Category Archives: Blog

  • 0

कहीं आपका उठता कदम ऑर्थोराइटिस की ओर तो नहीं

Category : Blog

आज कल के रोजमर्रा के जीवन में घुटनो का दर्द या आर्थराइटिस आम सा होता जा रहा है आइये आखिर क्यों ये रोग इतनी तेजी से बढ़ रही है ; क्यों सभी इसके शिकार होते जा रहे है ।

अर्थराइटिस आखिर है क्या?

ऑर्थोराइटिस शब्द दो शब्दों से मिल कर बना है जिसमे ऑर्थो का अर्थ हड्डी होती है इटिस का अर्थ शोथ होता है जो की वेदना का करण होता है , सामान्य भाषा में बोले तो जोड़ो में सूजन (joint inflammation ) इसका करण मूल हैgathiya

तो अब हम बात करते है इसके प्रमुख लक्षणों (symptoms) की

  1. दर्द
  2. सन्धि (joint) के गति का सीमित होना
  3. सूजन (inflammation)
  4. एक या अनेक संधियों में दर्द
  5. संधियों में अकडापन(stiffness)
  6. संधियों से आवाज आना
  7. संधियों का विकृत (deformity)होना
  8. संधियों की हड्डीयो में कोने का निकलना

यदि ये लक्षण दिख रहे है तो मानिये की हड्डियों की कमजोरी के रोग आने शुरू हो गए । हड्डी के विषय में आपको बता दू की हड्डी फाइबर और मैट्रिक्स से बना ठोस, सख्त और मजबूत संयोजी ऊतक है। इसका मैट्रिक्स प्रोटीन से बना होता है और इसमें कैल्शियम और मैगनीशियम की भी प्रचूरता होती है।

क्या आप जानते हैं कि हड्डियों की मजबूती उसमें मौजूद खनिजोंकी वजह से होती है। यानी की सामान्यत जो इसके निर्माण घटक है वो ही इसके पोषक है।

आयुर्वेद और संधिशोथ

आयुर्वेद में इसके मुख्य करण वात को माना गया है। आयुर्वेद के स्पष्ट कहा गया है की वात की वृद्धि से रुक्ष, लघु खर चल विशद आदि गुणों की वृद्धि होती है जो समान्यः वृद्धावस्था में वृद्धि को प्राप्त कर जॉइंट में रहने वाली श्लेष्मा (fluid) को सुखा कर दुःख और वेदना की विकट स्थिति उत्पन्न कर देता है ।

आधुनिक चिकित्सा पद्धति और संधिशोथ

आधुनिक चिकित्सा पद्धति में घुटने का बदलना या लाक्षणिक चिकित्सा कर रोग के लक्षणों में आराम पहुचना ही एक मात्र विकल्प बताया गया है ।

जीवनशैली की त्रुटि

दर्द के लिए तेल का प्रयोग तो भारत का बच्चा बच्चा जनता है , दूध घी जो हम भारतीयो की नित्य भोजन में प्रयुक्त होने वाली वस्तु होती थी पिछले 2 दशक में हम भारतीयो को दिग्भर्मित किया गया की घी आपको नुकशान करता है ये हृदय ,यकृत आदि को खराब कर देता है और हम सभी ने अपने भोजन से दूध घी आदि को निकाल दिया और फिर अर्थराइटिस जैसे रोगों को महामारी की तरह फैला दिया। हम सभी के आहारो से विविधता का ग़ायब हो जाने एवं हानिकारक रसायन के सेवन ही हम सभी लो बीमार कर रहा है,

आइये हम जाने की आयुर्वेद कैसे काम करती है

आयुर्वेद का मूल सिद्धान्त निदान परिवर्जन – चूँकि हम आपको पहले ही बता चुके है की इस रोग में मूल में वात की वृद्धि है अतः वात को बढ़ाने वाला आहार विहार का त्याग करे। फिर बढ़े वात का शमन कर दिया जाये तो रोग में आराम आने शुरू हो जाती है। आयुर्वेद में चिकित्सा की दो विधा है जिसमे से शोधन चिकित्सा जिसे पंचकर्म के नाम से जाना जाता है जो रोग को शीघ्र ही शमन क्र देती है

पंचकर्म की प्रमुख कर्म

  • अभ्यांगम्
  • शिरोधारा
  • निरुह वस्ती
  • अनुवासन वस्ती
  • जानु वस्ति इत्यादि

शमन चिकित्सा एवं पंचकर्म के द्वारा जोड़ो की समस्या का स्थायी इलाज सम्भव है।

अपने स्वास्थ्य सम्बन्धी निःशुल्क परामर्श के लिए हेल्थ का नम्बर 8824110055 पर मिस्ड कॉल करें। अधिक जानकारी के लिए विजिट करें : www.JivakAyurveda.com


  • 0

हेपेटाइटिस बी HEPATITIS B

hep-b1-300x128

हेपेटाइटिस क्या है

लीवर शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथियों में से एक है। हेपेटाइटिस लीवर की सूजन है। लिवर में सूजन लिवर की चोट या संक्रमण शराब, ड्रग्स या अन्य मेडिकल कंडीशन के कारण हो सकती है।

हेपेटाइटिस वायरस मुख्य रूप से पाँच प्रकार के होते हैं, जिन्हें A, B, C, D और E के रूप में जाना जाता है। A, B और C सबसे आम प्रकार के हैं।

Hepatitis B क्या है?

दुनिया में सबसे आम गंभीर लीवर इन्फेक्शन हैपेटाइटिस बी के रूप में जाना जाता है। यह दो संक्रमण, पुराना और तीव्र संक्रमणों के कारण बन सकता है।

कभी-कभी बहुत सारे लोग, जो इस वायरस को प्राप्त करते हैं, उन्हें यह थोड़े समय के लिए होता है और फिर बेहतर हो जाता है। इसे एक्यूट हेपेटाइटिस बी कहा जाता है।

कभी-कभी वायरस लगातार रहता है और दीर्घकालीन संक्रमण का कारण बनता है, जिसे क्रोनिक हेपेटाइटिस बी कहा जाता है। यह संक्रमण लीवर को नुकसान पहुंचा सकता है। यह ऑर्गन (लिवर सिरोसिस), लीवर की विफलता और कैंसर के निशान पैदा कर सकता है।

अगर समय पर इलाज नहीं किया जाए, तो यह घातक हो सकता है। लीवर की सूजन के अलावा, यह एक रोगी को पीलिया, उल्टी से पीड़ित करता है जिससे मृत्यु भी हो सकती है।

युवा बच्चों को वायरस के इन्फेक्शन से ग्रस्त होने पर पुराने हेपेटाइटिस बी होने की अधिक संभावना होती है। यह वायरस एचआईवी से अधिक संक्रामक है क्योंकि यह रक्त और अन्य शरीर तरल पदार्थों द्वारा बहुत आसानी से संचारित होता है।

लक्षण

चाहे आपको संक्रमण हो, तब भी हो सकता है कि कोई लक्षण ना दिखाई दें। लेकिन सामान्य लक्षण हैं:

  • पीली त्वचा और गहरा मूत्र।
  • थकावट (शक्ति और ऊर्जा की अस्थाई हानि)।
  • भूख ना लगना।
  • मतली।
  • सर में दर्द
  • बुखार
  • पेट में दर्द
  • खुजली

कारण

  • हेपेटाइटिस बी संक्रमण हेपेटाइटिस बी वायरस (एचबीवी) द्वारा किया जाता है।
  • यह वायरस से ग्रस्त व्यक्ति के रक्त द्वारा या शरीर के स्राव द्वारा (जैसे कि वीर्य, योनि का द्रव, और लार) प्रसारित होता है।
  • संक्रमित साथी के साथ असुरक्षित यौन कार्य करने से।
  • रक्त चढ़ाने से।
  • हेपेटाइटिस-बी संक्रमित माँ।
  • अस्वच्छ सुइयों द्वारा टैटू और एक्यूपंक्चर।
  • वायरस ग्रस्त व्यक्ति से व्यक्तिगत उपयोग की वस्तुएँ (टूथ ब्रश, नाखून काटने की मशीन, या रेजर आदि) बाँटकर उपयोग करना।
  • किसी अस्थाई संपर्क जैसे गले लगना, चुम्बन, छींक, खाँसी, या भोजन और पेय बाँट कर लेने से आपको हेपेटाइटिस बी नहीं होता

