सर्दियों में रहें स्वस्थ, ऐसे रखें परिवार का ख्याल

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सर्दियों में रहें स्वस्थ, ऐसे रखें परिवार का ख्याल

सर्दियों (Winter) का मौसम अपने साथ सर्दी, फ्लू और माइक्रोबियल संक्रमण जैसी बीमारियों को लेकर आता है, ऐसे में इम्युनिटी को मजबूत रखना बहुत जरूरी है! इसलिए इस मौसम में, सभी महत्वपूर्ण पोषक तत्वों से भरपूर पौष्टिक फूड्स को डाइट में शामिल करें! आइए जानें सर्दियों के मौसम में आप कौन से फूड्स डाइट में शामिल (Food Tips) कर सकते हैं!

जड़ों वाली सब्जियां

जड़ों ली सब्जियां जैसे गाजर, शकरकंद, मूली, चुकंदर सहज रूप से गर्म होती हैं| इन सब्जियों को पाचन की प्रक्रिया के दौरान अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है| इससे शरीर के तापमान में वृद्धि होती है| इसके अलावा वे विटामिन, मिनरल और फाइबर में भी उच्च हैं|

हरी पत्तेदार सब्जियां

सर्दी के मौसम में हरी पत्तेदार सब्जियां ताजी मिलती हैं| ये विटामिन, मिनरल, एंटीऑक्सीडेंट और फाइबर से भरपूर होती है| ये बीमार होने के जोखिम को कम करने में मदद करते हैं, ब्लड सर्कुलेशन में सुधार करते हैं और ब्लड शुगर के लेवल को नियंत्रित करने में मदद करते हैं| इसलिए अधिक मात्रा में इनका सेवन करें|

दाल

दाल से बने व्यंजन जैसे खिचड़ी, दाल का सूप, मूंग दाल का हलवा सर्दियों में प्रोटीन, फाइबर और मिनरल से भरपूर व्यंजन हैं|

मसाले

काली मिर्च, मेथी, अजवाइन, अदरक, लहसुन, जीरा जैसी जड़ी-बूटियां और मसाले खांसी और फ्लू से लड़ने में मदद करते हैं| ये भूख और पाचन को उत्तेजित करते हैं और ब्लड सर्कुलेशन में सुधार करते हैं| आयुर्वेद के अनुसार तुलसी शरीर को सभी श्वसन विकारों से लड़ने में मदद करती है और ये एक एंटीसेप्टिक और रोगाणुरोधी एजेंट भी है| इसी तरह, हल्दी में पाया जाने वाला एक सक्रिय तत्व करक्यूमिन एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट है और ऑक्सीडेटिव क्षति से लड़ने में मदद करता है एवं हमारी इम्युनिटी को बढ़ाता है| लहसुन में एलिसिन होता है, इसमें इम्युनिटी बढ़ाने, जीवाणुरोधी और एंटीवायरल गुण होते हैं|

फलों का सेवन

सर्दियों के दौरान संतरे, नींबू और अमरूद जैसे खट्टे फलों से परहेज करने के बारे में एक आम मिथक है क्योंकि इन्हें ठंडा माना जाता है. इससे खांसी और सर्दी हो सकती है| प्रतिदिन दो फल लेने की आदत डालें|

रागी और बाजरा

रागी और बाजरे से बनी रोटी काम्प्लेक्स कार्ब्स, फाइबर और मैग्नीशियम जैसे मिनरल प्रदान करते हैं| ये हाई ब्लड प्रेशर और दिल के दौरे जैसे हृदय रोगों को रोकने में मदद करते हैं जिनकी घटना सर्दियों के दौरान अधिक होती है|

सूखे मेवे और बीज

तिल, मूंगफली, बादाम, खजूर, मेथी के बीज जैसे मेवा और तिलहन प्रोटीन, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन और फाइबर से भरपूर होते हैं. तिलचिक्की, मूंगफली के लड्डू और खजूर की बर्फी जैसे फूड्स इम्युनिटी को बढ़ाते हैं| ये मेटाबॉलिज्म को तेज करते हैं|

