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Constipation एक आम समस्या, क्या है उपचार?

कब्ज़ क्या है:

कब्ज पाचन संस्था की एक आम बिमारी है जो किसी भी उम्र की व्यक्ति को हो सकती है। कब्ज के लक्षण, कब्ज होने के साधारण लक्षण हैं पेट फूलना, एसिडिटी, भूक न लगना, साँसों में बदबू, सरदर्द, मुंहासे और मुह के छाले। कब्ज होने के प्रमुख कारण हैं अनियमित आहार, बहुत कम पानी पीना,पेट के मांसपेशियों की कमजोरी, कोई कसरत न करना, तनाव और कुछ किस्म की दवाइयां।

कब्ज एक ऐसी स्थिति है जिसमे व्यक्ति का पेट ठीक से साफ नहीं होता है और मल त्याग करते समय कष्ट भी होता है। कब्ज से पीड़ित व्यक्ति आम लोगों की तुलना में कम बार शौच करता है। जहाँ आम तौर पर लोग दिन में कम से कम एक बार शौच करते हैं वहीँ  कांस्टीपेशन का मरीज ३ या उससे भी ज्यादा दिनों तक मॉल त्याग नहीं कर पाता। इस कारण से उसका पेट भार-भारी रहता है और भोजन में भी अरुचि हो जाती है। कब्ज के कारण कुछ लोगों को उल्टी भी हो जाती है और सर में दर्द भी बना रहता है।

लक्षण :

  • ठीक से मल त्याग ना होना या पेट ना साफ़ होना
  • मल त्याग करने में तकलीफ होना
  • स्टूल (टट्टी/मल) का बहुत हार्ड और कम मात्रा में होना
  • बार-बार ऐसा लगना कि अभी थोड़ा और मल त्याग करना चाहिए
  • पेट में सूजन या दर्द होना
  • उल्टी होना
  • रोगी का सर भारी रहता है
  • मल का सख्त जाना
  • मल का रंग काला व् बहुत ही दुर्गंधित होता है
  • धीरे-धीरे पेट मैं गैस का बनना।भूक का बहुत ही कम लगना
  • शरीर में कमजोरी का आ जाना
  • आलस व् चिडचिडा पन का बढ़ जाना
  • सासों की बदबू
  • जी मिचलाना
  • पेट में लगातार परिपूर्णता

कब्ज (Constipation) के कारण ?

कब्ज रोग होने की असली वजह भोजन का ठीक प्रकार से न पचना होता है। जो की कई चीजों पर निर्भर करता हैं जैसे की गरिष्ठ भोजन करना (देर से पचने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन), भोजन चबा-चबाकर न करना अर्थात् जल्दबाजी में भोजन करना खाना खाते समय अधिक जल ग्रहण करना आदि हैं अगर आप निश्चित मात्रा से कम पानी का सेवन करते हैं तो आप कब्ज से ग्रसित हो सकते है सुबह खाली पेट एवं दिनभर पानी पीते रहने से आंतों में जमा मल निकलने में आसानी होती है, जिससे पेट पूरी तरह से साफ होता है।

रोकथाम:

  • फल, सब्जियां, साबुत अनाज: इनमे तंतु होने के कारण यह पाचन में मदद करते हैं। सब्जियों के पत्तों में, फलों के छिलकों में और सब्जियों में तंतु पाए जाते हैं। सेब को बिना छिले ही खाएं। हरी सब्जियां तंतु के साथ शरीर को अवाश्यक मैग्नीशियम खनिज दिलाती हैं।
  • सूखे आलूबुखारे: सूखे आलूबुखारे रेचक की तरह काम करते हैं। अंतड़ियों को उत्तेजित करके मल को बाहर निकालने में आलूबुखारे काम करते हैं।
  • कॉफ़ी और अन्य गरम पेय: कॉफ़ी से शरीर को कोई स्वास्थय लाभ नहीं होता पर यह शरीर को तनाव से मुक्ति देता है। कॉफ़ी पिने से कब्ज से छुटकारा मिलता है।
  • पानी: तंतु का काम सफल होने के लिए पानी की आवश्यकता होती है। अगर हम पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं लेंगे तो यह पानी शरीर के मल से खिंचा जाता है और मल शरीर से निकलना मुश्किल होता है।
  • अलसी के बीज: बड़ी मात्रा में तंतु होने के कारण अलसी के बीज पाचन में मदद करते हैं। रात में सोने से पहले 1 गिलास गरम दूध में अलसी के बीज मिलाकर पियें। अलसी के बीज सुबह भी खाए जा सकते हैं।
  • नींबू– कब्ज का घरेलू इलाज, कब्ज से छुटकारा पाने के लिए सबसे गुणकारी है। सुबह खाली पेट एक गिलास गरम पानी में नींबू का रस, एक चुटकी नमक और थोडा शहद मिलाकर पियें।
  • सौंफ– अपचन, पेट फूलना और कब्ज से राहत दिलाता है। सौंफ को भुनकर पिस लें। रोज आधा चम्मच सौंफ की पाउडर पानी में मिलाकर पियें।
  • अंजीर– कब्ज का घरेलू इलाज, प्राकृतिक रूप में रेचक का काम करता है। ताजे और सूखे अंजीर खाए जा सकते हैं। 2 या 3 बादाम पानी और सूखे अंजीर थोड़ी देर के लिए पानी में भिगोयें। बादाम छीलकर अंजीर के साथ पिस लें। यह पेस्ट रात में 1 बड़े चम्मच शहद के साथ लें।
  • शहदसौम्य रेचक है। दिन में 3 बार 2 बड़े चम्मच शहद लें।
  • अंगूरमें तंतु होते हैं जो पेट साफ़ रखते हैं। रोज 15-20 अंगूर खाएं।
  • पालक कब्ज का घरेलू इलाज, कब्ज के लिए उपयुक्त सब्जी है। पालक में कई घटक हैं जो पाचन संस्था सुधार देते हैं।
  • गुडका रस सर्वोत्तम प्राकृतिक रेचक है। 1 चम्मच गुड का रस रात में सोने से पहले दूध या फल के रस में मिलाकर लें।
  • मेथी के बीज में तंतु होते हैं जो रेचक का काम करते हैं।
  • दही में अच्छे कीटाणु होते हैं जो पाचन सुधारते हैं।
  • आमला की पाउडर– कब्ज की आयुर्वेदिक दवा, 1 गिलास गरम पानी में मिलाकर सुबह खाली पेट या रात में सोने से पहले लें।
  • गरम दूध में 1 चम्मच घी मिलाकर रात में सोने से पहले पिने से कब्ज से आसानी से राहत मिलती है।

प्राणायाम करें :

सुबह-सुबह थोड़ी-थोड़ी सेर कराएँ और और प्राणायाम कराएँ जैसे अनुलोम-बिलोम,  कपालभाती इन दोनों प्राणायाम को करने से कोई भी बीमारी पास नहीं आ सकती और अगर कोई बीमारी है तो वो भी जल्द ही ठीक हो जाएगी।ayurv


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लकवा का इलाज होगा आयुर्वेद से सम्भव

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  • क्या है लकवा ? (What is the paralysis?)