घरेलू उपाय

  • 1 चम्मच रोस्टेड बार्ली पाउडर 1 कप पानी मे मिलाएँ। इसमे 1 चम्मच शहद डालें और दिन मे दो बार लें।
    • एक चम्मच तुलसी के पत्ते का पेस्ट एक कप मूली के जूस मे मिलाएँ। इसे दिन मे दो बार 15 से 20 दिनों तक इस्तेमाल करें।
    • एक कप गन्ने का रस लें, इसमे आधा चम्मच तुलसी पत्ते का पेस्ट मिलाएँ और दिन मे दो बार लें। यह ध्यान रखें कि जूस हाइजेनिक तरीके से तैयार किया गया हो।

अजवायन और जीरा (Ajwain aur jeera)
एक चम्मच अजवायन और एक चम्मच जीरा पीसकर पाउडर बना लें। इसमें एक चुटकी नमक मिलाएं। इस चूरन को रोजाना दो बार खाएं। इससे इम्यूनिटी बढ़ेगी और हेपेटाइटिस में आराम होगा।

  1. लिकोरिस पाउडर और शहद (Liquorice powder and honey)
    एक बड़ा चम्मच लिकोरिस पाउडर में दो चम्मच शहद मिलाकर प्रतिदिन खाएं। हेपेटाइटिस के उपचार में यह भी बेहद फायदेमंद है। इसके साथ ही लिकोरिस की जड़ को पानी में उबालकर उसकी चाय भी बनाई जा सकती है।
  2. लहसुन (Garlic)
    लहसुन रक्त को साफ करता है और शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालता है ऐसे में रोजाना सुबह खाली पेट लहसुन की एक से दो कली चबाएं। साथ ही खाना बनाने में भी लहसुन का प्रयोग मसाले के रूप में जरूर करें।
  3. हल्दी (Haldi)
    हल्दी इनफ्लेमेंटरी (inflammatory) गुणों से भरपूर होती है। हल्दी का इस्तेमाल भी हेपेटाइटिस से रक्षा कर सकता है। हल्दी को दूध में डालकर पीने से भी बहुत लाभ होता है। हालांकि पीलिया होने में हल्दी लेने की मनाही होती है।
  4. काली गाजर (Black carrot)
    काली गाजर के भी बहुत फायदे हैं। विटामिन से भरपूर काली गाजर से खून की कमी पूरी होती है तथा रक्त संचार सुधरता है। हेपेटाइटिस में भी गाजर को सलाद के रूप में खाने से बहुत फायदे होते हैं।
  5. ग्रीन टी (Green tea)
    ग्रीन टी यानि हर्बल चाय गुणों से भरपूर होती है। ग्रीन टी में एंटीऑक्सीडेंट (antioxidant) होते हैं जो शरीर के साथ ही मस्तिष्क को भी स्वस्थ रखते हैं। हेपेटाइटिस के उपचार और बचाव के लिए ग्रीन टी को अपनी दिनचर्या में शामिल करें।

    7. आंवला (Amla)
    आंवला विटामिन सी से भरपूर होता है जो लीवर को हर तरह से फायदा पहुंचाता है। आंवला का प्रयोग च्यवनप्राश में भी किया जाता है जिससे इम्यूनिटी बढ़े और पाचन शक्ति मजबूत हो। ऐसे में आंवला का प्रयोग दैनिक आहार में भी किया जा सकता है। आंवला जूस, चटनी, अचार आदि को दैनिक आहार में शामिल करें।

  6. अलसी के बीज (Flax seed)
    अलसी के बीज शरीर में हार्मोन का संतुलन दोनों बनाए रखते हैं और उन्हें रक्त में सही तरीके से भेजने का काम भी करते हैं। फ्लैक्स सीड में सायटोकांस्टीट्यूएंट्स (phytoconstituents) होते हैं जो कि हार्मोन की बाइंडिंग का काम करते हैं और लीवर पर अतिरिक्त भार नहीं पड़ने देते। फ्लैक्स सीड को यूं ही टोस्ट के ऊपर, सलाद मे या दाल आदि में डालकर खाया जा सकता है। यह लीवर को मजबूत बनाने में सहायक है जिससे हेपेटाइटिस रोग से बचाव होता है।

  • 0

Leucorrhoea (श्वेतप्रदर)

सफ़ेद पानी – श्वेत प्रदर के लक्षण

सफ़ेद पानी का आना अथवा श्वेत प्रदर महिलाओ में होने वाली एक आम समस्या है जिन स्त्रीओं व नयी उम्र की युवतियों में यह रोग हो जाता है इसके कारण उनका पूरा शरीर दुबला पतला, हाथ पैरों में  दर्द होते रहना, चिढ़चिढ़ापन, काम में मन नहीं लगता, योनि के आसपास खुजली होना, योनी से बदबू आना, चक्कर आना और कमर का दर्द होते रहना इस तरह के लक्षण हो सकते हैं जब किसी को श्वेत प्रदर रोग हो जाता है. सफ़ेद पानी का मासिक धर्म से पहले या बाद में आना स्वाभाविक हैं. परन्तु अगर सफ़ेद पानी ज्यादा मात्रा में आता हैं तो ये एक रोग हो सकता हैं.यह एक सामान्य प्रक्रिया हैं जो मासिक धर्म के अनुसार होती रहती हैं. अण्डोत्सर्ग के समय भी योनि में ये पानी रहता है ताकि अंडे को तैरकर जाने में मदद कर सके. ये महिला में उनके शरीर में होने वाली कमियो की वजह से भी हो सकती हैं.

सफ़ेद पानी आने के कारण:-

  • अपनी योनि की साफ़ सफाई न रखने पर.
  • किसी से ज्यादा घबराहट होना.
  • बीमार पुरुष के साथ सम्बन्ध बनाने पर.
  • बार बार अबॉरशन होने से
  • हार्मोन सम्बन्धी असंतुलन।
  • कब्ज और अपच।
  • तीव्र खुजली के कारण घाव होना।
  • भारी, तले, ठन्डे, मीठे और गाढ़े आहारों का अधिक सेवन।
  • दूध, मक्खन, दही, और पनीर का अत्यधिक प्रयोग।
  • यौन कार्य में अति सक्रियता।
  • रक्ताल्पता और अन्य रोग, जैसे कि मधुमेह।
  • मानसिक तनाव और चिंता।

इससे क्या समस्या हो सकती है?

  • बेहोशी या चक्कर आना
  • खाने में रुचि नहीं लगना
  • बहुत कमजोरी लगना
  • चिड़चिड़ापन
  • महिला के योनी के भाग में खुजली होने लगती है
  • पेट और कमर में दर्द की समस्या
  • लड़की के योनी में बदबू आना
  • शरीर का दुबला होना आदि।

इससे बचने के क्या उपाय हैं ?