हाइड्रेटेड रहें

गर्म रहने के लिए हाइड्रेटेड रहें| पानी आपके आंतरिक तापमान को नियंत्रित करने में मदद करता है| प्यास न लगने पर भी सही मात्रा में पानी पिएं|

घी

आयुर्वेद चावल और खिचड़ी और यहां तक ​​कि सर्दियों की मिठाइयों में घी डालने की सलाह देता है क्योंकि ये पाचन में मदद करता है और शरीर को हेल्दी फैट प्रदान करता है|


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लकवा का इलाज होगा आयुर्वेद से सम्भव

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  • क्या है लकवा ? (What is the paralysis?)

 

  • पैरालिसिस जिसे हम लकवा से भी जानते है ये बीमारी से शरीर की शक्ति कम हो जाती है उस मरीज को घुमाना -फिराना मुश्किल हो जाता है. लकवा तब होता है जब अचानक दिमाग में लोही (ब्लड) पहोचना बंध या फिर दिमाग की कोई लोही की नली फट जाती है और मस्तिष्क की कोशिकओं के आस पास की जगह पर खून जम जाता है. क्या आप जानते है की लकवा किस-किस को हो सकता है किसी को भी ये बीमारी हो सकती है परंतु जयादा इस रोग आदमिमे दिखाई देता है और ५५ साल की उम्र में ये बीमारी ज्यादा नजर में आती है यह आधे चेहरे पर ही अपना असर दिखाती है . लेकिन तुरंत इलाज के द्वारा इस बीमारी से बच सकते है .लकवा (Paralysis) एक गंभीर बीमारी है। इस बीमारी में शरीर का कोई विशेष हिस्सा या आधा शरीर निष्क्रिय व चेतनाहीन हो जाता है। यह बीमारी प्राय: वृद्धावस्था में अधिक होती है।

कारण-: मॉससपेशियों की दुर्बलता, नाड़ियों की कमजोरी तथा बढ़ता हुआ रक्तचाप इस रोग के प्रमुख कारण हैं। जो व्यक्ति अधिक मात्रा में गैस पैदा करनेवाले पदार्थों का सेवन करते हैं, अव्यवस्थित व अत्यधिक संभोग करते हैं, विषम आहार का सेवन करते हैं, ज्यादा व्यायाम करते हैं उन्हें भी यह रोग चपेट में ले लेता है। इसके अलावा उल्टी या दस्तों का अधिक होना, मानसिक दुर्बलता, अचानक शॉक लगने आदि कारणों से भी पक्षाघात या लकवा हो जाता है।

लक्षण:- लकवा आधे शरीर की नाड़ियों व नसों को सुखाकर रक्त संचरण में व्यापक बाधा पहुंचा देता है। इसके कारण शरीर की संधियों तथा जोड़ों में शिथिलता आ जाती है। ग्रसित अंग स्वयं उठ नहीं पाते, भार उठाने तथा चलने की क्षमता पूर्णत: समाप्त हो जाती है। यदि मुंह लकवाग्रस्त हो जाए तो मुंह के अंग भी स्थिर हो जाते हैं, गरदन एक तरफ झुक जाती है, बोलने की शक्ति नष्ट हो जाती है, आखों में दर्द व फड़कन आ जाती है। शरीर में कपकपी होने लगती है। व्यक्ति कुरूप दिखने लगता है।•.

बोलने में तकलीफ. • शरीर सुना सुना लगे. • आँख में धुंधला दिखाई दे. • सिर में दर्द होना. • बेहोश होना. • बाएं पैर या बाएं हाथ से काम न कर पाना. • यादशक्ति कमजोर होना.

