महत्वपूर्ण जानकारी को आपने सभी मित्रों को जरुर भेजें !
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इम्यूनोथेरेपी एक तरह का उपचार है जो शरीर के प्रतिरोधी तंत्र (इम्यून सिस्टम) को प्रेरित करता है, उसे बढ़ाता या मजबूत बनाता है। इम्यूनोथेरेपी का प्रयोग कुछ विशेष प्रकार के कैंसर और इन्फ्लेमेटरी रोगों जैसे रियूमेटायड अर्थराइटिस, क्रोंस डिजीज और मल्टीपल स्क्लेरोसिस रोगों का इलाज करने के लिये किया जाता है। इसे बॉयोलॉजिकल थेरेपी, बॉयोथेरेपी या बॉयोलॉजिकल रिस्पांस मॉडिफायर (बीआरएम) थेरेपी भी कहा जाता है।
शरीर का इम्यून सिस्टम जीवाणु और अन्य बाह्य सामग्री की पहचान करता है और उन्हें नष्ट करता है। हमारी प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली जैसा की आयुर्वेद में बताया गया है कि कैंसर की कोशिकाओं को बाहरी या असामान्य रूप में पहचान सकती हैं। सामान्य कोशिकाओं की अपेक्षा कैंसर कोशिकाओं की बाहरी कोशिकीय सतह पर एक विशिष्ट प्रोटीन होता है जिसे एंटीजन कहा जाता है। एंटीजन वे प्रोटीन हैं जो इम्यून सिस्टम द्वारा निर्मित किए जाते हैं। वे कैंसर कोशिकाओं के एंटीजन से जुड़ जाते हैं और उन्हें असामान्य कोशिकाओं के रूप में चिन्हित करते हैं। यदि इम्यून सिस्टम हमेशा सही से कार्य करे तो केमिकल सिग्नल चिन्हित कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए इम्यून सिस्टम में विशेष कोशिकाओं को शामिल करते हैं। हालांकि इम्यून सिस्टम स्वयं हमेशा सही ढंग से कार्य नहीं करता है।इम्यूनोथेरेपी प्रतिरोधी तंत्र (इम्यून सिस्टम) को कैंसर से लड़ने के लिए प्रेरित करने में सहायक होता है। इम्यूनोथेरेपी में इस्तेमाल किये जाने वाले रस रसायन व आयुर्वेदिक दवाये जिनको प्राय: बॉयोलॉजिकल रिस्पांस मॉडीफायर कहा जाता है क्योंकि वे शरीर के सामान्य इम्यून सिस्टम को कैंसर के खतरे से निपटने लायक बनाते हैं। कुछ बॉयोलॉजिकल रिस्पांस मॉडीफायर वे रस रसायन व आयुर्वेदिक दवाये होते हैं, जो शरीर में प्राकृतिक रूप से मौजूद होते हैं लेकिन किसी व्यक्ति के इम्यून सिस्टम को उन्नत करने में सहायता के लिये बड़ी मात्रा में ये हमारे प्रकृति व हमारे आस पास के वातावरण में ही उपलब्ध होते हैं। बॉयोलॉजिकल रिस्पांस मॉडीफायर कैंसर से लड़ने में कई प्रकार से सहायक हो सकते हैं। वे किसी ट्यूमर को नष्ट करने के लिये अधिक इम्यू्न सिस्टम कोशिकाओं को शामिल कर सकते हैं। या वे कैंसर कोशिकाओं को इम्यून सिस्टम के आक्रमण के प्रति असुरक्षित कर देते हैं।
कुछ बॉयोलॉजिकल रिस्पांस मॉडीफायर कैंसर कोशिकाओं के विकास की दिशा बदलने में सक्षम होते हैं उनको सामान्य कोशिकाओं के समान व्यवहार के लिए विवश कर देते हैं।
