ठंड के मौसम में तिल जरूर खाएं, जानिए 7 बेहतरीन फायदे

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ठंड के मौसम में तिल जरूर खाएं, जानिए 7 बेहतरीन फायदे

  1. तिल में मोनो-सैचुरेटेड फैटी एसिड होता है जो शरीर से कोलेस्ट्रोल को कम करता है।
  2. तिल खाना दिल से जुड़ी बीमारियों के लिए भी यह बेहद फायदेमंद है।
  3. तिल में सेसमीन नाम का एन्टीऑक्सिडेंट पाया जाता है जो कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने से रोकता है।
  4. तिल में कुछ ऐसे तत्व और विटामिन पाए जाते हैं जो तनाव और डिप्रेशन को कम करने में मदद करते हैं।
  5. तिल में कैल्श‍ियम, आयरन, मैग्नीशियम, जिंक और सेलेनियम जैसे तत्व होते हैं, जो हृदय की मांसपेशि‍यों को सक्रिय रूप से काम करने में मदद करते हैं।
  6. तिल में डाइट्री प्रोटीन और एमिनो एसिड होता है जो बच्चों की हड्डियों के विकास में सहायक होता है।
  7. तिल का तेल त्वचा के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है। इसकी मदद से त्वचा को जरूरी पोषण मिलता है और इसमें नमी बरकरार रहती है।

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सर्दियों में रहें स्वस्थ, ऐसे रखें परिवार का ख्याल

सर्दियों (Winter) का मौसम अपने साथ सर्दी, फ्लू और माइक्रोबियल संक्रमण जैसी बीमारियों को लेकर आता है, ऐसे में इम्युनिटी को मजबूत रखना बहुत जरूरी है! इसलिए इस मौसम में, सभी महत्वपूर्ण पोषक तत्वों से भरपूर पौष्टिक फूड्स को डाइट में शामिल करें! आइए जानें सर्दियों के मौसम में आप कौन से फूड्स डाइट में शामिल (Food Tips) कर सकते हैं!

जड़ों वाली सब्जियां

जड़ों ली सब्जियां जैसे गाजर, शकरकंद, मूली, चुकंदर सहज रूप से गर्म होती हैं| इन सब्जियों को पाचन की प्रक्रिया के दौरान अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है| इससे शरीर के तापमान में वृद्धि होती है| इसके अलावा वे विटामिन, मिनरल और फाइबर में भी उच्च हैं|

हरी पत्तेदार सब्जियां

सर्दी के मौसम में हरी पत्तेदार सब्जियां ताजी मिलती हैं| ये विटामिन, मिनरल, एंटीऑक्सीडेंट और फाइबर से भरपूर होती है| ये बीमार होने के जोखिम को कम करने में मदद करते हैं, ब्लड सर्कुलेशन में सुधार करते हैं और ब्लड शुगर के लेवल को नियंत्रित करने में मदद करते हैं| इसलिए अधिक मात्रा में इनका सेवन करें|

दाल

दाल से बने व्यंजन जैसे खिचड़ी, दाल का सूप, मूंग दाल का हलवा सर्दियों में प्रोटीन, फाइबर और मिनरल से भरपूर व्यंजन हैं|

मसाले

काली मिर्च, मेथी, अजवाइन, अदरक, लहसुन, जीरा जैसी जड़ी-बूटियां और मसाले खांसी और फ्लू से लड़ने में मदद करते हैं| ये भूख और पाचन को उत्तेजित करते हैं और ब्लड सर्कुलेशन में सुधार करते हैं| आयुर्वेद के अनुसार तुलसी शरीर को सभी श्वसन विकारों से लड़ने में मदद करती है और ये एक एंटीसेप्टिक और रोगाणुरोधी एजेंट भी है| इसी तरह, हल्दी में पाया जाने वाला एक सक्रिय तत्व करक्यूमिन एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट है और ऑक्सीडेटिव क्षति से लड़ने में मदद करता है एवं हमारी इम्युनिटी को बढ़ाता है| लहसुन में एलिसिन होता है, इसमें इम्युनिटी बढ़ाने, जीवाणुरोधी और एंटीवायरल गुण होते हैं|

फलों का सेवन

सर्दियों के दौरान संतरे, नींबू और अमरूद जैसे खट्टे फलों से परहेज करने के बारे में एक आम मिथक है क्योंकि इन्हें ठंडा माना जाता है. इससे खांसी और सर्दी हो सकती है| प्रतिदिन दो फल लेने की आदत डालें|

रागी और बाजरा

रागी और बाजरे से बनी रोटी काम्प्लेक्स कार्ब्स, फाइबर और मैग्नीशियम जैसे मिनरल प्रदान करते हैं| ये हाई ब्लड प्रेशर और दिल के दौरे जैसे हृदय रोगों को रोकने में मदद करते हैं जिनकी घटना सर्दियों के दौरान अधिक होती है|