  •  ज्यादातर मरीजों को धमनियों में खराबी की वजह से इस बीमारी का शिकार होते है .
  •  या फिर मस्तिष्क की कोई रक्त वहिका फैट जाती है , जिसके कारन रक्त सही तरीके से शरीर के अंगो तक नहीं पहुंच पता है .
  •  मस्तिष्क में अचानक रक्तस्त्राव होना जिसके कारन मरीज के हाथ पैर चलना बंद कर देते है .
  • पैरालिसिस शरीर के किसी भी भाग या मस्तिष्क में कैंसर होने के कारन भी लोग इस परेशानी से ग्रसित हो जाते है .जयादा इस रोग आदमिमे दिखाई देता है. काजूः लकवाग्रस्त व्यक्ति को काजू का भरपूर सेवन कराना चाहिए। । किशमिशः नियमित रूप से किशमिश के सेवन से इस रोग में काफी लाभ होता है।परहेज और आहार
  • लेने योग्य आहार
  • अखरोटः अखरोट के तेल की मालिश और सेमल के पत्तों का बफारा लेने से मुंह का लकवा जल्दी ठीक हो जाता है।
  • उपचार-: अंगूरः अंगूर के रस में बग्गूगोशा या नाशपाती का रस मिलाकर रोगी को नियमित रूप से दिन में दो बार पिलाएं|
  • विटामिन बी काम्प्लेक्स जैसे नायसिन और विटामिन बी12 युक्त भोज्य पदार्थ।
  • वसीय अम्ल युक्त आहार जैसे केले, फलियाँ, दालें, पोषक खमीर, आलू, कद्दू के बीजों का तेल, अखरोट, संतरे, हरी सब्जियाँ, और कम वसा युक्त दूध
  • इनसे परहेज करें
  • कम और बार-बार खाना और आहार की कम मात्रा।
  • वसायुक्त आहारबैठे हुए या लेटे हुए कमजोर अथवा लकवाग्रस्त शारीरिक हिस्सों को चलाना चाहिए।
  • घरेलू उपाय (उपचार)
  • योग और व्यायाम
  • सोने से पहले कुछ ग्लास पानी लेकर अपने शरीर के जलस्तर को बनाए रखें।
  • बिना अवरोध की पूरी नींद लें।
  • योग की खिंचाव वाली मुद्राएँ आपकी माँसपेशियों को आराम देने में सहायता करेगी।
  • ध्यान की सहायता से अपने शरीर को तनावमुक्त करें।
  •  लकवा का आयुर्वेदिक उपचार-
  •  खजूर खुछ दिन तक रोज दूध के साथ खाने से लकवा की बीमारी में फायदा होता है.
  • सूंठ उरद को पानीके साथ मिलकर पिने से थोड़ा गरम करके रोज पिने से लाभदायी है.
  •  नासपती, एप्पल,अंगूर इन सबका बराबर मात्र में जूस बनाकर देने से फायदा होता है ये कुछ दिनों उपाय नियत करने से लकवा की बीमारी दूर होती है.
  •  तुलसी के पत्ते लेकर उबालकर देने से लकवा के रोगी के अंग को बफ देने से लकवा ठीक होने लगता है.
  • योग से सब बीमारी से बच सकते है, प्राणायाम और कपालभाति करने से लाभदायी है.

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जानिए 10 बातें जिससे आप रहेंगे हमेशा स्वस्थ

अगर आप अपनी दिनचर्या में ये 10 चीजें शामिल कर लें तो दुनिया का कोई भी रोग आपको छू भी नहीं पायेगा. हृदय रोग, शुगर – मधुमेह, जोड़ों के दर्द, कैंसर, किडनी, लीवर आदि के रोग आपसे कोसों दूर रहेंगे. ऐसी ग़ज़ब हैं ये. आइये जानते हैं इनके बारे में|

1 छाछ

तेज और ओज बढ़ने के लिए छाछ का निरंतर सेवन बहुत हितकर हैं। सुबह और दोपहर के भोजन में नित्य छाछ का सेवन करे। भोजन में पानी के स्थान पर छाछ का उपयोग बहुत हितकर हैं।