 

  • पैरालिसिस जिसे हम लकवा से भी जानते है ये बीमारी से शरीर की शक्ति कम हो जाती है उस मरीज को घुमाना -फिराना मुश्किल हो जाता है. लकवा तब होता है जब अचानक दिमाग में लोही (ब्लड) पहोचना बंध या फिर दिमाग की कोई लोही की नली फट जाती है और मस्तिष्क की कोशिकओं के आस पास की जगह पर खून जम जाता है. क्या आप जानते है की लकवा किस-किस को हो सकता है किसी को भी ये बीमारी हो सकती है परंतु जयादा इस रोग आदमिमे दिखाई देता है और ५५ साल की उम्र में ये बीमारी ज्यादा नजर में आती है यह आधे चेहरे पर ही अपना असर दिखाती है . लेकिन तुरंत इलाज के द्वारा इस बीमारी से बच सकते है .लकवा (Paralysis) एक गंभीर बीमारी है। इस बीमारी में शरीर का कोई विशेष हिस्सा या आधा शरीर निष्क्रिय व चेतनाहीन हो जाता है। यह बीमारी प्राय: वृद्धावस्था में अधिक होती है।

कारण-: मॉससपेशियों की दुर्बलता, नाड़ियों की कमजोरी तथा बढ़ता हुआ रक्तचाप इस रोग के प्रमुख कारण हैं। जो व्यक्ति अधिक मात्रा में गैस पैदा करनेवाले पदार्थों का सेवन करते हैं, अव्यवस्थित व अत्यधिक संभोग करते हैं, विषम आहार का सेवन करते हैं, ज्यादा व्यायाम करते हैं उन्हें भी यह रोग चपेट में ले लेता है। इसके अलावा उल्टी या दस्तों का अधिक होना, मानसिक दुर्बलता, अचानक शॉक लगने आदि कारणों से भी पक्षाघात या लकवा हो जाता है।

लक्षण:- लकवा आधे शरीर की नाड़ियों व नसों को सुखाकर रक्त संचरण में व्यापक बाधा पहुंचा देता है। इसके कारण शरीर की संधियों तथा जोड़ों में शिथिलता आ जाती है। ग्रसित अंग स्वयं उठ नहीं पाते, भार उठाने तथा चलने की क्षमता पूर्णत: समाप्त हो जाती है। यदि मुंह लकवाग्रस्त हो जाए तो मुंह के अंग भी स्थिर हो जाते हैं, गरदन एक तरफ झुक जाती है, बोलने की शक्ति नष्ट हो जाती है, आखों में दर्द व फड़कन आ जाती है। शरीर में कपकपी होने लगती है। व्यक्ति कुरूप दिखने लगता है।•.

बोलने में तकलीफ. • शरीर सुना सुना लगे. • आँख में धुंधला दिखाई दे. • सिर में दर्द होना. • बेहोश होना. • बाएं पैर या बाएं हाथ से काम न कर पाना. • यादशक्ति कमजोर होना.

  •  ज्यादातर मरीजों को धमनियों में खराबी की वजह से इस बीमारी का शिकार होते है .
  •  या फिर मस्तिष्क की कोई रक्त वहिका फैट जाती है , जिसके कारन रक्त सही तरीके से शरीर के अंगो तक नहीं पहुंच पता है .
  •  मस्तिष्क में अचानक रक्तस्त्राव होना जिसके कारन मरीज के हाथ पैर चलना बंद कर देते है .
  • पैरालिसिस शरीर के किसी भी भाग या मस्तिष्क में कैंसर होने के कारन भी लोग इस परेशानी से ग्रसित हो जाते है .जयादा इस रोग आदमिमे दिखाई देता है. काजूः लकवाग्रस्त व्यक्ति को काजू का भरपूर सेवन कराना चाहिए। । किशमिशः नियमित रूप से किशमिश के सेवन से इस रोग में काफी लाभ होता है।परहेज और आहार
  • लेने योग्य आहार
  • अखरोटः अखरोट के तेल की मालिश और सेमल के पत्तों का बफारा लेने से मुंह का लकवा जल्दी ठीक हो जाता है।
  • उपचार-: अंगूरः अंगूर के रस में बग्गूगोशा या नाशपाती का रस मिलाकर रोगी को नियमित रूप से दिन में दो बार पिलाएं|
  • विटामिन बी काम्प्लेक्स जैसे नायसिन और विटामिन बी12 युक्त भोज्य पदार्थ।
  • वसीय अम्ल युक्त आहार जैसे केले, फलियाँ, दालें, पोषक खमीर, आलू, कद्दू के बीजों का तेल, अखरोट, संतरे, हरी सब्जियाँ, और कम वसा युक्त दूध
  • इनसे परहेज करें
  • कम और बार-बार खाना और आहार की कम मात्रा।
  • वसायुक्त आहारबैठे हुए या लेटे हुए कमजोर अथवा लकवाग्रस्त शारीरिक हिस्सों को चलाना चाहिए।
  • घरेलू उपाय (उपचार)
  • योग और व्यायाम
  • सोने से पहले कुछ ग्लास पानी लेकर अपने शरीर के जलस्तर को बनाए रखें।
  • बिना अवरोध की पूरी नींद लें।
  • योग की खिंचाव वाली मुद्राएँ आपकी माँसपेशियों को आराम देने में सहायता करेगी।
  • ध्यान की सहायता से अपने शरीर को तनावमुक्त करें।
  •  लकवा का आयुर्वेदिक उपचार-
  •  खजूर खुछ दिन तक रोज दूध के साथ खाने से लकवा की बीमारी में फायदा होता है.
  • सूंठ उरद को पानीके साथ मिलकर पिने से थोड़ा गरम करके रोज पिने से लाभदायी है.
  •  नासपती, एप्पल,अंगूर इन सबका बराबर मात्र में जूस बनाकर देने से फायदा होता है ये कुछ दिनों उपाय नियत करने से लकवा की बीमारी दूर होती है.
  •  तुलसी के पत्ते लेकर उबालकर देने से लकवा के रोगी के अंग को बफ देने से लकवा ठीक होने लगता है.
  • योग से सब बीमारी से बच सकते है, प्राणायाम और कपालभाति करने से लाभदायी है.

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सर्वाइकल सपोंदेलोसिस (Cervical Spondelysis)

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सर्वाइकल सपोंदेलोसिस (Cervical Spondelysis)

गर्दन में दर्द होना एक आम समस्‍या बन गई है और अब तो इस बीमारी का उम्र से भी कुछ लेना देना नहीं रहा। इधर कुछ सालों मे अगर हम गौर करें तो सरवाईकल स्पान्डयलोसिस के रोगियों मे बेतहाशा वृद्दि हुयी है। इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे लम्बे समय तक डेस्क वर्क या पढ़ाई-लिखाई करना, कठोर तकिए का इस्तेमाल करना, टेढे-मेढे होकर सोना, अथवा लेटकर टीवी देखना आदि।

लक्षण और कारण रोग के लक्षण कोई आवशयक नहीं कि सिर्फ़ गर्दन की दर्द और जकडन को ही लेकर आयें। विभिन्न रोगियों मे अलग -2 तरह के लक्षण देखे जाते हैं:

गर्दन की दर्द और जकडन, गर्दन स्थिर रहना, बहुत कम या न घूमना।

  • चक्कर आना ।
  • कन्धे का दर्द, कन्धे की जकडन और बाँह की नस का दर्द ।
  •  ऊगलियों और हथेलियों का सुन्नपन
  •  गर्दन की दर्द के प्रमुख कारण:

वजह अनेक लेकिन सार एक, अनियमित और अनियंत्रित लाइफ़ स्टाईल। वजह आप स्वंय खोजें:

  • टेढे-मेढे होकर सोना, हमेशा लचक्दार बिछौनों पर सोना, आरामदेह सोफ़ों तथा गद्देदार कुर्सी पर घटो बैठे रहना, सोते समय ऊँचा सिरहाना (तकिया) रखना, लेट कर टी वी देखना ।
  • गलत ढंग से वाहन चलाना
  • बहुत झुक कर बैठ कर पढना, लेटकर पढना ।
  • घटों भर सिलाई, बुनाई, व कशीदा करने वाले लोगों।
  • गलत ढंग से और शारीरिक शक्ति से अधिक बोझ उठाना
  • व्यायाम न करना और चिंताग्रस्त जीवन जीना।
  • संतुलित भोजन न लेना, भोजन मे विटामिन डी की कमी रहना, अधिक मात्रा मे चीनी और मीठाईयाँ खाना।
  • गठिया से पीडित रोगी
  • घंटों कम्पयूटर के सामने बैठना और ब्लागिगं करना