  • योनी की साफ-सफाई का समुचित ध्यान रखें, इसके लिए आप गुनगुने पानी में कुछ बूँद डेटॉल का डालकर साफ करें।
  • सेक्स करने के बाद अपने प्राइवेट पार्ट को धोना न भूलें।
  • यूरिन पास करने के बाद पानी से साफ करें।
  • सेक्स के समय कंडोम क प्रयोग करें।
  • अपने अंडरगारमेंट को अच्छे से साफ करें।

घरेलू उपाय (उपचार)

  • खुले बर्तन में 3 कप पानी में 3 बड़ी चम्मच चावल डालकर उबालें। पानी छानकर चावल अलग कर लें। पानी में एक छोटी (चाय की) चम्मच भरकर रिफाइंड शक्कर डालें और पी लें। दिन में एक बार लें।
  • एक कप पानी में धनिये के बीज रात भर भिगोकर रखें, सुबह बीज खाकर पानी पी लें। इसे एक माह तक करें।
  • योनि को नियमित नीम के पानी से धोएँ।
  • प्रातःकाल एक गिलास नीबू पानी अत्यंत लाभकारी होता है।
  • आंवला
  • आंवले को सुखाकर अच्छी तरह से पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इसी बने चूर्ण की 3 ग्राम मात्रा को लगभग 1 महीने तक रोज सुबह-शाम को पीने से स्त्रियों को होने वाला श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) नष्ट हो जाता है।
  • नागकेशर
  • नागकेशर को 3 ग्राम की मात्रा में छाछ के साथ पीने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) की बीमारी से छुटकारा मिल जाता है।
  • केला
  • 2 पके हुए केले को चीनी के साथ कुछ दिनों तक रोज खाने से स्त्रियों को होने वाला प्रदर (ल्यूकोरिया) में आराम मिलता है।
  • मुलहठी
  • मुलहठी को पीसकर चूर्ण बना लें, फिर इसी चूर्ण को 1 ग्राम की मात्रा में लेकर पानी के साथ सुबह-शाम पीने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) की बीमारी नष्ट हो जाती है।
  • फिटकरी
  • चौथाई चम्मच पिसी हुई फिटकरी पानी से रोजाना 3 बार फंकी लेने से दोनों प्रकार के प्रदर रोग ठीक हो जाते हैं। फिटकरी पानी में मिलाकर योनि को गहराई तक सुबह-शाम धोएं और पिचकारी की सहायता से साफ करें। ककड़ी के बीजों का गर्भ 10 ग्राम और सफेद कमल की कलियां 10 ग्राम पीसकर उसमें जीरा और शक्कर मिलाकर 7 दिनों तक सेवन करने से स्त्रियों का श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) रोग मिटता है।
  • गूलर
  • रोजाना दिन में 3-4 बार गूलर के पके हुए फल 1-1 करके सेवन करने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) के रोग में लाभ मिलता है मासिक-धर्म में खून ज्यादा जाने में पांच पके हुए गूलरों पर चीनी डालकर रोजाना खाने से लाभ मिलता है। गूलर का रस 5 से 10 ग्राम मिश्री के साथ मिलाकर महिलाओं को नाभि के निचले हिस्से में पूरे पेट पर लेप करने से महिलाओं के श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) के रोग में आराम आता है। 1 किलो कच्चे गूलर लेकर इसके 3 भाग कर लें। एक भाग कच्चे गूलर उबाल लें। उनको पीसकर एक चम्मच सरसों के तेल में फ्राई कर लें तथा उसकी रोटी बना लें। रात को सोते समय रोटी को नाभि के ऊपर रखकर कपड़ा बांध लें। इस प्रकार शेष 2 भाग दो दिन तक और बांधने से श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया) में लाभ होता है।
  • नीम
  • नीम की छाल और बबूल की छाल को समान मात्रा में मोटा-मोटा कूटकर, इसके चौथाई भाग का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम को सेवन करने से श्वेतप्रदर में लाभ मिलता है। रक्तप्रदर (खूनी प्रदर) पर 10 ग्राम नीम की छाल के साथ समान मात्रा को पीसकर 2 चम्मच शहद को मिलाकर एक दिन में 3 बार खुराक के रूप में पिलायें।
  • बबूल
  • बबूल की 10 ग्राम छाल को 400 मिलीलीटर पानी में उबालें, जब यह 100 मिलीलीटर शेष बचे तो इस काढ़े को 2-2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम पीने से और इस काढ़े में थोड़ी-सी फिटकरी मिलाकर योनि में पिचकारी देने से योनिमार्ग शुद्ध होकर निरोगी बनेगा और योनि सशक्त पेशियों वाली और तंग होगी। बबूल की 10 ग्राम छाल को लेकर उसे 100 मिलीलीटर पानी में रात भर भिगोकर उस पानी को उबालें, जब पानी आधा रह जाए तो उसे छानकर बोतल में भर लें। लघुशंका के बाद इस पानी से योनि को धोने से प्रदर दूर होता है एवं योनि टाईट हो जाती है।
  • मेथी
  • मेथी के चूर्ण के पानी में भीगे हुए कपड़े को योनि में रखने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) नष्ट होता है। रात को 4 चम्मच पिसी हुई दाना मेथी को सफेद और साफ भीगे हुए पतले कपड़े में बांधकर पोटली बनाकर अन्दर जननेन्द्रिय में रखकर सोयें। पोटली को साफ और मजबूत लम्बे धागे से बांधे जिससे वह योनि से बाहर निकाली जा सके। लगभग 4 घंटे बाद या जब भी किसी तरह का कष्ट हो, पोटली बाहर निकाल लें। इससे श्वेतप्रदर ठीक हो जाता है और आराम मिलता है। मेथी-पाक या मेथी-लड्डू खाने से श्वेतप्रदर से छुटकारा मिल जाता है, शरीर हष्ट-पुष्ट बना रहता है। इससे गर्भाशय की गन्दगी को बाहर निकलने में सहायता मिलती है। गर्भाशय कमजोर होने पर योनि से पानी की तरह पतला स्राव होता है। गुड़ व मेथी का चूर्ण 1-1 चम्मच मिलाकर कुछ दिनों तक खाने से प्रदर बंद हो जाता है।

  • 0

कैसे मिले Depression से छुटकारा

तनाव मुक्त जीवन: आज के दौर  में 90% लोग Stress से घिरे हुए हैं। और कभी कभी तो यह तनाव (Stress )इतना बढ़ जाता है की वह Depression  का रूप ले लेता है। कई भयानक बीमारी से भी ज़्यादा खतरनाक बीमारी है टेंशन और ज़्यादातर बीमारियों का कारण  भी टेंशन ही है। सबसे खतरनाक दिखने वाली बीमारियां जैसे कैंसर ,  एड्स , से भी ज़्यादा खतरनाक है टेंशन हम सभी ने सुना भी होगा चिंता ही चिता है आज कल हर व्यक्ति अपनी ज़िन्दगी में एक बार तो Depression का अनुभव करता ही है। कभी कभी यह Depression इतना बढ़ जाता है की भयानक बीमारी का रूप ले लेता है। तो चलिए दोस्तों जानते है क्या है Depression और इसे  कैसे सही किया जा सकता है।

जानते है क्या है डिप्रेशन:

कभी कभी अपने आप low feel  करना। कोई उनसे प्रेम नहीं करता इस तरह की feeling को लोग Depression कहने लगते हैं पर असल में यह Depression नहीं है ।  किसी एक Negative thoughts का बार बार कई हफ़्तों और महीनो तक  आना और उस situation से निकलने  की  कोई  उम्मीद  न दिखना  का नाम ही Depression है। जीवन में चारो तरफ Negativity  ही दिखाई देना और उस परिस्थिति में इतना अपने को असहज महसूस करना की किसी भी काम को ढंग से न कर पाना। ज़्यादा समय तक लगातार तनाव (stress) और चिंता (tension) की स्थिति depression में बदल जाती है।

डिप्रेशन के लक्षण :
  • शरीर का वजन बढ़ना या घटना
  • नींद नहीं आना
  • सांसो का तेज़ होना
  • हर बात की नेगेटिव साइड देखना
  • चिड़चिड़ा होना
  • हर बात से डर लगना
  • आत्महत्या करने का विचार बार बार आना
  • कोई मुझे समझता नहीं है ऐसा विचार आना
  • बहुत अधिक नींद का आनाया नींद न आना
  • खुद को अकेला महसूस करना
  • अचानक भावुक हो जाना
  • खुद कोई फैसला न ले पाना
शारीरिक लक्षण
  • सर दर्द होना
  • दिल का काँपना
  • खाना निगलने में मुश्किल
  • उल्टी आने को होना
  • बार बार बाथरूम जाना
  • पीला पड़ना
  • श्वास छोटा होना
  • चक्कर आना
  • मासपेशियों में दर्द
  • दिल की धड़कन तेज होना
  • शारीर का काँपना
  • पसीना आना
  • ब्लड प्रेशर कम ज्यादा होना
  • थकावट होना
  • सेक्स में आरूची होना
डिप्रेशन के कारण:
  • किसी नजदीकी की मौत
  • आर्थिक परेशानी
  • नौकरी का चले जाना या न मिलना
  • शादी का टूटना
  • लगातार खराब सेहत
  • बेमन का काम
  • असफलता
  • परहेज और आहार
लेने योग्य आहार:
  • साबुत अनाज
  • प्रोटीन जैसे कि-कम वसा वाला पनीर, मछली, पोल्ट्री उत्पाद, सोया उत्पाद, दही, फलियाँ, और मटर
  • फल और सब्जियाँ
  • बेरियाँ
  • तैलीय मछली और अखरोट
  • हरी चाय
  • फलियाँ, पत्तागोभी
 इनसे परहेज करे
  • जंक फ़ूड
  • शक्करयुक्त आहार
  • प्रोसेस्ड माँस
  • शराब
  • कॉफ़ी

  • 0

Constipation एक आम समस्या, क्या है उपचार?