2 हरड़

हर रोज़ एक छोटी हरड़ भोजन के बाद दाँतो तले रखे और इसका रस धीरे धीरे पेट में जाने दे। जब काफी देर बाद ये हरड़ बिलकुल नरम पड़ जाए तो चबा चबा कर निगल ले। इस से आपके बाल कभी सफ़ेद नहीं होंगे, दांत 100 वर्ष तक निरोगी रहेंगे और पेट के रोग नहीं होंगे, कहते हैं एक सभी रोग पेट से ही जन्म लेते हैं तो पेट पूर्ण स्वस्थ रहेगा।

3 दालचीनी और शहद

सर्दियों में चुटकी भर दालचीनी की फंकी चाहे अकेले ही चाहे शहद के साथ दिन में दो बार लेने से अनेक रोगों से बचाव होता है।

4 मेथी

मेथीदाना पीसकर रख ले। एक चम्मच एक गिलास पानी में उबाल कर नित्य पिए। मीठा, नमक कुछ भी नहीं डाले इस पानी में। इस से आंव नहीं बनेगी, शुगर कंट्रोल रहेगी जोड़ो के दर्द नहीं होंगे और पेट ठीक रहेगा।

5 आंवला

किसी भी रूप में थोड़ा सा आंवला हर रोज़ खाते रहे, जीवन भर उच्च रक्तचाप और हार्ट फेल नहीं होगा, इसके साथ चेहरा तेजोमय बाल स्वस्थ और सौ बरस तक भी जवान महसूस करेंगे।

6 नाक में तेल

रात को सोते समय नित्य सरसों का तेल नाक में लगाये। और 5 – 5 बूंदे बादाम रोगन की या सरसों के तेल की या गाय के देसी घी की हर रोज़ डालें.

7 कानो में तेल

सर्दियों में हल्का गर्म और गर्मियों में ठंडा सरसों का तेल तीन बूँद दोनों कान में कभी कभी डालते रहे। इस से कान स्वस्थ रहेंगे।

8 सौंठ

सामान्य बुखार, फ्लू, जुकाम और कफ से बचने के लिए पीसी हुयी आधा चम्मच सौंठ और ज़रा सा गुड एक गिलास पानी में इतना उबाले के आधा पानी रह जाए। रात क सोने से पहले यह पिए। बदलते मौसम, सर्दी व् वर्षा के आरम्भ में यह पीना रोगो से बचाता हैं। सौंठ नहीं हो तो अदरक का इस्तेमाल कीजिये।

9 लहसुन की कली

दो कली लहसुन रात को भोजन के साथ लेने से यूरिक एसिड, हृदय रोग, जोड़ों के दर्द, कैंसर आदि भयंकर रोग दूर रहते हैं।

10 तुलसी और काली मिर्च

प्रात: दस तुलसी के पत्ते और पांच काली मिर्च नित्य चबाये। सर्दी, बुखार, श्वांस रोग, अस्थमा नहीं होगा। नाक स्वस्थ रहेगी।


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जानिए – आखिर क्यों होते हैं हम बीमार ?

आयुर्वेद की हमारे रोजमर्रा के जीवन, खान-पान तथा रहन-सहन पर आज भी गहरी छाप दिखाई देती है । आयुर्वेद की अद्भूत खोज है – ‘त्रिदोष सिद्धान्त’ जो कि एक पूर्ण वैज्ञानिक सिद्धान्त है और जिसका सहारा लिए बिना कोई भी चिकित्सा पूर्ण नहीं हो सकती । इसके द्वारा रोग का शीघ्र निदान और उपचार के अलावा रोगी की प्रकृति को समझने में भी सहायता मिलती है ।prakiti