                                                            

कुछ उपाय

1 गर्दन को घ़ड़ी की दिशा में हल्के-हल्के पाँच या दस बार घुमाएँ, फिर यही क्रिया विपरीत दिशा में करें। अपनी ठुड्डी को सीने की तरफ़ झुकायें, रुकें,तत्पश्चात सिर को पीछे ले जायें। अपने सिर को बायें तरफ़ के कान की तरफ़ मोडें, रुकें और तत्पश्चात मध्य मे लायें। यही क्रम बायें तरफ़ भी करें।

2 गरदन में दर्द होने पर किसी भी तेल से हलके-हलके मालिश करें। मालिश हमेशा ऊपर से नीचे की ओर ही करें, यानी गरदन से कंधे की ओर करें। मालिश के बाद गर्म पानी की थैली से या कांच की बोतल में गर्म पानी भरकर सिकाई करें। सिकाई के बाद तुरंत खुली हवा में न जाएँ।

3 नर्म व कम ऊँचाई वाला तकिया प्रयोग करें। आपका बिस्तर समतल हो, झूलेनुमा न हो।

4 तीव्र दर्द के हालात मे गर्म पानी में नमक डाल कर सिकाई करें। यह क्रम दिन मे कम 3-4 बार अवश्य करें। दर्द को जल्द आराम देने मे यह काफ़ी लाभदायक है।

5 यदि फिर भी दर्द से छुटकारा न मिले तो डॉक्टर से जाँच कराएँ। बगैर डॉक्टरी सलाह के कोई भी दर्द निवारक दवा न लें। फिजियोथेरेपिस्ट के बताए अनुसार ही गर्दन का व्यायाम करें।

परहेज और आहार

लेने योग्य आहार

  • सुबह लहसुन की 2-3 कलियाँ खाने से और लहसुन का तेल लगाने से गर्दन के दर्द में शीघ्र छुटकारा मिल सकता है।
  • सेब, लहसुन, अदरक और हल्दी ये सभी सूजन कम करते हैं।
  • ओमेगा 3 और विटामिन ई से भरे-पूरे आहार जैसे कि तैलीय बीज, मेवे और मछली भी जोड़ों की सूजन से राहत देते हैं।
  • दिन में तीन बार चट्टानी नमक डला नीबू का रस पियें।
  • नियमित आहार में चावल के स्थान पर गेहूँ लें और कड़वी सब्जियाँ अधिक शामिल करें जैसे करेला और सहजन।
  • ताज़ी हरी और पत्तेदार सब्जियाँ लेनी चाहिए। भोजन में सलाद अवश्य होना चाहिए। पालक, गाजर, और चुकंदर का रस भी लेना चाहिए।
  • इनसे परहेज करे
  • तले आहार, मसालेदार, तैलीय, माँस की अधिकता, और रिफाइंड आहार जैसे कि मिठाइयाँ, गोलियाँ, ब्रेड और मैदे की बनी अन्य वस्तुएँ जोड़ के रोगों के लिए दोषी हैं।
  • एसिड उत्पन्न करने वाले आहारों के साथ रेड मीट, खट्टी सब्जियाँ और सफ़ेद आलू भी. आपके शरीर में इकठ्ठा एसिड जोड़ों के फूलने को बढ़ावा दे सकता है और सर्वाइकल स्पोंडीलोसिस को अधिक बढ़ा सकता है।                                                                                                                                                        जीवक आयुर्वेदा की रस रसायन चिकित्सा एवं पंचकर्म थेरेपी

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Paralysis (लकवा)

paralysis-treatment-250x250क्या है लकवा ? (What is the paralysis?)

पैरालिसिस जिसे हम लकवा से भी जानते है ये बीमारी से शरीर की शक्ति कम हो जाती है उस मरीज को घुमाना -फिराना मुश्किल हो जाता है. लकवा तब होता है जब अचानक दिमाग में लोही (ब्लड) पहोचना बंध या फिर दिमाग की कोई लोही की नली फट जाती है और मस्तिष्क की कोशिकओं के आस पास की जगह पर खून जम जाता है. क्या आप जानते है की लकवा किस-किस को हो सकता है किसी को भी ये बीमारी हो सकती है परंतु जयादा इस रोग आदमिमे दिखाई देता है और ५५ साल की उम्र में ये बीमारी ज्यादा नजर में आती है यह आधे चेहरे पर ही अपना असर दिखाती है . लेकिन तुरंत इलाज के द्वारा इस बीमारी से बच सकते है .लकवा (Paralysis) एक गंभीर बीमारी है। इस बीमारी में शरीर का कोई विशेष हिस्सा या आधा शरीर निष्क्रिय व चेतनाहीन हो जाता है। यह बीमारी प्राय: वृद्धावस्था में अधिक होती है।

कारण-: मॉससपेशियों की दुर्बलता, नाड़ियों की कमजोरी तथा बढ़ता हुआ रक्तचाप इस रोग के प्रमुख कारण हैं। जो व्यक्ति अधिक मात्रा में गैस पैदा करनेवाले पदार्थों का सेवन करते हैं, अव्यवस्थित व अत्यधिक संभोग करते हैं, विषम आहार का सेवन करते हैं, ज्यादा व्यायाम करते हैं उन्हें भी यह रोग चपेट में ले लेता है। इसके अलावा उल्टी या दस्तों का अधिक होना, मानसिक दुर्बलता, अचानक शॉक लगने आदि कारणों से भी पक्षाघात या लकवा हो जाता है।

लक्षण:- लकवा आधे शरीर की नाड़ियों व नसों को सुखाकर रक्त संचरण में व्यापक बाधा पहुंचा देता है। इसके कारण शरीर की संधियों तथा जोड़ों में शिथिलता आ जाती है। ग्रसित अंग स्वयं उठ नहीं पाते, भार उठाने तथा चलने की क्षमता पूर्णत: समाप्त हो जाती है। यदि मुंह लकवाग्रस्त हो जाए तो मुंह के अंग भी स्थिर हो जाते हैं, गरदन एक तरफ झुक जाती है, बोलने की शक्ति नष्ट हो जाती है, आखों में दर्द व फड़कन आ जाती है। शरीर में कपकपी होने लगती है। व्यक्ति कुरूप दिखने लगता है।

  1. बोलने में तकलीफ
  2. शरीर सुना सुना लगे
  3. आँख में धुंधला दिखाई दे
  4. सिर में दर्द होना
  5. बेहोश होना
  6. बाएं पैर या बाएं हाथ से काम न कर पाना
  7. यादशक्ति कमजोर होना

ज्यादातर मरीजों को धमनियों में खराबी की वजह से इस बीमारी का शिकार होते है

या फिर मस्तिष्क की कोई रक्त वहिका फैट जाती है , जिसके कारन रक्त सही तरीके से शरीर के अंगो तक नहीं पहुंच पता है

मस्तिष्क में अचानक रक्तस्त्राव होना जिसके कारन मरीज के हाथ पैर चलना बंद कर देते है

पैरालिसिस शरीर के किसी भी भाग या मस्तिष्क में कैंसर होने के कारन भी लोग इस परेशानी से ग्रसित हो जाते है .जयादा इस रोग आदमिमे दिखाई देता है

परहेज और आहार

लेने योग्य आहार

अखरोटः अखरोट के तेल की मालिश और सेमल के पत्तों का बफारा लेने से मुंह का लकवा जल्दी ठीक हो जाता है।