कब्ज़ क्या है:

कब्ज पाचन संस्था की एक आम बिमारी है जो किसी भी उम्र की व्यक्ति को हो सकती है। कब्ज के लक्षण, कब्ज होने के साधारण लक्षण हैं पेट फूलना, एसिडिटी, भूक न लगना, साँसों में बदबू, सरदर्द, मुंहासे और मुह के छाले। कब्ज होने के प्रमुख कारण हैं अनियमित आहार, बहुत कम पानी पीना,पेट के मांसपेशियों की कमजोरी, कोई कसरत न करना, तनाव और कुछ किस्म की दवाइयां।

कब्ज एक ऐसी स्थिति है जिसमे व्यक्ति का पेट ठीक से साफ नहीं होता है और मल त्याग करते समय कष्ट भी होता है। कब्ज से पीड़ित व्यक्ति आम लोगों की तुलना में कम बार शौच करता है। जहाँ आम तौर पर लोग दिन में कम से कम एक बार शौच करते हैं वहीँ  कांस्टीपेशन का मरीज ३ या उससे भी ज्यादा दिनों तक मॉल त्याग नहीं कर पाता। इस कारण से उसका पेट भार-भारी रहता है और भोजन में भी अरुचि हो जाती है। कब्ज के कारण कुछ लोगों को उल्टी भी हो जाती है और सर में दर्द भी बना रहता है।

लक्षण :

  • ठीक से मल त्याग ना होना या पेट ना साफ़ होना
  • मल त्याग करने में तकलीफ होना
  • स्टूल (टट्टी/मल) का बहुत हार्ड और कम मात्रा में होना
  • बार-बार ऐसा लगना कि अभी थोड़ा और मल त्याग करना चाहिए
  • पेट में सूजन या दर्द होना
  • उल्टी होना
  • रोगी का सर भारी रहता है
  • मल का सख्त जाना
  • मल का रंग काला व् बहुत ही दुर्गंधित होता है
  • धीरे-धीरे पेट मैं गैस का बनना।भूक का बहुत ही कम लगना
  • शरीर में कमजोरी का आ जाना
  • आलस व् चिडचिडा पन का बढ़ जाना
  • सासों की बदबू
  • जी मिचलाना
  • पेट में लगातार परिपूर्णता

कब्ज (Constipation) के कारण ?

कब्ज रोग होने की असली वजह भोजन का ठीक प्रकार से न पचना होता है। जो की कई चीजों पर निर्भर करता हैं जैसे की गरिष्ठ भोजन करना (देर से पचने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन), भोजन चबा-चबाकर न करना अर्थात् जल्दबाजी में भोजन करना खाना खाते समय अधिक जल ग्रहण करना आदि हैं अगर आप निश्चित मात्रा से कम पानी का सेवन करते हैं तो आप कब्ज से ग्रसित हो सकते है सुबह खाली पेट एवं दिनभर पानी पीते रहने से आंतों में जमा मल निकलने में आसानी होती है, जिससे पेट पूरी तरह से साफ होता है।

रोकथाम:

  • फल, सब्जियां, साबुत अनाज: इनमे तंतु होने के कारण यह पाचन में मदद करते हैं। सब्जियों के पत्तों में, फलों के छिलकों में और सब्जियों में तंतु पाए जाते हैं। सेब को बिना छिले ही खाएं। हरी सब्जियां तंतु के साथ शरीर को अवाश्यक मैग्नीशियम खनिज दिलाती हैं।
  • सूखे आलूबुखारे: सूखे आलूबुखारे रेचक की तरह काम करते हैं। अंतड़ियों को उत्तेजित करके मल को बाहर निकालने में आलूबुखारे काम करते हैं।
  • कॉफ़ी और अन्य गरम पेय: कॉफ़ी से शरीर को कोई स्वास्थय लाभ नहीं होता पर यह शरीर को तनाव से मुक्ति देता है। कॉफ़ी पिने से कब्ज से छुटकारा मिलता है।
  • पानी: तंतु का काम सफल होने के लिए पानी की आवश्यकता होती है। अगर हम पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं लेंगे तो यह पानी शरीर के मल से खिंचा जाता है और मल शरीर से निकलना मुश्किल होता है।
  • अलसी के बीज: बड़ी मात्रा में तंतु होने के कारण अलसी के बीज पाचन में मदद करते हैं। रात में सोने से पहले 1 गिलास गरम दूध में अलसी के बीज मिलाकर पियें। अलसी के बीज सुबह भी खाए जा सकते हैं।
  • नींबू– कब्ज का घरेलू इलाज, कब्ज से छुटकारा पाने के लिए सबसे गुणकारी है। सुबह खाली पेट एक गिलास गरम पानी में नींबू का रस, एक चुटकी नमक और थोडा शहद मिलाकर पियें।
  • सौंफ– अपचन, पेट फूलना और कब्ज से राहत दिलाता है। सौंफ को भुनकर पिस लें। रोज आधा चम्मच सौंफ की पाउडर पानी में मिलाकर पियें।
  • अंजीर– कब्ज का घरेलू इलाज, प्राकृतिक रूप में रेचक का काम करता है। ताजे और सूखे अंजीर खाए जा सकते हैं। 2 या 3 बादाम पानी और सूखे अंजीर थोड़ी देर के लिए पानी में भिगोयें। बादाम छीलकर अंजीर के साथ पिस लें। यह पेस्ट रात में 1 बड़े चम्मच शहद के साथ लें।
  • शहदसौम्य रेचक है। दिन में 3 बार 2 बड़े चम्मच शहद लें।
  • अंगूरमें तंतु होते हैं जो पेट साफ़ रखते हैं। रोज 15-20 अंगूर खाएं।
  • पालक कब्ज का घरेलू इलाज, कब्ज के लिए उपयुक्त सब्जी है। पालक में कई घटक हैं जो पाचन संस्था सुधार देते हैं।
  • गुडका रस सर्वोत्तम प्राकृतिक रेचक है। 1 चम्मच गुड का रस रात में सोने से पहले दूध या फल के रस में मिलाकर लें।
  • मेथी के बीज में तंतु होते हैं जो रेचक का काम करते हैं।
  • दही में अच्छे कीटाणु होते हैं जो पाचन सुधारते हैं।
  • आमला की पाउडर– कब्ज की आयुर्वेदिक दवा, 1 गिलास गरम पानी में मिलाकर सुबह खाली पेट या रात में सोने से पहले लें।
  • गरम दूध में 1 चम्मच घी मिलाकर रात में सोने से पहले पिने से कब्ज से आसानी से राहत मिलती है।

प्राणायाम करें :

सुबह-सुबह थोड़ी-थोड़ी सेर कराएँ और और प्राणायाम कराएँ जैसे अनुलोम-बिलोम,  कपालभाती इन दोनों प्राणायाम को करने से कोई भी बीमारी पास नहीं आ सकती और अगर कोई बीमारी है तो वो भी जल्द ही ठीक हो जाएगी।ayurv


  • 0

लकवा का इलाज होगा आयुर्वेद से सम्भव

paralysis-treatment-250x250                               

  • क्या है लकवा ? (What is the paralysis?)