सूखे मेवे और बीज

तिल, मूंगफली, बादाम, खजूर, मेथी के बीज जैसे मेवा और तिलहन प्रोटीन, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन और फाइबर से भरपूर होते हैं. तिलचिक्की, मूंगफली के लड्डू और खजूर की बर्फी जैसे फूड्स इम्युनिटी को बढ़ाते हैं| ये मेटाबॉलिज्म को तेज करते हैं|

हाइड्रेटेड रहें

गर्म रहने के लिए हाइड्रेटेड रहें| पानी आपके आंतरिक तापमान को नियंत्रित करने में मदद करता है| प्यास न लगने पर भी सही मात्रा में पानी पिएं|

घी

आयुर्वेद चावल और खिचड़ी और यहां तक ​​कि सर्दियों की मिठाइयों में घी डालने की सलाह देता है क्योंकि ये पाचन में मदद करता है और शरीर को हेल्दी फैट प्रदान करता है|


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Paralysis (लकवा)

paralysis-treatment-250x250क्या है लकवा ? (What is the paralysis?)

पैरालिसिस जिसे हम लकवा से भी जानते है ये बीमारी से शरीर की शक्ति कम हो जाती है उस मरीज को घुमाना -फिराना मुश्किल हो जाता है. लकवा तब होता है जब अचानक दिमाग में लोही (ब्लड) पहोचना बंध या फिर दिमाग की कोई लोही की नली फट जाती है और मस्तिष्क की कोशिकओं के आस पास की जगह पर खून जम जाता है. क्या आप जानते है की लकवा किस-किस को हो सकता है किसी को भी ये बीमारी हो सकती है परंतु जयादा इस रोग आदमिमे दिखाई देता है और ५५ साल की उम्र में ये बीमारी ज्यादा नजर में आती है यह आधे चेहरे पर ही अपना असर दिखाती है . लेकिन तुरंत इलाज के द्वारा इस बीमारी से बच सकते है .लकवा (Paralysis) एक गंभीर बीमारी है। इस बीमारी में शरीर का कोई विशेष हिस्सा या आधा शरीर निष्क्रिय व चेतनाहीन हो जाता है। यह बीमारी प्राय: वृद्धावस्था में अधिक होती है।

कारण-: मॉससपेशियों की दुर्बलता, नाड़ियों की कमजोरी तथा बढ़ता हुआ रक्तचाप इस रोग के प्रमुख कारण हैं। जो व्यक्ति अधिक मात्रा में गैस पैदा करनेवाले पदार्थों का सेवन करते हैं, अव्यवस्थित व अत्यधिक संभोग करते हैं, विषम आहार का सेवन करते हैं, ज्यादा व्यायाम करते हैं उन्हें भी यह रोग चपेट में ले लेता है। इसके अलावा उल्टी या दस्तों का अधिक होना, मानसिक दुर्बलता, अचानक शॉक लगने आदि कारणों से भी पक्षाघात या लकवा हो जाता है।

लक्षण:- लकवा आधे शरीर की नाड़ियों व नसों को सुखाकर रक्त संचरण में व्यापक बाधा पहुंचा देता है। इसके कारण शरीर की संधियों तथा जोड़ों में शिथिलता आ जाती है। ग्रसित अंग स्वयं उठ नहीं पाते, भार उठाने तथा चलने की क्षमता पूर्णत: समाप्त हो जाती है। यदि मुंह लकवाग्रस्त हो जाए तो मुंह के अंग भी स्थिर हो जाते हैं, गरदन एक तरफ झुक जाती है, बोलने की शक्ति नष्ट हो जाती है, आखों में दर्द व फड़कन आ जाती है। शरीर में कपकपी होने लगती है। व्यक्ति कुरूप दिखने लगता है।

  1. बोलने में तकलीफ
  2. शरीर सुना सुना लगे
  3. आँख में धुंधला दिखाई दे
  4. सिर में दर्द होना
  5. बेहोश होना
  6. बाएं पैर या बाएं हाथ से काम न कर पाना
  7. यादशक्ति कमजोर होना

ज्यादातर मरीजों को धमनियों में खराबी की वजह से इस बीमारी का शिकार होते है

या फिर मस्तिष्क की कोई रक्त वहिका फैट जाती है , जिसके कारन रक्त सही तरीके से शरीर के अंगो तक नहीं पहुंच पता है

मस्तिष्क में अचानक रक्तस्त्राव होना जिसके कारन मरीज के हाथ पैर चलना बंद कर देते है

पैरालिसिस शरीर के किसी भी भाग या मस्तिष्क में कैंसर होने के कारन भी लोग इस परेशानी से ग्रसित हो जाते है .जयादा इस रोग आदमिमे दिखाई देता है

परहेज और आहार

लेने योग्य आहार

अखरोटः अखरोट के तेल की मालिश और सेमल के पत्तों का बफारा लेने से मुंह का लकवा जल्दी ठीक हो जाता है।