 काजूः लकवाग्रस्त व्यक्ति को काजू का भरपूर सेवन कराना चाहिए। । किशमिशः नियमित रूप से किशमिश के सेवन से इस रोग में काफी लाभ होता है।

अंगूरः अंगूर के रस में बग्गूगोशा या नाशपाती का रस मिलाकर रोगी को नियमित रूप से दिन में दो बार पिलाएं|

विटामिन बी काम्प्लेक्स जैसे नायसिन और विटामिन बी12 युक्त भोज्य पदार्थ।

वसीय अम्ल युक्त आहार जैसे केले, फलियाँ, दालें, पोषक खमीर, आलू, कद्दू के बीजों का तेल, अखरोट, संतरे, हरी सब्जियाँ, और कम वसा युक्त दूध

इनसे परहेज करें
  1. कम और बार-बार खाना और आहार की कम मात्रा।
  2. वसायुक्त आहारबैठे हुए या लेटे हुए कमजोर अथवा लकवाग्रस्त शारीरिक हिस्सों को चलाना चाहिए।
घरेलू उपाय (उपचार)
  1. योग और व्यायाम
  2. सोने से पहले कुछ ग्लास पानी लेकर अपने शरीर के जलस्तर को बनाए रखें।
  3. बिना अवरोध की पूरी नींद लें।
  4. योग की खिंचाव वाली मुद्राएँ आपकी माँसपेशियों को आराम देने में सहायता करेगी।
  5. ध्यान की सहायता से अपने शरीर को तनावमुक्त करें।

लकवा का आयुर्वेदिक उपचार-

  1.  खजूर खुछ दिन तक रोज दूध के साथ खाने से लकवा की बीमारी में फायदा होता है.
  2. सूंठ उरद को पानीके साथ मिलकर पिने से थोड़ा गरम करके रोज पिने से लाभदायी है.
  3.  नासपती, एप्पल,अंगूर इन सबका बराबर मात्र में जूस बनाकर देने से फायदा होता है ये कुछ दिनों उपाय नियत करने से लकवा की बीमारी दूर होती है.
  4.  तुलसी के पत्ते लेकर उबालकर देने से लकवा के रोगी के अंग को बफ देने से लकवा ठीक होने लगता है.
  5. योग से सब बीमारी से बच सकते है, प्राणायाम और कपालभाति करने से लाभदायी है

जीवक आयुर्वेदा लकवा का इलाज आयुर्वेदिक रस रसायन चिकित्सा एवं पंचकर्म चिकित्सा के द्वारा करता है. जीवक आयुर्वेदा के द्वारा लकवा के मरीजों को बहुत अच्छा लाभ हुआ है. इस  तरह के मरीज़ जीवक आयुर्वेदा में संपर्क करके उचित इलाज़ पा  सकते है.


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ब्लड कैंसर का इलाज आयुर्वेद में पूरी तरह सम्भव

blood cancerब्लड कैंसर यानि एक्यूट माइलॉइड ल्यूकीमिया।   ब्रिटेन के डॉक्टरों की मानें तो ब्लड कैंसर से पहले खून में गड़बड़ी यानी ब्लड डिसऑर्डर होता है। अगर समय रहते डिसऑर्डर का पता लगा लिया जाए तो उसे कैंसर में तब्दील होने से रोका जा सकता है ।

क्या है एक्यूट माइलॉइड ल्यूकीमिया:-

यह खून एवं बोन मैरो यानी अस्थिमज्जा का एक प्रकार का कैंसर है। दरअसल हमारी हड्डियों के अंदर पाई जाने वाली मज्जा ब्लड स्टेम सेल (अपरिपक्व कोशिकाएं) पैदा करता है। यह कोशिकाएं विकास की प्रक्रिया में आगे बढ़ परिपक्व होती हैं। इन्हीं से सफेद रक्त कणिका संक्रमण से लड़ती हैं। लाल रक्त कणिका पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाती हैं और प्लेटलेट्स थक्का बनाकर खून को बहने से रोकती हैं, तैयार होती हैं।
एक्यूट माइलॉइड ल्यूकीमिया में ऐसा विकार पैदा हो जाता है कि सफेद रक्त कणिकाएं परिपक्व होती ही नहीं। वहीं कई लाल रक्त कणिकाएं और प्लेटलेट्स में भी खराबी आने लगती है। अगर समय पर सही इलाज न हो तो यह कैंसर बड़ी तेजी से बेहद खराब दशा में पहुंच जाता है।

ल्यूकेमिया ब्लड कैंसर:-

ल्यूकेमिया होने पर कैंसर के सेल्स शरीर के रक्त बनाने की प्रक्रिया में दखल देने लगते हैं। ल्यूकेमिया रक्त के साथ-साथ अस्थि मज्जा पर भी हमला करता है। इसकी वजह से रोगी को चक्कर आना, खून की कमी होना, कमजोरी होना और हड्डियों में दर्द होने की समस्या होती है। ल्यूकेमिया होने का पता रक्त की जांच से चलता है जिसमें विशिष्ट प्रकार के रक्त कोशिकाओं को गिना जाता है।

लिंफोमाज ब्लड कैंसर:-

लिंफोमाज ब्लड कैंसर एक प्रकार के सफेद रक्त कोशिकाओं को प्रभावित कर लिम्फोसाइट्स में होता है। लिंफोमाज ब्लड कैंसर के लक्षण ट्यूमर की जगह व आकार पर निर्भर करते हैं। इसकी शुरुआत गर्दन में, भुजाओं के नीचे व पेट व जांघों के बीच वाले भाग में सूजन से होती है।
मल्टीपल मायलोमा ब्लड कैंसर:-
मल्टीपल मायलोमा ब्लड कैंसर के शिकार ज्यादातर बुजुर्ग लोग होते हैं। इसमें सफेद रक्त कोशिकाओं के एक प्रकार प्लाजमा प्रभावित होते हैं। इसके इलाज के लिए रेडिएशन, कीमोथेरेपी व अन्य दवाओं का प्रयोग किया जाता है।

ब्लड कैंसर का निदान:-

खून की जांच : ब्लड कैंसर के निदान के लिए कंप्लीट ब्लड काउंट किया जाता है। इसको सीबीसी भी कहा जाता है। खून के नमूने में विभिन्न प्रकार की रक्त कोशिकाएं होती हैं। जब खून में कोशिकाओं की संख्या ज्यादा मिलती है या खून में जो भी कोशिकाएं होती हैं वह बहुत छोटी होती हैं और असामान्य कोशिकाएं पायी जाती हैं तब जांच से ब्लड कैंसर का पता लगाया जा सकता है।
एक्सरे : सीने का एक्से-रे करके डॉक्टर यह पता लगा सकते हैं कि कैंसर की कोशिकाएं फेफडों में कहां तक फैल गई हैं। चेस्ट एक्स-रे से लिम्फ नोड्स में रक्त कैंसर के संक्रमण का पता लगाया जाता है। फेफडों में कैंसर की कोशिकाओं के संक्रमण का पता एक्स-रे के जरिए किया जाता है।
ट्यूमर मार्कर टेस्ट: ब्लड कैंसर के निदान के लिए चिकित्सक ट्यूमर मार्कर टेस्ट करते हैं। ट्यूमर मार्कर से शरीर के ऊतकों, खून और मूत्र का टेस्ट किया जाता है। जब कैंसर के सेल्स उभरे हुए होते हैं तब इस जांच से रक्त कैंसर का पता लगाया जा सकता है।
यूरीन जांच : ब्लड कैंसर की जांच के लिए मूत्र के सैंपल की जांच की जाती है। माइक्रोस्कोप के जरिए मूत्र से ब्लड कैंसर के सेल्स की जांच की जाती है। मूत्र में एपिथेलियल सेल्स होती हैं जो कि मूत्र के मार्ग पर होती हैं और कैंसर के सेल्स इस मूत्र के रास्ते से बाहर निकलते हैं जिसको माइक्रोस्कोप के जरिए खोजा जा सकता है। इस जांच को यूरीन सीटोलॉजी टेस्ट कहा जाता है। कैंसर के सेल्स जब ज्यादा खतरनाक हो जाते हैं तब इस टेस्ट से इसकी जांच की जा सकती है।