 

  • पैरालिसिस जिसे हम लकवा से भी जानते है ये बीमारी से शरीर की शक्ति कम हो जाती है उस मरीज को घुमाना -फिराना मुश्किल हो जाता है. लकवा तब होता है जब अचानक दिमाग में लोही (ब्लड) पहोचना बंध या फिर दिमाग की कोई लोही की नली फट जाती है और मस्तिष्क की कोशिकओं के आस पास की जगह पर खून जम जाता है. क्या आप जानते है की लकवा किस-किस को हो सकता है किसी को भी ये बीमारी हो सकती है परंतु जयादा इस रोग आदमिमे दिखाई देता है और ५५ साल की उम्र में ये बीमारी ज्यादा नजर में आती है यह आधे चेहरे पर ही अपना असर दिखाती है . लेकिन तुरंत इलाज के द्वारा इस बीमारी से बच सकते है .लकवा (Paralysis) एक गंभीर बीमारी है। इस बीमारी में शरीर का कोई विशेष हिस्सा या आधा शरीर निष्क्रिय व चेतनाहीन हो जाता है। यह बीमारी प्राय: वृद्धावस्था में अधिक होती है।

कारण-: मॉससपेशियों की दुर्बलता, नाड़ियों की कमजोरी तथा बढ़ता हुआ रक्तचाप इस रोग के प्रमुख कारण हैं। जो व्यक्ति अधिक मात्रा में गैस पैदा करनेवाले पदार्थों का सेवन करते हैं, अव्यवस्थित व अत्यधिक संभोग करते हैं, विषम आहार का सेवन करते हैं, ज्यादा व्यायाम करते हैं उन्हें भी यह रोग चपेट में ले लेता है। इसके अलावा उल्टी या दस्तों का अधिक होना, मानसिक दुर्बलता, अचानक शॉक लगने आदि कारणों से भी पक्षाघात या लकवा हो जाता है।

लक्षण:- लकवा आधे शरीर की नाड़ियों व नसों को सुखाकर रक्त संचरण में व्यापक बाधा पहुंचा देता है। इसके कारण शरीर की संधियों तथा जोड़ों में शिथिलता आ जाती है। ग्रसित अंग स्वयं उठ नहीं पाते, भार उठाने तथा चलने की क्षमता पूर्णत: समाप्त हो जाती है। यदि मुंह लकवाग्रस्त हो जाए तो मुंह के अंग भी स्थिर हो जाते हैं, गरदन एक तरफ झुक जाती है, बोलने की शक्ति नष्ट हो जाती है, आखों में दर्द व फड़कन आ जाती है। शरीर में कपकपी होने लगती है। व्यक्ति कुरूप दिखने लगता है।•.

बोलने में तकलीफ. • शरीर सुना सुना लगे. • आँख में धुंधला दिखाई दे. • सिर में दर्द होना. • बेहोश होना. • बाएं पैर या बाएं हाथ से काम न कर पाना. • यादशक्ति कमजोर होना.

  •  ज्यादातर मरीजों को धमनियों में खराबी की वजह से इस बीमारी का शिकार होते है .
  •  या फिर मस्तिष्क की कोई रक्त वहिका फैट जाती है , जिसके कारन रक्त सही तरीके से शरीर के अंगो तक नहीं पहुंच पता है .
  •  मस्तिष्क में अचानक रक्तस्त्राव होना जिसके कारन मरीज के हाथ पैर चलना बंद कर देते है .
  • पैरालिसिस शरीर के किसी भी भाग या मस्तिष्क में कैंसर होने के कारन भी लोग इस परेशानी से ग्रसित हो जाते है .जयादा इस रोग आदमिमे दिखाई देता है. काजूः लकवाग्रस्त व्यक्ति को काजू का भरपूर सेवन कराना चाहिए। । किशमिशः नियमित रूप से किशमिश के सेवन से इस रोग में काफी लाभ होता है।परहेज और आहार
  • लेने योग्य आहार
  • अखरोटः अखरोट के तेल की मालिश और सेमल के पत्तों का बफारा लेने से मुंह का लकवा जल्दी ठीक हो जाता है।
  • उपचार-: अंगूरः अंगूर के रस में बग्गूगोशा या नाशपाती का रस मिलाकर रोगी को नियमित रूप से दिन में दो बार पिलाएं|
  • विटामिन बी काम्प्लेक्स जैसे नायसिन और विटामिन बी12 युक्त भोज्य पदार्थ।
  • वसीय अम्ल युक्त आहार जैसे केले, फलियाँ, दालें, पोषक खमीर, आलू, कद्दू के बीजों का तेल, अखरोट, संतरे, हरी सब्जियाँ, और कम वसा युक्त दूध
  • इनसे परहेज करें
  • कम और बार-बार खाना और आहार की कम मात्रा।
  • वसायुक्त आहारबैठे हुए या लेटे हुए कमजोर अथवा लकवाग्रस्त शारीरिक हिस्सों को चलाना चाहिए।
  • घरेलू उपाय (उपचार)
  • योग और व्यायाम
  • सोने से पहले कुछ ग्लास पानी लेकर अपने शरीर के जलस्तर को बनाए रखें।
  • बिना अवरोध की पूरी नींद लें।
  • योग की खिंचाव वाली मुद्राएँ आपकी माँसपेशियों को आराम देने में सहायता करेगी।
  • ध्यान की सहायता से अपने शरीर को तनावमुक्त करें।
  •  लकवा का आयुर्वेदिक उपचार-
  •  खजूर खुछ दिन तक रोज दूध के साथ खाने से लकवा की बीमारी में फायदा होता है.
  • सूंठ उरद को पानीके साथ मिलकर पिने से थोड़ा गरम करके रोज पिने से लाभदायी है.
  •  नासपती, एप्पल,अंगूर इन सबका बराबर मात्र में जूस बनाकर देने से फायदा होता है ये कुछ दिनों उपाय नियत करने से लकवा की बीमारी दूर होती है.
  •  तुलसी के पत्ते लेकर उबालकर देने से लकवा के रोगी के अंग को बफ देने से लकवा ठीक होने लगता है.
  • योग से सब बीमारी से बच सकते है, प्राणायाम और कपालभाति करने से लाभदायी है.

  • 0

सर्वाइकल सपोंदेलोसिस (Cervical Spondelysis)

cervical

सर्वाइकल सपोंदेलोसिस (Cervical Spondelysis)

गर्दन में दर्द होना एक आम समस्‍या बन गई है और अब तो इस बीमारी का उम्र से भी कुछ लेना देना नहीं रहा। इधर कुछ सालों मे अगर हम गौर करें तो सरवाईकल स्पान्डयलोसिस के रोगियों मे बेतहाशा वृद्दि हुयी है। इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे लम्बे समय तक डेस्क वर्क या पढ़ाई-लिखाई करना, कठोर तकिए का इस्तेमाल करना, टेढे-मेढे होकर सोना, अथवा लेटकर टीवी देखना आदि।

लक्षण और कारण रोग के लक्षण कोई आवशयक नहीं कि सिर्फ़ गर्दन की दर्द और जकडन को ही लेकर आयें। विभिन्न रोगियों मे अलग -2 तरह के लक्षण देखे जाते हैं:

गर्दन की दर्द और जकडन, गर्दन स्थिर रहना, बहुत कम या न घूमना।

  • चक्कर आना ।
  • कन्धे का दर्द, कन्धे की जकडन और बाँह की नस का दर्द ।
  •  ऊगलियों और हथेलियों का सुन्नपन
  •  गर्दन की दर्द के प्रमुख कारण:

वजह अनेक लेकिन सार एक, अनियमित और अनियंत्रित लाइफ़ स्टाईल। वजह आप स्वंय खोजें:

  • टेढे-मेढे होकर सोना, हमेशा लचक्दार बिछौनों पर सोना, आरामदेह सोफ़ों तथा गद्देदार कुर्सी पर घटो बैठे रहना, सोते समय ऊँचा सिरहाना (तकिया) रखना, लेट कर टी वी देखना ।
  • गलत ढंग से वाहन चलाना
  • बहुत झुक कर बैठ कर पढना, लेटकर पढना ।
  • घटों भर सिलाई, बुनाई, व कशीदा करने वाले लोगों।
  • गलत ढंग से और शारीरिक शक्ति से अधिक बोझ उठाना
  • व्यायाम न करना और चिंताग्रस्त जीवन जीना।
  • संतुलित भोजन न लेना, भोजन मे विटामिन डी की कमी रहना, अधिक मात्रा मे चीनी और मीठाईयाँ खाना।
  • गठिया से पीडित रोगी
  • घंटों कम्पयूटर के सामने बैठना और ब्लागिगं करना