इम्यूनोथेरेपी प्रतिरोधी तंत्र को कैंसर से लड़ने के लिए प्रेरित करने में सहायक होता है। इम्यूनोथेरेपी में इस्तेमाल किये जाने वाले रस रसायन व आयुर्वेदिक दवाये जिनको प्राय: बॉयोलॉजिकल रिस्पांस मॉडीफायर कहा जाता है क्योंकि वे शरीर के सामान्य इम्यून सिस्टम को कैंसर के खतरे से निपटने लायक बनाते हैं। कुछ बॉयोलॉजिकल रिस्पांस मॉडीफायर वे रस रसायन व आयुर्वेदिक दवाये होते हैं, जो शरीर में प्राकृतिक रूप से मौजूद होते हैं लेकिन किसी व्यक्ति के इम्यून सिस्टम को उन्नत करने में सहायता के लिये बड़ी मात्रा में ये प्रकृति द्वारा बनाए जाते हैं। बॉयोलॉजिकल रिस्पांस मॉडीफायर कैंसर से लड़ने में कई प्रकार से सहायक हो सकते हैं। वे किसी ट्यूमर को नष्ट करने के लिये अधिक इम्यू्न सिस्टम कोशिकाओं को शामिल कर सकते हैं। या वे कैंसर कोशिकाओं को इम्यून सिस्टम के आक्रमण के प्रति असुरक्षित कर देती है।
पुलिस राजक-अराजक की पहचान में क्यों चूकती है और इस चूक का इलाज क्या है ?
जब कोई यह कहता है कि डॉक्टर साहब , मेरी इम्यूनिटी बढ़ा दीजिए — तो वह नहीं समझ रहा होता कि प्रतिरक्षा-तन्त्र शरीर का वह जटिलतम तन्त्र है , जिसके बारे में ज़्यादातर डॉक्टरों-तक को कोई इल्म नहीं।
जेम्स पी.एलिसन और तासुको होंजो का शोध जिन दो अणुओं पर है , वे कैंसर-कोशिकाओं के वे प्रमाण-पत्र हैं , जिनसे वे हमारे शरीर की रक्षक लिम्फोसाइटों के जूझा करते हैं और उन्हें निष्क्रिय कर देते हैं।
आप इसे ऐसे समझिए। कैंसर-कोशिकाएँ मानव-शरीर की ही वे कोशिकाएँ हैं , जिनका अपनी वृद्धि पर कोई नियन्त्रण नहीं है। ये सामान्य कोशिकाओं से आहार और स्थान के लिए प्रतियोगिता करती और उन्हें पिछाड़ देती हैं। अन्ततः यही वह कारण होता है , जिसके कारण मनुष्य की मृत्यु हो जाती है।
ऐसा नहीं है कि हमारा प्रतिरक्षा-तन्त्र इन कोशिकाओं से लड़ता नहीं या उन्हें नष्ट करने की कोशिश नहीं करता। लेकिन अगर पुलिसवाले किसी अपराधी को नष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं , तो अपराधी भी शातिर है और वह अपनी पहचान छिपाने की फ़िराक में है। सो कई कैंसर कोशिकाएँ इसी तरह से शरीर के इन रक्षक लिम्फोसाइटों को चकमा दिया करती हैं।
कैंसर-कोशिकाओं की सतह पर अन्य सामान्य कोशिकाओं की ही तरह अपने कुछ एंटीजन नामक प्रोटीन उपस्थित होते हैं , जिन्हें वे टी लिम्फोसाइटों ( लिम्फोसाइटों का एक प्रकार ) को प्रस्तुत करती हैं। इन प्रोटीनों को कैंसर कोशिकाएँ एमएचसी 1 नामक अणु में बाँधती हैं और टी सेल रिसेप्टर से जोड़ देती हैं , जो टी लिम्फोसाइट की सतह पर मौजूद है। इस तरह से एक एमएचसी 1 + एंटीजन + टी सेल रिसेप्टर का जोड़ बन जाता है। शरीर की हर कोशिका को अपनी पहचान टी लिम्फोसाइटों को देनी ही है , यह एक क़िस्म का नियम मान लीजिए।