कैंसर के आठ लक्षण:-

पेशाब में आने वाले खून
खून की कमी की बीमारी (एनीमिया)
शौच के रास्ते खून आना
खांसी के दौरान खून का आना
स्तन में गांठ
कुछ निगलने में दिक्कत होना
मीनोपॉस के बाद खून आना
प्रोस्टेट के परीक्षण के असामान्य परिणाम
जीवक अयुर्वेदा के औषधियों से ब्लड कैंसर के मरीजो पर सफल परिणाम मिलें हैं।जीवक आयुर्वेदा की रस रसायन चिकित्सा के द्वारा मज्जा धातु में अनियमित कोशिकाओं के बढ़ने की प्रक्रिया प्रभावित होती हैं।आगे मेटास्टेसिस की प्रक्रिया रुक जाती हैं ।मरीज में धीरें धीरें इम्प्रूवमेंट दिखाई देने लगता हैं।जीवक आयुर्वेदा क चिकित्सक की देख रेख में चिकित्सा करने पर सफल परिणाम मिलते हैं।


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सोराइसिस और एक्जिमा जैसे त्वचा रोग आयुर्वेद से होंगे छू मंतर

सोराइसिस (Psorisis) त्वचा का एक ऐसा रोग है जो पूरे शरीर की त्वचा पर तेजी से फैलता है। इसमें त्वचा में जलन होती है और सारी त्वचा लाल हो जाती है। त्वचा पर छोटे या बड़े आकार के धब्बे हो जाते हैं जो छोटे छोटे धब्बों से मिलकर बने होते हैं। इनमें शुरुआत मे प्रायः पस (PUS) होता है जो बाद में सूख जाता है। इन धब्बों/चकतों का रंग गुलाबी या चमकदार सफ़ेद होता है जो पुराना होने पर राख़ के रंग जैसा काला हो जाता है।
ये चकत्ते 2 मिलीमीटर से 1 सेंटीमीटर तक के होते हैं। सोराइसिस (Psorisis) प्रायः हाथ की हथेलियों और पैर की पगतलियों से शुरू होता है। सोराइसिस में त्वचा में जलन होती है। ऐसा लगता है कि जैसे कोई बिच्छू का डंक लगा हो। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इसे आटो इम्यून डीजीज (Auto Immune Disease) माना गया है। इस तरह के रोगों में शरीर का रक्षा तंत्र (श्वेत रक्त कणिकाएं) शरीर पर ही हमला कर देता है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इस रोग का कोई भी स्थायी इलाज नहीं है केवल स्टीरायड्स (Steroids) (ग्लूकोकोर्टिकायड) द्वारा इसके लक्षणों में आराम पहुंचाया जाता है। जब भी रोगी को परेशानी जैसे जलन, खुजली आदि बढ़ती तो रोगी को केनकोर्ट का इन्जैकशन लगाया जाता है।  लेकिन आयुर्वेद में इसका ईलाज 100% सम्भव है आत्मविश्वास, धर्य और परहेज का पालन जरुरी है।

एक्जिमा (Eczema) भी त्वचा का जटिल रोग है। त्वचा में जलन, दर्द व लाली दिखाई देती है जो कुछ दिन बाद कालिमा में बादल जाती है। एक्जिमा की शुरुआत त्वचा के मोड़ों जैसे कुहनी, गर्दन का पिछला भाग पैर का ऊपरी भाग, हथेली के पिछले हिस्से और घुटनों के नीचे वाले हिस्सों से होती है। एक्जिमा में छोटी, छोटी लाल रंग की फुंसिया निकलती हैं और बाद में काली हो जाती हैं। एक्जिमा में भी केवल स्टीरायड(Steroids) वर्ग की दवाइयाँ दी जाती हैं। ये भी आटो इम्यून डीजीज(Auto Immune Disease) है।

आयुर्वेद और सोराइसिस

आयुर्वेद में त्वचा के सभी रोगों को कुष्ठ नाम से कहा गया है। चरक संहिता मे लिखा है – स्पर्श इंद्रिय (त्वचा) को विकृत करने वाले रोग का नाम कुष्ठ है सोराइसिस को विसर्प कुष्ठ कहा गया है। सुश्रुत संहिता निदान में कहा गया है “त्वचा, रक्त, मांस को दूषित करके शीघ्र ही फैलता है इसमें बैचैनी, जलन, दर्द (जैसे काँटा चुभनाया मधुमक्खी के डंक की तरह दर्द) और त्वचा के स्पर्शज्ञान (Feeling) का कम होना आदि लक्षण पाए जाते हैं उसे विसर्प कुष्ठ कहते हैं”

आयुर्वेद में एक्जिमा

आयुर्वेद में एक्जिमा को चर्मदल कहा गया है। चरक संहिता चिकित्सा स्थान, अध्याय 7 श्लोक 24 में लिखा है – जिस चर्म रोग में त्वचा में लाल रंग दिखाई दे, खुजली हो रही हो, फफोले निकले हों, वेदना (त्वचा के जिस हिस्से मे एक्जिमा है वहाँ पर दर्द) हो, ऊपर से त्वचा फटती हो और जिसमे स्पर्श (Feeling) सहन न होता हो अर्थात एक्जिमा के स्थान पर छूने से भी परेशानी हो उसे चर्मदल कहते हैं।आयुर्वेद की द्रृष्टि से ये दोनों रोग वात पित्त के बढ़ाने से होते हैं दोनों के लक्षण कुछ हद तक समान है इसलिए इन दोनों की आधुनिक तथा आयुर्वेदिक चिकित्सा भी एक समान है।

परहेज

(किसी भी चर्म रोग मे ये चीजें छोड़ दे) मांस, दूध, दही, लस्सी, तेल (सरसों के तेल को छोड़ कर), कुलथी की दाल, उरद(माह) की दाल, सेम, ईख के बने पदार्थ (चीनी, गुड खांड, मिश्री आदि), पिट्ठी से बनी वस्तुएं जैसे दहीबड़ा, कचौरी आदि, खटाई जैसे इमली, नींबू, अमचूर, कांजी आदि, विरोधी भोजन (जैसे दूध के साथ नमक, खटाई, जामुन आम आदि, घी के ऊपर ठंडा पानी, पानी में शहद आदि), अध्यशन (पहले खाए हुए भोजन के न पचने पर भी भोजन या कुछ भी ऐसे ही खा लेना), अजीर्ण (अपच) में भोजन, खाना विदाही अर्थात जलन करने वाले भोजन जैसे:- लाल/हरी मिर्च, राई, अदरक, रायता, शराब/सिरका आदि, अभिष्यन्दी जैसे:- दही, खीर, बर्फी, आइसक्रीम आदि, दिन में सोना और रात में जागना छोड़ दे।इन परहेजों का सख्ती से पालन करें। दूध/दही और मीठा बिलकुल भी न खाए। अन्यथा कितनी ही दवा लेते रहो कोई भी फायदा नहीं होगा। कई वैद्य नमक बंद कहते हैं परंतु उसकी कोई जरूरत नहीं है। किसी के कहने पर चने को अधिक न खाए। चना अधिक खाने से शरीर में खून की कमी हो जाती है। काली मिर्च का प्रयोग करें। खटाई के लिए टमाटर, आवंला प्रयोग करें।  अगर आप इस रोग से पीड़ित हैं और थक चुके है दवाईयां खा-खाकर, और फ़िर भी आपको आराम नहीं मिल रहा तो घबराएं नहीं। आयुर्वेद में इसका स्थायी इलाज है। जीवक आयुर्वेदा चर्म रोगों के इलाज़ आयुर्वेदिक द्वाईयों(Handmade Ayurvedic Medicines) एवं पंचकर्म विधि से करता हैं, जिसके अच्छे परिणाम देखे गए हैं। अतिरिक्त जानकारी के लिए आप हमें सम्पर्क कर सकते हैं, हमारे फ़ोन नम्बर वैबसाइट पर उपलब्ध हैं।