                                                            

कुछ उपाय

1 गर्दन को घ़ड़ी की दिशा में हल्के-हल्के पाँच या दस बार घुमाएँ, फिर यही क्रिया विपरीत दिशा में करें। अपनी ठुड्डी को सीने की तरफ़ झुकायें, रुकें,तत्पश्चात सिर को पीछे ले जायें। अपने सिर को बायें तरफ़ के कान की तरफ़ मोडें, रुकें और तत्पश्चात मध्य मे लायें। यही क्रम बायें तरफ़ भी करें।

2 गरदन में दर्द होने पर किसी भी तेल से हलके-हलके मालिश करें। मालिश हमेशा ऊपर से नीचे की ओर ही करें, यानी गरदन से कंधे की ओर करें। मालिश के बाद गर्म पानी की थैली से या कांच की बोतल में गर्म पानी भरकर सिकाई करें। सिकाई के बाद तुरंत खुली हवा में न जाएँ।

3 नर्म व कम ऊँचाई वाला तकिया प्रयोग करें। आपका बिस्तर समतल हो, झूलेनुमा न हो।

4 तीव्र दर्द के हालात मे गर्म पानी में नमक डाल कर सिकाई करें। यह क्रम दिन मे कम 3-4 बार अवश्य करें। दर्द को जल्द आराम देने मे यह काफ़ी लाभदायक है।

5 यदि फिर भी दर्द से छुटकारा न मिले तो डॉक्टर से जाँच कराएँ। बगैर डॉक्टरी सलाह के कोई भी दर्द निवारक दवा न लें। फिजियोथेरेपिस्ट के बताए अनुसार ही गर्दन का व्यायाम करें।

परहेज और आहार

लेने योग्य आहार

  • सुबह लहसुन की 2-3 कलियाँ खाने से और लहसुन का तेल लगाने से गर्दन के दर्द में शीघ्र छुटकारा मिल सकता है।
  • सेब, लहसुन, अदरक और हल्दी ये सभी सूजन कम करते हैं।
  • ओमेगा 3 और विटामिन ई से भरे-पूरे आहार जैसे कि तैलीय बीज, मेवे और मछली भी जोड़ों की सूजन से राहत देते हैं।
  • दिन में तीन बार चट्टानी नमक डला नीबू का रस पियें।
  • नियमित आहार में चावल के स्थान पर गेहूँ लें और कड़वी सब्जियाँ अधिक शामिल करें जैसे करेला और सहजन।
  • ताज़ी हरी और पत्तेदार सब्जियाँ लेनी चाहिए। भोजन में सलाद अवश्य होना चाहिए। पालक, गाजर, और चुकंदर का रस भी लेना चाहिए।
  • इनसे परहेज करे
  • तले आहार, मसालेदार, तैलीय, माँस की अधिकता, और रिफाइंड आहार जैसे कि मिठाइयाँ, गोलियाँ, ब्रेड और मैदे की बनी अन्य वस्तुएँ जोड़ के रोगों के लिए दोषी हैं।
  • एसिड उत्पन्न करने वाले आहारों के साथ रेड मीट, खट्टी सब्जियाँ और सफ़ेद आलू भी. आपके शरीर में इकठ्ठा एसिड जोड़ों के फूलने को बढ़ावा दे सकता है और सर्वाइकल स्पोंडीलोसिस को अधिक बढ़ा सकता है।                                                                                                                                                        जीवक आयुर्वेदा की रस रसायन चिकित्सा एवं पंचकर्म थेरेपी

  • 0

Paralysis (लकवा)

paralysis-treatment-250x250क्या है लकवा ? (What is the paralysis?)

पैरालिसिस जिसे हम लकवा से भी जानते है ये बीमारी से शरीर की शक्ति कम हो जाती है उस मरीज को घुमाना -फिराना मुश्किल हो जाता है. लकवा तब होता है जब अचानक दिमाग में लोही (ब्लड) पहोचना बंध या फिर दिमाग की कोई लोही की नली फट जाती है और मस्तिष्क की कोशिकओं के आस पास की जगह पर खून जम जाता है. क्या आप जानते है की लकवा किस-किस को हो सकता है किसी को भी ये बीमारी हो सकती है परंतु जयादा इस रोग आदमिमे दिखाई देता है और ५५ साल की उम्र में ये बीमारी ज्यादा नजर में आती है यह आधे चेहरे पर ही अपना असर दिखाती है . लेकिन तुरंत इलाज के द्वारा इस बीमारी से बच सकते है .लकवा (Paralysis) एक गंभीर बीमारी है। इस बीमारी में शरीर का कोई विशेष हिस्सा या आधा शरीर निष्क्रिय व चेतनाहीन हो जाता है। यह बीमारी प्राय: वृद्धावस्था में अधिक होती है।

कारण-: मॉससपेशियों की दुर्बलता, नाड़ियों की कमजोरी तथा बढ़ता हुआ रक्तचाप इस रोग के प्रमुख कारण हैं। जो व्यक्ति अधिक मात्रा में गैस पैदा करनेवाले पदार्थों का सेवन करते हैं, अव्यवस्थित व अत्यधिक संभोग करते हैं, विषम आहार का सेवन करते हैं, ज्यादा व्यायाम करते हैं उन्हें भी यह रोग चपेट में ले लेता है। इसके अलावा उल्टी या दस्तों का अधिक होना, मानसिक दुर्बलता, अचानक शॉक लगने आदि कारणों से भी पक्षाघात या लकवा हो जाता है।

लक्षण:- लकवा आधे शरीर की नाड़ियों व नसों को सुखाकर रक्त संचरण में व्यापक बाधा पहुंचा देता है। इसके कारण शरीर की संधियों तथा जोड़ों में शिथिलता आ जाती है। ग्रसित अंग स्वयं उठ नहीं पाते, भार उठाने तथा चलने की क्षमता पूर्णत: समाप्त हो जाती है। यदि मुंह लकवाग्रस्त हो जाए तो मुंह के अंग भी स्थिर हो जाते हैं, गरदन एक तरफ झुक जाती है, बोलने की शक्ति नष्ट हो जाती है, आखों में दर्द व फड़कन आ जाती है। शरीर में कपकपी होने लगती है। व्यक्ति कुरूप दिखने लगता है।

  1. बोलने में तकलीफ
  2. शरीर सुना सुना लगे
  3. आँख में धुंधला दिखाई दे
  4. सिर में दर्द होना
  5. बेहोश होना
  6. बाएं पैर या बाएं हाथ से काम न कर पाना
  7. यादशक्ति कमजोर होना

ज्यादातर मरीजों को धमनियों में खराबी की वजह से इस बीमारी का शिकार होते है

या फिर मस्तिष्क की कोई रक्त वहिका फैट जाती है , जिसके कारन रक्त सही तरीके से शरीर के अंगो तक नहीं पहुंच पता है

मस्तिष्क में अचानक रक्तस्त्राव होना जिसके कारन मरीज के हाथ पैर चलना बंद कर देते है

पैरालिसिस शरीर के किसी भी भाग या मस्तिष्क में कैंसर होने के कारन भी लोग इस परेशानी से ग्रसित हो जाते है .जयादा इस रोग आदमिमे दिखाई देता है

परहेज और आहार

लेने योग्य आहार

अखरोटः अखरोट के तेल की मालिश और सेमल के पत्तों का बफारा लेने से मुंह का लकवा जल्दी ठीक हो जाता है।

 काजूः लकवाग्रस्त व्यक्ति को काजू का भरपूर सेवन कराना चाहिए। । किशमिशः नियमित रूप से किशमिश के सेवन से इस रोग में काफी लाभ होता है।

अंगूरः अंगूर के रस में बग्गूगोशा या नाशपाती का रस मिलाकर रोगी को नियमित रूप से दिन में दो बार पिलाएं|

विटामिन बी काम्प्लेक्स जैसे नायसिन और विटामिन बी12 युक्त भोज्य पदार्थ।

वसीय अम्ल युक्त आहार जैसे केले, फलियाँ, दालें, पोषक खमीर, आलू, कद्दू के बीजों का तेल, अखरोट, संतरे, हरी सब्जियाँ, और कम वसा युक्त दूध