अब इस सम्पर्क के बाद कैंसर को कोशिकाओं पर कुछ अन्य अणु भी उग आते हैं। ये अणु सहप्रेरक ( को-स्टिम्युलेटरी ) हो सकते हैं और सहशमनक ( इन्हिबिटरी ) भी। सहप्रेरक अणु सीडी 80 और सीडी 86 हैं। कैंसर-कोशिका पर मौजूद इस अणु से जब लिम्फोसाइट जुड़ेगी , तो वह आक्रमण के लिए उत्तेजित होकर तैयार हो जाएगी। सहशमनक अणु सीटीएलए 4 और पीडी 1 हैं। इन अणुओं से लेकिन जब लिम्फोसाइट जुड़ती हैं , तो एक अलग घटना होती है। अब ये लिम्फोसाइट जो पहले कैंसर-कोशिकाओं को सम्भवतः मारने की तैयारी में थीं , निष्क्रिय हो जाती हैं। यानी एमएचसी 1 + एंटीजन _ टी सेल रिसेप्टर के बाद हुए इस दूसरे सम्पर्क ने रक्षक लिम्फोसाइट के इरादे ऐसे बदले कि उसने दुश्मन को मारने से मना कर दिया। अब शरीर क्या करे बेचारा ! कैंसर ने तो शरीर के सैनिकों को चक़मा दे दिया !
1 . एमएचसी 1 + एंटीजन ( कैंसर-कोशिका पर ) जुड़ा लिम्फोसाइट के टी सेल रिसेप्टर से ( पहला चरण )।
2 . फिर अगर सीडी 80 या सीडी 86 ( कैंसर-कोशिका पर ) जुड़ा लिम्फोसाइट से तो हुआ लिम्फोसाइट का उत्तेजन और वह हुआ आक्रमण के लिए तैयार और उनसे किया कैंसर-कोशिका को नष्ट। ( दूसरी सम्भावना , जो कैंसर-कोशिका को मारने की सफलता देती है। )
3. लेकिन अगर सीडी 80 और 86 की जगह लिम्फोसाइट जुड़ गया कैंसर-कोशिका की सीटीएलए 4 या पीडी 1 से तो वह निष्क्रिय हो गया। ( दूसरी सम्भावना जो कैंसर-कोशिका को मारने की असफलता देती है। यानी कैंसर बच निकलता है।)
( ज़ाहिर है कैंसर की कोशिकाएँ स्मार्ट हैं। वे अपनी देह पर ज़्यादा-से-ज़्यादा सीटीएलए 4 और पीडी 1 उगाएँगी , न कि सीडी 80/86 ! उन्हें पहचान कराकर अपनी , मरना थोड़े ही है लिम्फोसाइटों के हाथों ! )
अब यहाँ एलिसन और होंजो की जोड़ी आती है मैदान में। वे ऐसी कुछ दवाएँ बनाते हैं , जो कैंसर-कोशिकाओं पर उग आये सीटीएलए 4 और पीडी 1 का लिम्फोसाइटों से सम्पर्क ही न होने दें। उनसे पहले ही जुड़ जाएँ। नतीजन लिम्फोसाइट गुमराह नहीं होंगी और कैंसर-कोशिकाओं को सामान्य रूप से मार सकेंगी। इसी काम के द्वारा विज्ञान कई कैंसरों से लड़ने में कामयाब होता रहा है और इसी तकनीकी को इम्यूनोथेरेपी कहा गया है।
ऐसा नहीं है कि इम्यूनोथेरेपी नयी है। यह कई सालों से प्रचलन में है। इसके अन्तर्गत ढेर सारी दवाएँ आर्थुर्वेद में उपलब्ध हैं। जीवक आयुर्वेदा इसी तरह से रस रसायन वह आयुर्वेदिक दवाओं का प्रयोग करके कैंसर जैसी बीमारी से को खत्म करने व नष्ट करने में कई सारे रिसर्च कर अपने मरीजों को सेवाएं उपलब्ध करा रहा है