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गॉलब्लैडर (पित्ताशय) और बाईल डक्ट कैंसर

Gall-Bladderगॉलब्लैडर कैंसर देश में एक गंभीर समस्या बना हुआ है, गॉलब्लैडर कैंसर पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में अधिक होता है। दरअसल पित्ताशय की पथरी वाले लोगों में गॉलब्लैडर कैंसर या बाईल डक्ट कैंसर होने का जोखिम अधिक होते हैं। बाईल डक्ट कैंसर के मामले एशिया में सबसे अधिक पाए जाते हैं। ये लिवर फ्ल्यूहक पैरासाईट, स्लेरोसिंग कोलेनजाईटिस, अल्सिरेटिव कोलाईटिस और साइरोसिस तथा सिरोसिस संक्रमणों से जुड़े होते हैं। कैसे पहचाने गॉलब्लैडर कैंसर और क्या है इसका कारक इस बारे में जानकारी दे रहे हैं जीवक आयुर्वेदा के निदेशक टी के श्रीवास्तव।

पेट के ऊपरी हिस्से में यकृत के नीचे मौजूद पित्ताशय अर्थात गॉलब्लैडर एक छोटा, नाशपाती के आकार के अंग होता है, इसकी कोशिकाओं में अनियंत्रित बढ़त होने पर यह गॉलब्लैडर पित्ताशय और बाईल डक्ट कैंसर बन जाता है।

पित्ताशय के कैंसर के सामान्य लक्षण

पेट दर्द: पित्ताशय के कैंसर में अधिकांश लोगों को पेट के ऊपरी दाहिने हिस्से में दर्द होता है। यदि पित्त की पथरी या कैंसर पित्त नली (ब्लाॅक) को अवरुद्ध कर रहा है तो तेज दर्द हो सकता हैं।

मतली या उल्टी: पीलिया: पित्ताशय के कैंसर से ग्रसित 50% व्यक्तियों में पीलिया होता है।
पीलिया मे त्वचा और आँखो का सफेद हिस्सा पीला हो जाता है। पीलिया रक्त में बिलिरूबिन (एक रसायन जो पित्त को पीला रंग देता है) के संचयन होने के कारण होता है। पित्त जिगर से आँतो में प्रवाह नही कर पाता। इस वजह से बिलिरूबिन रक्त व उत्तकों में जमा हो जाता हैं। यह खुजली, पीला मूत्र या हल्के रंग का मल जैसे लक्षण पैदा कर सकता है। पीलिया होने का यह मतलब नहीं की आपको पित्ताशय का कैंसर है। पीलिया का एक और आम कारण जिगर में एक वायरस संक्रमण (हैपेटाइटिस) है। लेकिन अगर पीलिया जी.बी.सी के कारण है, तो यह कैंसर के एक उन्नत चरण को इंगित करता है।
पेट में गाँठ: यदि कैंसर का विकास पित्त नलिकाओं को अवरुद्ध कर देता है तो पित्ताशय की थैली का आकार अपने सामान्य आकार से बड़ा हो जाता है। यह पेट के दाहिने हिस्से में एक गाँठ के रूप में उभर सकता है।

जीवनशैली सम्बंधित कारक

मोटापा- अत्यधिक मोटापा विभिन्न तरह के कैंसर के खतरे को बढ़ा देता है जिनमें पित्ताशय का कैंसर भी शामिल है। मोटापे का सीधा संबंध पित्ताशय के कैंसर से है। मोटापे संबंधी कैंसरो से महिलाओं में गर्भाशय का कैंसर और पुरुषों में लिवर कैंसर पहले स्थान पर है और पित्ताशय का कैंसर दूसरे स्थान पर हैं। मोटापा पित्त की पथरी के लिये जोखिम कारक है जिसका पित्ताशय के कैंसर से सीधा संबंध है। ऐसा अनुमान है कि पुरुषो में दस में से एक एवं महिलाओं में पाँच में से एक पित्ताशय के कैंसर का सीधे मोटापे से संबंध है।
आहार: आहार में प्रोटीन और वसा की अधिकता तथा सब्जियों, फलों व फाइबर की कम मात्रा जी.बी.सी के लिये एक जोखिम कारक है।

आयुर्वेद में है इसका इलाज़

आयुर्वेद में रस रसायन का उपयोग कर गॉलब्लैडर कैंसर को पूर्णतः समाप्त किया जा सकता है, जीवक आयुर्वेदा में गॉलब्लैडर कैंसर के विभिन्न मरीजों का इलाज़ हुआ है। बिभिन्न प्रकार के रस रसायन एवं पंचकर्मा विधि का उपयोग कर गॉलब्लैडर कैंसर का इलाज़ सम्भव हुआ है।


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इस बार होली में घर पर बनायें प्राकृतिक रंग

natural-colorहोली जैसे जैसे नज़दीक आ रही है, वैसे वैसे सभी लोग होली की तैयारी शुरू कर देते हैं। होली पर क्या क्या करना है ? कौन से कपड़े पहने, कौन से गाने पर धमाल करें और किस रंग से अपनों को रंग कर प्यार का ख़ास इज़हार करें।

होली के दिन पास आते ही सबके ज़ुबान पर एक ही बात आ जाती है –“बुरा न मानो होली है”। लेकिन कोई वाक़ई बुरा न माने इसके लिए आपने क्या तैयारियाँ की हैं?

क्या आपने प्राकृतिक रंग बना लिए हैं ताकि सुरक्षित होली खेल सकें? अब आपके मन में सवाल उठ रहे होंगे – प्राकृतिक रंग, वो क्या होते हैं?

जो रंग हम अभी तक खेलते आये हैं उन रंगों में क्या बुराई है?

इन सभी सवालों का जबाब दे रहे हैं जीवक आयुर्वेदा के निदेशक टी के श्रीवास्तव ।

आजकल प्रयोग होने वाले केमिकल वाले रंग त्वचा और स्वास्थ्य दोनों को बेहद नुक़सान पहुँचाते हैं।

हरे रंग में कॉपर सल्फ़ेट होता है जो आँखों के लिए बहुत ही ख़तरनाक होते हैं, यहाँ तक कि मनुष्य अंधेपन का शिकार हो सकता है।

सिल्वर रंग में एल्युमिनियम ब्रोमाइड होता है जो कैंसर का कारण बन सकता है।

लाल रंग में मरकरी सल्फ़ाइट होता है जो त्वचा के लिए तो बहुत ही हानिकारक होता है।

बैंगनी रंग में क्रोमियम आयोडाइड होता है जो एलर्जी और दमा के रोगी के लिए बहुत ही ख़तरनाक हो सकता है।

जिससे होली यानि रंगों का त्योहार ख़ुशी का कारण न बनकर दुख का कारण भी बन सकता है।
होली को ख़ुशी और प्यार से अपनों के साथ मनाने के लिए इस होली पर आप सभी प्राकृतिक रंगों का प्रयोग करें। अबकि होली पर मिलकर ख़ूब धमाल मचाएं। होली खेलने के लिए प्राकृतिक रंग आप घर पर भी बना सकते हैं। कैसे – आइए जानते हैं?