इनसे परहेज करें
  1. कम और बार-बार खाना और आहार की कम मात्रा।
  2. वसायुक्त आहारबैठे हुए या लेटे हुए कमजोर अथवा लकवाग्रस्त शारीरिक हिस्सों को चलाना चाहिए।
घरेलू उपाय (उपचार)
  1. योग और व्यायाम
  2. सोने से पहले कुछ ग्लास पानी लेकर अपने शरीर के जलस्तर को बनाए रखें।
  3. बिना अवरोध की पूरी नींद लें।
  4. योग की खिंचाव वाली मुद्राएँ आपकी माँसपेशियों को आराम देने में सहायता करेगी।
  5. ध्यान की सहायता से अपने शरीर को तनावमुक्त करें।

लकवा का आयुर्वेदिक उपचार-

  1.  खजूर खुछ दिन तक रोज दूध के साथ खाने से लकवा की बीमारी में फायदा होता है.
  2. सूंठ उरद को पानीके साथ मिलकर पिने से थोड़ा गरम करके रोज पिने से लाभदायी है.
  3.  नासपती, एप्पल,अंगूर इन सबका बराबर मात्र में जूस बनाकर देने से फायदा होता है ये कुछ दिनों उपाय नियत करने से लकवा की बीमारी दूर होती है.
  4.  तुलसी के पत्ते लेकर उबालकर देने से लकवा के रोगी के अंग को बफ देने से लकवा ठीक होने लगता है.
  5. योग से सब बीमारी से बच सकते है, प्राणायाम और कपालभाति करने से लाभदायी है

जीवक आयुर्वेदा लकवा का इलाज आयुर्वेदिक रस रसायन चिकित्सा एवं पंचकर्म चिकित्सा के द्वारा करता है. जीवक आयुर्वेदा के द्वारा लकवा के मरीजों को बहुत अच्छा लाभ हुआ है. इस  तरह के मरीज़ जीवक आयुर्वेदा में संपर्क करके उचित इलाज़ पा  सकते है.


  • 59

ब्लड कैंसर का इलाज आयुर्वेद में पूरी तरह सम्भव

blood cancerब्लड कैंसर यानि एक्यूट माइलॉइड ल्यूकीमिया।   ब्रिटेन के डॉक्टरों की मानें तो ब्लड कैंसर से पहले खून में गड़बड़ी यानी ब्लड डिसऑर्डर होता है। अगर समय रहते डिसऑर्डर का पता लगा लिया जाए तो उसे कैंसर में तब्दील होने से रोका जा सकता है ।

क्या है एक्यूट माइलॉइड ल्यूकीमिया:-

यह खून एवं बोन मैरो यानी अस्थिमज्जा का एक प्रकार का कैंसर है। दरअसल हमारी हड्डियों के अंदर पाई जाने वाली मज्जा ब्लड स्टेम सेल (अपरिपक्व कोशिकाएं) पैदा करता है। यह कोशिकाएं विकास की प्रक्रिया में आगे बढ़ परिपक्व होती हैं। इन्हीं से सफेद रक्त कणिका संक्रमण से लड़ती हैं। लाल रक्त कणिका पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाती हैं और प्लेटलेट्स थक्का बनाकर खून को बहने से रोकती हैं, तैयार होती हैं।
एक्यूट माइलॉइड ल्यूकीमिया में ऐसा विकार पैदा हो जाता है कि सफेद रक्त कणिकाएं परिपक्व होती ही नहीं। वहीं कई लाल रक्त कणिकाएं और प्लेटलेट्स में भी खराबी आने लगती है। अगर समय पर सही इलाज न हो तो यह कैंसर बड़ी तेजी से बेहद खराब दशा में पहुंच जाता है।

ल्यूकेमिया ब्लड कैंसर:-

ल्यूकेमिया होने पर कैंसर के सेल्स शरीर के रक्त बनाने की प्रक्रिया में दखल देने लगते हैं। ल्यूकेमिया रक्त के साथ-साथ अस्थि मज्जा पर भी हमला करता है। इसकी वजह से रोगी को चक्कर आना, खून की कमी होना, कमजोरी होना और हड्डियों में दर्द होने की समस्या होती है। ल्यूकेमिया होने का पता रक्त की जांच से चलता है जिसमें विशिष्ट प्रकार के रक्त कोशिकाओं को गिना जाता है।

लिंफोमाज ब्लड कैंसर:-

लिंफोमाज ब्लड कैंसर एक प्रकार के सफेद रक्त कोशिकाओं को प्रभावित कर लिम्फोसाइट्स में होता है। लिंफोमाज ब्लड कैंसर के लक्षण ट्यूमर की जगह व आकार पर निर्भर करते हैं। इसकी शुरुआत गर्दन में, भुजाओं के नीचे व पेट व जांघों के बीच वाले भाग में सूजन से होती है।
मल्टीपल मायलोमा ब्लड कैंसर:-
मल्टीपल मायलोमा ब्लड कैंसर के शिकार ज्यादातर बुजुर्ग लोग होते हैं। इसमें सफेद रक्त कोशिकाओं के एक प्रकार प्लाजमा प्रभावित होते हैं। इसके इलाज के लिए रेडिएशन, कीमोथेरेपी व अन्य दवाओं का प्रयोग किया जाता है।

ब्लड कैंसर का निदान:-

खून की जांच : ब्लड कैंसर के निदान के लिए कंप्लीट ब्लड काउंट किया जाता है। इसको सीबीसी भी कहा जाता है। खून के नमूने में विभिन्न प्रकार की रक्त कोशिकाएं होती हैं। जब खून में कोशिकाओं की संख्या ज्यादा मिलती है या खून में जो भी कोशिकाएं होती हैं वह बहुत छोटी होती हैं और असामान्य कोशिकाएं पायी जाती हैं तब जांच से ब्लड कैंसर का पता लगाया जा सकता है।
एक्सरे : सीने का एक्से-रे करके डॉक्टर यह पता लगा सकते हैं कि कैंसर की कोशिकाएं फेफडों में कहां तक फैल गई हैं। चेस्ट एक्स-रे से लिम्फ नोड्स में रक्त कैंसर के संक्रमण का पता लगाया जाता है। फेफडों में कैंसर की कोशिकाओं के संक्रमण का पता एक्स-रे के जरिए किया जाता है।
ट्यूमर मार्कर टेस्ट: ब्लड कैंसर के निदान के लिए चिकित्सक ट्यूमर मार्कर टेस्ट करते हैं। ट्यूमर मार्कर से शरीर के ऊतकों, खून और मूत्र का टेस्ट किया जाता है। जब कैंसर के सेल्स उभरे हुए होते हैं तब इस जांच से रक्त कैंसर का पता लगाया जा सकता है।
यूरीन जांच : ब्लड कैंसर की जांच के लिए मूत्र के सैंपल की जांच की जाती है। माइक्रोस्कोप के जरिए मूत्र से ब्लड कैंसर के सेल्स की जांच की जाती है। मूत्र में एपिथेलियल सेल्स होती हैं जो कि मूत्र के मार्ग पर होती हैं और कैंसर के सेल्स इस मूत्र के रास्ते से बाहर निकलते हैं जिसको माइक्रोस्कोप के जरिए खोजा जा सकता है। इस जांच को यूरीन सीटोलॉजी टेस्ट कहा जाता है। कैंसर के सेल्स जब ज्यादा खतरनाक हो जाते हैं तब इस टेस्ट से इसकी जांच की जा सकती है।

कैंसर के आठ लक्षण:-

पेशाब में आने वाले खून
खून की कमी की बीमारी (एनीमिया)
शौच के रास्ते खून आना
खांसी के दौरान खून का आना
स्तन में गांठ
कुछ निगलने में दिक्कत होना
मीनोपॉस के बाद खून आना
प्रोस्टेट के परीक्षण के असामान्य परिणाम
जीवक अयुर्वेदा के औषधियों से ब्लड कैंसर के मरीजो पर सफल परिणाम मिलें हैं।जीवक आयुर्वेदा की रस रसायन चिकित्सा के द्वारा मज्जा धातु में अनियमित कोशिकाओं के बढ़ने की प्रक्रिया प्रभावित होती हैं।आगे मेटास्टेसिस की प्रक्रिया रुक जाती हैं ।मरीज में धीरें धीरें इम्प्रूवमेंट दिखाई देने लगता हैं।जीवक आयुर्वेदा क चिकित्सक की देख रेख में चिकित्सा करने पर सफल परिणाम मिलते हैं।