त्रिदोष अर्थात् वात, पित्त, कफ की दो अवस्थाएं होती है –
1. समावस्था (न कम, न अधिक, न प्रकुपित, यानि संतुलित, स्वाभाविक, प्राकृत)
2. विषमावस्था (हीन, अति, प्रकुपित, यानि दुषित, बिगड़ी हुर्इ, असंतुलित, विकृत) ।

वास्तव में वात, पित्त, कफ, (समावस्था) में दोष नहीं है बल्कि धातुएं है जो शरीर को धारण करती है तभी ये दोष कहलाती है । इस प्रकार रोगों का कारण वात, पित्त, कफ का असंतुलन या दोष नहीं है बल्कि धातुएं है जो शरीर को धारण करती है और उसे स्वस्थ रखती है । जब यही धातुएं दूषित या विषम होकर रोग पैदा करती है, तभी ये दोष कहलाती है ।

अत: रोग हो जाने पर अस्वस्थ शरीर को पुन: स्वस्थ बनाने के लिए त्रिदोष का संतुलन अथवा समावस्था में लाना पड़ता है ।

स्वास्थ्य के नियमों का पालन न करने, अनुचित और विरूद्ध आहार-विहार करने, ऋतुचर्या-दिनचर्या, व्यायाम आदि पर ध्यान न देने तथा विभिन्न प्रकार के भोग-विलास और आधुनिक सुख-सुविधाओं में अपने मन और इन्द्रियों को आसक्त कर देने के परिणाम स्वरूप ये ही वात, पित्त, कफ, प्रकुपित होकर जब विषम अवस्था में आ जाते हैं जब अस्वस्थता की स्थिति रहती है।

अत: अच्छा तो यही है कि रोग हो ही नही । इलाज से बचाव सदा ही उत्तम है ।

रोगों पर आरम्भ से ध्यान न देने से ये प्राय: कष्टसाध्य या असाध्य हो जाते हैं । अत: साधारण व्यक्ति के लिए समझदारी इसी में है कि यह यथासंभव रोग से बचने का प्रयत्न करे, न कि रोग होने के बाद डॉक्टर के पास इलाज के लिए भागें ।

वात प्रकोप के लक्षण:

1 शरीर का रूखा-सूखा होना ।
2 धातुओं का क्षय होना या तन्तुओं के अपर्याप्त पोषण के कारण
3 शरीर का सूखा या दुर्बला होते जाना।
4 अंगों की शिथिलता, सुत्रता और शीलता।
5 अंगों में कठोरता और उनका जकड़ जाना।

पित्त प्रकोप के लक्षण:

1 शरीर में दाह (जलन)/आंखों में लालिमा और जलन। हृदय, पेट, अन्नतालिका, गले में जलन प्रतीत होना।
2 गर्मी का ज्यादा अनुभव होना।
3 त्वचा का गर्म रहना, त्वचा पर फोड़े-फुंसियों का निकालना और पकना।
4 त्वचा, मूल, मूत्र, नेत्र, आदि का पीला होना।
5 कंठ सूखना, कंठ में जलन, प्यास का अधिक लगना।
6 मुंह का स्वाद कड़वा होना, कभी-कभी खट्टा होना।
7 अम्लता का बढ़ना, खट्टी डकारें, गले में खट्टा-चरपरा पानी आना।
8 उल्टी जैसा अनुभव होना या जी मिचलाना, उल्टी के साथ सिरदर्द होना।
9 पतले दस्त होना।

कफ प्रकोप के लक्षण:

1 शरीर भारी, शीतल, चिकना और सफेद होना।
2 अंगों में शिथिलता व थकावट का अनुभव होना। आलस्य का बना रहना ।
3 ठंड अधिक लगना ।
4 त्वचा चिकनी व पानी में भिगी हुई सी रहना।
5 मुंह का स्वाद मीठा और चिकना होना। मुंह से लार गिरना।
6 भूख का कम लगना। अरुचि व मंदाग्नि।
7 मल, मूत्र, नेत्र ओर सारे शरीर का सफेद पड़ जाना। मल में चिकनापन और आंव का आना।


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