नारंगी रंग

– नारंगी रंग बनाने के लिए टेसू या पलाश के फूल को पीसकर उसको पानी में मिला दें।
– नारंगी रंग का गुलाल बनाने के लिए पलाश के फूल का पाउडर चंदन के पाउडर में मिला दें। इस रंग से सभी के गालों पर प्यार की मिठास छोड़ दें।

पीला रंग

– पीला रंग बनाने के लिए हल्दी को पानी में मिला दें या फिर गेंदें के फूल को पीसकर पानी में मिला दें। यह रंग रूप में निखार भी लाता है और होली के रंग का आनंद भी प्रदान करता है।

– पीला गुलाल बनाने के लिए हल्दी को उसके दुगुने मात्रा में बेसन के साथ मिला दें। अगर बेसन न हो तो उसके स्थान पर आप हल्दी को मुल्तानी मिट्टी के साथ मिला सकते हैं। दोनों त्वचा के लिए बेहद लाभकारी है।

नीला रंग

– नीले गुड़हल के फ़ूल को पीसकर इसे पानी में मिलाकर नीला रंग बना लें।
– नीला गुलाल बनाने के लिए नीले गुड़हल के फ़ूल को सुखाकर और इसको पीस कर पाउडर बना लें।

लाल रंग

– चुकन्दर, अनार के छिलके, टमाटर या गाजर को पीसकर पानी में मिला दें और इस होली में अपने प्यार को लाल रंग से रंगकर प्यार का इज़हार भी कर दें।
– लाल रंग का गुलाल बनाने के लिए गुलाब की पंखुड़ियों या लाल चंदन को पीसकर लाल गुलाल बना सकते हैं।

हरा रंग

– आप धनिया या पालक के पत्ते को पीसकर पानी में मिला दें और होली में नैचुरल हरे रंग से सभी को इस रंग में सराबोर कर दें।

– हरा गुलाल बनाने के लिए मेंहदी के पाउडर को समान मात्रा में आटे के साथ मिला दें। यह बालों के लिए लाभप्रद है।

बैंगनी रंग

– चुकंदर को बारीक़ काट लें और रात भर पानी में भिगोकर रख दें। अगले दिन सुबह इसे उबाल कर छान लें और इसका रस निकाल लें। इस रस को पानी में मिलाकर सुंदर बैंगनी रंग से नैचुरल बैगनी रंग से होली खेलने का आनंद लें।

– बैगनी रंग के लिए आप जामुन को पीस लें और इसे पानी में मिला दें।

काला रंग

– काले रंग के अंगूर के बीज को निकालकर अच्छी तरह से पेस्ट बना लें। फिर इसको पानी में अच्छी तरह से मिला लें।

इन प्राकृतिक रंगों से आप सुरक्षित होली मनाएँ। दोस्तों होली का ये प्यारा त्योहार आप सबके जीवन में कई सारे प्यार के रंग और ख़ुशियाँ भर दे।


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वसंत ऋतु में कैसी हो आपकी ऋतुचर्या

basantबसंत ऋतु में कैसा हो आपका खान पान बता रहे हैं बता रहे हैं जीवक आयुर्वेदा के निदेशक टी के श्रीवास्तव 

वसंत ऋतु में आयुर्वेद ने खान-पान में संयम की बात कहकर व्यक्ति एवं समाज की नीरोगता का ध्यान रखा है। इस ऋतु में लाई, भूने हुए चने, ताजी हल्दी, ताजी मूली, अदरक, पुरानी जौ, पुराने गेहूँ की चीजें खाने के लिए कहा गया है। इसके अलावा मूँग बनाकर खाना भी उत्तम है। नागरमोथ अथवा सोंठ डालकर उबाला हुआ पानी पीने से कफ का नाश होता है। मन को प्रसन्न करें एवं हृदय के लिए हितकारी हों ऐसे आसव, अरिष्ट जैसे कि मध्वारिष्ट, द्राक्षारिष्ट, गन्ने का रस, सिरका आदि पीना लाभदायक है। वसंत ऋतु में आने वाला होली का त्यौहार इस ओर संकेत करता है कि शरीर को थोड़ा सूखा सेंक देना चाहिए जिससे कफ पिघलकर बाहर निकल जाय। सुबह जल्दी उठकर थोड़ा व्यायाम करना, दौडऩा अथवा गुलाटियाँ खाने का अभ्यास लाभदायक होता है। मालिश करके सूखे द्रव्य आँवले, त्रिफला अथवा चने के आटे आदि का उबटन लगाकर गर्म पानी से स्नान करना हितकर है।

इस ऋतु में कड़वे नीम में नयी कोंपलें फूटती हैं। नीम की 15-20 कोंपलें 2-3 काली मिर्च के साथ चबा-चबाकर खानी चाहिए। 15-20 दिन यह प्रयोग करने से वर्षभर चर्मरोग, रक्तविकार और ज्वर आदि रोगों से रक्षा करने की प्रतिरोधक शक्ति पैदा होती है एवं आरोग्यता की रक्षा होती है। इसके अलावा कड़वे नीम के फूलों का रस 7 से 15 दिन तक पीने से त्वचा के रोग एवं मलेरिया जैसे ज्वर से भी बचाव होता है। धार्मिक ग्रंथों के वर्णनानुसार चैत्र मास के दौरान अलौने व्रत (बिना नमक के व्रत) करने से रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है एवं त्वचा के रोग, हृदय के रोग, उच्च रक्तचाप (हाई बी.पी.), गुर्दा (किडनी) आदि के रोग नहीं होते।

वसंत ऋतु दरअसल शीत और ग्रीष्म का सन्धिकाल होती है। सन्धि का समय होने से वसंत ऋतु में थोड़ा-थोड़ा असर दोनों ऋतुओं का होता है। प्रकृति ने यह व्यवस्था इसलिए की है ताकि प्राणीजगत शीतकाल को छोडऩे और ग्रीष्मकाल में प्रवेश करने का अभ्यस्त हो जाए। अत: वसंत ऋतु सन्तुलन बनाने की ऋतु है क्योंकि अब ऋतु परिर्वतन के कारण आहार विहार में परिर्वतन करना आवश्यक हो जाता है।

सम्भावित रोग

श्वास, खांसी, बदनदर्द, ज्वर, वमन, अरुचि, भारीपन, भूख कम लगना, कब्ज, पेट दर्द, कृमिजन्य विकार आदि होते हैं।

प्रयोग करें

  • शरीर संशोधन हेतु वमन, विरेचन नस्य, कुंजल आदि।
  • रूखा, कड़वा तीखा, कसैले रस वाले पदार्थों का सेवन।
  • सुबह खाली पेट बड़ी हरड़ का 3-4 ग्राम चूर्ण शहद के साथ रसायन के समान लाभ पहुंचाता है।
  • शुद्ध घी, मधु और दूध की असमान मात्रा में मिश्रण का सेवन करने से शरीर में जमा कफ बाहर निकल आता है।
  • एक वर्ष पुराना जौ, गेहुं व चावल का उपयोग करना उचित है।
  • इस ऋतु में ज्वर बाजरा मक्का आदि रूखे धानों का आहार श्रेष्ठ है।
  • मूंग, मसूर, अरहर, चना की दाल उपयोगी है।
  • मूली, घीया, गाजर, बथुआ, चौलाई ,परवल, सरसों, मैथी, पत्तापालक, धनिया, अदरक आदि का सेवन करना हितकर है।
  • हल्दी से पीला किया गया भोजन स्वास्थ के लिए बहुत उपयोगी होता है क्योंकि हल्दी भी कफनाशक है।
  • सूर्योदय से पूर्व उठकर शौचादि से निवृत होकर योगासन करना चाहिए।
  • तेल की मालिश करना उत्तम है।
  • प्रयोग न करें
  • नए- अन्न, शीतल, चिकनाई युक्त, भारी, खट्टे एवं मीठे द्रव्य, उड़द, आलू, प्याज, गन्ना, नए गुड़, भैंस का दूध व सिंघाड़े का सेवन मना है।
  • दिन में सोना, एक स्थान पर लम्बे समय तक बैठे रहना उचित नहीं है।
  • ठंडे पेय, आइसक्रीम, बर्फ के गोले चॉकलेट, मैदे की चीजें, खमीरवाली चीजें, दही आदि पदार्थ बिल्कुल त्याग देने चाहिए।
  • पचने में भारी पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • चावल खाना ही हो तो दिन में खाना चाहिए, रात में नहीं।