  • 11

सोराइसिस और एक्जिमा जैसे त्वचा रोग आयुर्वेद से होंगे छू मंतर

सोराइसिस (Psorisis) त्वचा का एक ऐसा रोग है जो पूरे शरीर की त्वचा पर तेजी से फैलता है। इसमें त्वचा में जलन होती है और सारी त्वचा लाल हो जाती है। त्वचा पर छोटे या बड़े आकार के धब्बे हो जाते हैं जो छोटे छोटे धब्बों से मिलकर बने होते हैं। इनमें शुरुआत मे प्रायः पस (PUS) होता है जो बाद में सूख जाता है। इन धब्बों/चकतों का रंग गुलाबी या चमकदार सफ़ेद होता है जो पुराना होने पर राख़ के रंग जैसा काला हो जाता है।
ये चकत्ते 2 मिलीमीटर से 1 सेंटीमीटर तक के होते हैं। सोराइसिस (Psorisis) प्रायः हाथ की हथेलियों और पैर की पगतलियों से शुरू होता है। सोराइसिस में त्वचा में जलन होती है। ऐसा लगता है कि जैसे कोई बिच्छू का डंक लगा हो। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इसे आटो इम्यून डीजीज (Auto Immune Disease) माना गया है। इस तरह के रोगों में शरीर का रक्षा तंत्र (श्वेत रक्त कणिकाएं) शरीर पर ही हमला कर देता है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इस रोग का कोई भी स्थायी इलाज नहीं है केवल स्टीरायड्स (Steroids) (ग्लूकोकोर्टिकायड) द्वारा इसके लक्षणों में आराम पहुंचाया जाता है। जब भी रोगी को परेशानी जैसे जलन, खुजली आदि बढ़ती तो रोगी को केनकोर्ट का इन्जैकशन लगाया जाता है।  लेकिन आयुर्वेद में इसका ईलाज 100% सम्भव है आत्मविश्वास, धर्य और परहेज का पालन जरुरी है।

एक्जिमा (Eczema) भी त्वचा का जटिल रोग है। त्वचा में जलन, दर्द व लाली दिखाई देती है जो कुछ दिन बाद कालिमा में बादल जाती है। एक्जिमा की शुरुआत त्वचा के मोड़ों जैसे कुहनी, गर्दन का पिछला भाग पैर का ऊपरी भाग, हथेली के पिछले हिस्से और घुटनों के नीचे वाले हिस्सों से होती है। एक्जिमा में छोटी, छोटी लाल रंग की फुंसिया निकलती हैं और बाद में काली हो जाती हैं। एक्जिमा में भी केवल स्टीरायड(Steroids) वर्ग की दवाइयाँ दी जाती हैं। ये भी आटो इम्यून डीजीज(Auto Immune Disease) है।

आयुर्वेद और सोराइसिस

आयुर्वेद में त्वचा के सभी रोगों को कुष्ठ नाम से कहा गया है। चरक संहिता मे लिखा है – स्पर्श इंद्रिय (त्वचा) को विकृत करने वाले रोग का नाम कुष्ठ है सोराइसिस को विसर्प कुष्ठ कहा गया है। सुश्रुत संहिता निदान में कहा गया है “त्वचा, रक्त, मांस को दूषित करके शीघ्र ही फैलता है इसमें बैचैनी, जलन, दर्द (जैसे काँटा चुभनाया मधुमक्खी के डंक की तरह दर्द) और त्वचा के स्पर्शज्ञान (Feeling) का कम होना आदि लक्षण पाए जाते हैं उसे विसर्प कुष्ठ कहते हैं”

आयुर्वेद में एक्जिमा

आयुर्वेद में एक्जिमा को चर्मदल कहा गया है। चरक संहिता चिकित्सा स्थान, अध्याय 7 श्लोक 24 में लिखा है – जिस चर्म रोग में त्वचा में लाल रंग दिखाई दे, खुजली हो रही हो, फफोले निकले हों, वेदना (त्वचा के जिस हिस्से मे एक्जिमा है वहाँ पर दर्द) हो, ऊपर से त्वचा फटती हो और जिसमे स्पर्श (Feeling) सहन न होता हो अर्थात एक्जिमा के स्थान पर छूने से भी परेशानी हो उसे चर्मदल कहते हैं।आयुर्वेद की द्रृष्टि से ये दोनों रोग वात पित्त के बढ़ाने से होते हैं दोनों के लक्षण कुछ हद तक समान है इसलिए इन दोनों की आधुनिक तथा आयुर्वेदिक चिकित्सा भी एक समान है।

परहेज

(किसी भी चर्म रोग मे ये चीजें छोड़ दे) मांस, दूध, दही, लस्सी, तेल (सरसों के तेल को छोड़ कर), कुलथी की दाल, उरद(माह) की दाल, सेम, ईख के बने पदार्थ (चीनी, गुड खांड, मिश्री आदि), पिट्ठी से बनी वस्तुएं जैसे दहीबड़ा, कचौरी आदि, खटाई जैसे इमली, नींबू, अमचूर, कांजी आदि, विरोधी भोजन (जैसे दूध के साथ नमक, खटाई, जामुन आम आदि, घी के ऊपर ठंडा पानी, पानी में शहद आदि), अध्यशन (पहले खाए हुए भोजन के न पचने पर भी भोजन या कुछ भी ऐसे ही खा लेना), अजीर्ण (अपच) में भोजन, खाना विदाही अर्थात जलन करने वाले भोजन जैसे:- लाल/हरी मिर्च, राई, अदरक, रायता, शराब/सिरका आदि, अभिष्यन्दी जैसे:- दही, खीर, बर्फी, आइसक्रीम आदि, दिन में सोना और रात में जागना छोड़ दे।इन परहेजों का सख्ती से पालन करें। दूध/दही और मीठा बिलकुल भी न खाए। अन्यथा कितनी ही दवा लेते रहो कोई भी फायदा नहीं होगा। कई वैद्य नमक बंद कहते हैं परंतु उसकी कोई जरूरत नहीं है। किसी के कहने पर चने को अधिक न खाए। चना अधिक खाने से शरीर में खून की कमी हो जाती है। काली मिर्च का प्रयोग करें। खटाई के लिए टमाटर, आवंला प्रयोग करें।  अगर आप इस रोग से पीड़ित हैं और थक चुके है दवाईयां खा-खाकर, और फ़िर भी आपको आराम नहीं मिल रहा तो घबराएं नहीं। आयुर्वेद में इसका स्थायी इलाज है। जीवक आयुर्वेदा चर्म रोगों के इलाज़ आयुर्वेदिक द्वाईयों(Handmade Ayurvedic Medicines) एवं पंचकर्म विधि से करता हैं, जिसके अच्छे परिणाम देखे गए हैं। अतिरिक्त जानकारी के लिए आप हमें सम्पर्क कर सकते हैं, हमारे फ़ोन नम्बर वैबसाइट पर उपलब्ध हैं।


Request a Call Back

    Your Name (required)

    Your Email (required)

    Call Back Number(required)

    Your Message

    WHAT’S NEW

    What Patients Say

    Dear Mr. T K Srivastava,

    This is to thank you and the entire team at Jivak Ayurveda for the care taken towards my mother during her pain cancer.

    She is now back home.

    Dr. Tiwari and his entire team was exceptional in assisting her recovery in every possible way without which her turnaround would have perhaps been difficult.

    I must also bring to your notice that your hospital has an outstanding nursing team. Even in the crisis, the team kept my mother smiling. Do convey my personal gratitude to a… Read more

    Thanks "Jivak" to give me a new hope of Life

    Address

    First Floor, Nidhi Complex, Sec-2, Vikas Nagar, Lucknow-226022
    7704996699
    JivakAyurveda@gmail.com