आयुर्वेद के अनुसार बसंत ऋतु में शरीर के श्रुतों ( बॉडी चैनेल्स ) की शुद्धि के लिए पंचकर्म चिकित्सा मुख्य रुप से वमन क्रिया उत्तम मानी जाती है। इस क्रिया के जरिये प्रकुपित कफ शरीर से बाहर निकलता है। पंचकर्म हमेशा आयुर्वेदिक चिकित्सा की देखरेख में ही करना चाहिए। इसके अलावा उदर्वतन (जड़ी बूटी के पावडर के मालिश) करना और गर्म पानी से गरारे करना भी कफ को कम करने में सहायक है।


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छोटे नींबू के लाभ बड़े

नींबू एक ऐसा फल है जिसकी खुशबू मात्र से ही ताजगी का अहसास होता है। नींबू का अनोखा गुण यह है कि इसकी खट्टी खुशबू खाने से पहले ही मुँह में पानी ला देती है। चाट हो या दाल कोई भी व्यंजन इसके प्रयोग से और भी सुस्वादु हो जाता है। यह फल खट्टा होने के साथ-साथ बेहद गुणकारी भी है। आइए जानते हैं इसके कुछ प्रयोगों के बारे में-

यह वजन कम करने में मददगार है

क्या आप जानते हैं कि यदि शरीर में संतुलन की कमी है तो वजन कम करना काफी मुश्किल भरा होता है। हैप्पी- हैल्दी बॉडी और तेज दिमाग वजन कम का सबसे अच्छा तरीका है। ज्यादा क्षारीय खाना आपको खुश रखता है और पोषाहार से सम्बंधित मैगजीन्स के अनुसार क्षारीय खाना खाने वाले लोग जल्दी वजन कम कर लेते हैं। इसके अलावा नींबू में पेक्टिन फाइबर होते हैं जो कि भूख बढ़ाने में मददगार हैं। अब तक आप समझ गए होंगे यदि नहीं तो हम आपको नींबू पानी के कुछ और फायदे बता रहे हैं।
1) कृमि रोग
10 ग्राम नींबू के पत्तों का रस (अर्क) में 10 ग्राम शहद मिलाकर पीने से 10-15 दिनों में पेट के कीड़े मरकर नष्ट हो जाते हैं। नींबू के बीजों के चूर्ण की फंकी लेने से कीड़ों का विनाश होता है।
2) शिरशूल
नींबू के पत्तों का रस निकालकर नाक से सूँघे जिसे व्यक्ति को हमेशा सिरदर्द बना रहता है, उसे भी इससे शीघ्र आराम मिलता है।
3) चेहरे की सुंदरता के लिए
10 ग्राम नींबू का रस 10 बूँद ग्लिसरीन तथा 10 ग्राम गुलाबजल इन तीनों को मिलाकर रख लें। यह एक प्रकार से लोशन सा तैयार हो जाएगा। इस लोशन को प्रतिदिन सुबह स्नान के पश्चात तथा रात्रि सोने के पूर्व हल्के-हल्के मलने से चेहरा रेशम की तरह कोमल बन जाएगा।
नींबू के रस में बराबर की मात्रा में गुलाबजल मिलाकर चेहरे पर लगाएँ। आधे घंटे बाद ताजे जल से धो लें। चेहरे पर मुँहासे बिल्कुल साफ हो जाएँगे। यह प्रयोग करीब 10-15 दिनों तक करें।
4) जीभ विकार
नींबू के रस में थोड़ा सेहुड़ का दूध मिलाकर मुख में लगाने से जीभ के समस्त प्रकार के विकार मिट जाते हैं।
5) नकसीर
ताजे नींबू का रस निकालकर नाक में पिचकारी देने से नाक से खून गिरता हो, तो बंद हो जाएगा।
6) तृष्णा
किसी कारण से प्यास लगती हो, तो नींबू चूसने या शिकंजी पीने से तुरंत प्यास बंद हो जाती है। इसे तेज बुखार में दिया जा सकता है।
7) बालों का झड़ना व रूसी
नींबू के रस में दो गुना नारियल का तेल मिलाकर हल्के हाथों से सिर पर मालिश करने से बाल झड़ना बंद हो जाते है व बाल मुलायम भी हो जाते है तथा रूसी से मुक्त हो जाते हैं। यदि सिर में रूसी हो, तो नींबू के रस में नारियल का तेल मिलाकर रात को सिर में मलने से और सुबह गुनगुने जल और अरीठे के पानी से सिर धोएँ। 2-4 बार यह क्रिया करने से खुश्की नष्ट हो जाती है।
8) मिर्गी
चुटकी भर हींग को नींबू में मिलाकर चूसने से मिर्गी रोग में लाभ होगा।
9) पायरिया
नींबू का रस व शहद मिलाकर मसूड़ों पर मलते रहने से रक्त व पीप आना बंद हो जाएगा।
10) दाँत व मसूड़ों का दर्द
दाँत दर्द होने पर नींबू को चार टुकड़ों में काट लीजिए, इसके पश्चात ऊपर से नमक डालकर एक के बाद एक टुकड़ों को गर्म कीजिए। फिर एक-एक टुकड़ा दाँत व दाढ़ में रखकर दबाते जाएँ व चूसते जाएँ, दर्द में काफी राहत महसूस होगी। मसूड़े फूलने पर नींबू को पानी में निचोड़ कर कुल्ले करने से अत्यधिक लाभ होगा।
11) दाँतों की चमक
नींबू के रस व सरसों के तेल को मिलाकर मंजन करने से दाँतों की चमक निखर जाएगी।

12) हिचकी
एक चम्मच नींबू का रस व शहद मिलाकर पीने से हिचकी बंद हो जाएगी। इस प्रयोग में स्वादानुसार काला नमक भी मिलाया जा सकता है।

13) खुजली
नींबू में फिटकरी का चूर्ण भरकर खुजली वाले स्थान पर रगड़ने से खुजली समाप्त हो जाएगी।

14) जोड़ों का दर्द
इस दर्द में नींबू के रस को दर्द वाले स्थान पर मलने से दर्द व सूजन समाप्त हो जाएगी।

15) पीड़ा रहित प्रसव
यदि गर्भधारण के चौथे माह से प्रसवकाल तक स्त्री एक नींबू की शिकंजी नित्य पीए तो प्रसव बिना कष्ट संभव हो सकता है।

16) मूत्रावरोध
नींबू के बीजों को महीन पीसकर नाभि पर रखकर ठंडा पानी डालें, रुका हुआ पेशाब खुलकर व साफ आ जाता है।

17) तपेदिक
नींबू के 25 ग्राम रस में 11 तुलसी के पत्ते तथा जीरा, हींग व नमक स्वादानुसार इन सबको गर्म पानी में मिलाकर पीने से तपेदिक रोग में लाभ होगा।

18) साँस फूलना
नींबू के रस में शहद मिलाकर चाटने से काफी राहत महसूस होगी।

 


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