 काजूः लकवाग्रस्त व्यक्ति को काजू का भरपूर सेवन कराना चाहिए। । किशमिशः नियमित रूप से किशमिश के सेवन से इस रोग में काफी लाभ होता है।

अंगूरः अंगूर के रस में बग्गूगोशा या नाशपाती का रस मिलाकर रोगी को नियमित रूप से दिन में दो बार पिलाएं|

विटामिन बी काम्प्लेक्स जैसे नायसिन और विटामिन बी12 युक्त भोज्य पदार्थ।

वसीय अम्ल युक्त आहार जैसे केले, फलियाँ, दालें, पोषक खमीर, आलू, कद्दू के बीजों का तेल, अखरोट, संतरे, हरी सब्जियाँ, और कम वसा युक्त दूध

इनसे परहेज करें
  1. कम और बार-बार खाना और आहार की कम मात्रा।
  2. वसायुक्त आहारबैठे हुए या लेटे हुए कमजोर अथवा लकवाग्रस्त शारीरिक हिस्सों को चलाना चाहिए।
घरेलू उपाय (उपचार)
  1. योग और व्यायाम
  2. सोने से पहले कुछ ग्लास पानी लेकर अपने शरीर के जलस्तर को बनाए रखें।
  3. बिना अवरोध की पूरी नींद लें।
  4. योग की खिंचाव वाली मुद्राएँ आपकी माँसपेशियों को आराम देने में सहायता करेगी।
  5. ध्यान की सहायता से अपने शरीर को तनावमुक्त करें।

लकवा का आयुर्वेदिक उपचार-

  1.  खजूर खुछ दिन तक रोज दूध के साथ खाने से लकवा की बीमारी में फायदा होता है.
  2. सूंठ उरद को पानीके साथ मिलकर पिने से थोड़ा गरम करके रोज पिने से लाभदायी है.
  3.  नासपती, एप्पल,अंगूर इन सबका बराबर मात्र में जूस बनाकर देने से फायदा होता है ये कुछ दिनों उपाय नियत करने से लकवा की बीमारी दूर होती है.
  4.  तुलसी के पत्ते लेकर उबालकर देने से लकवा के रोगी के अंग को बफ देने से लकवा ठीक होने लगता है.
  5. योग से सब बीमारी से बच सकते है, प्राणायाम और कपालभाति करने से लाभदायी है

जीवक आयुर्वेदा लकवा का इलाज आयुर्वेदिक रस रसायन चिकित्सा एवं पंचकर्म चिकित्सा के द्वारा करता है. जीवक आयुर्वेदा के द्वारा लकवा के मरीजों को बहुत अच्छा लाभ हुआ है. इस  तरह के मरीज़ जीवक आयुर्वेदा में संपर्क करके उचित इलाज़ पा  सकते है.


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सोराइसिस और एक्जिमा जैसे त्वचा रोग आयुर्वेद से होंगे छू मंतर

सोराइसिस (Psorisis) त्वचा का एक ऐसा रोग है जो पूरे शरीर की त्वचा पर तेजी से फैलता है। इसमें त्वचा में जलन होती है और सारी त्वचा लाल हो जाती है। त्वचा पर छोटे या बड़े आकार के धब्बे हो जाते हैं जो छोटे छोटे धब्बों से मिलकर बने होते हैं। इनमें शुरुआत मे प्रायः पस (PUS) होता है जो बाद में सूख जाता है। इन धब्बों/चकतों का रंग गुलाबी या चमकदार सफ़ेद होता है जो पुराना होने पर राख़ के रंग जैसा काला हो जाता है।
ये चकत्ते 2 मिलीमीटर से 1 सेंटीमीटर तक के होते हैं। सोराइसिस (Psorisis) प्रायः हाथ की हथेलियों और पैर की पगतलियों से शुरू होता है। सोराइसिस में त्वचा में जलन होती है। ऐसा लगता है कि जैसे कोई बिच्छू का डंक लगा हो। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इसे आटो इम्यून डीजीज (Auto Immune Disease) माना गया है। इस तरह के रोगों में शरीर का रक्षा तंत्र (श्वेत रक्त कणिकाएं) शरीर पर ही हमला कर देता है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इस रोग का कोई भी स्थायी इलाज नहीं है केवल स्टीरायड्स (Steroids) (ग्लूकोकोर्टिकायड) द्वारा इसके लक्षणों में आराम पहुंचाया जाता है। जब भी रोगी को परेशानी जैसे जलन, खुजली आदि बढ़ती तो रोगी को केनकोर्ट का इन्जैकशन लगाया जाता है।  लेकिन आयुर्वेद में इसका ईलाज 100% सम्भव है आत्मविश्वास, धर्य और परहेज का पालन जरुरी है।

एक्जिमा (Eczema) भी त्वचा का जटिल रोग है। त्वचा में जलन, दर्द व लाली दिखाई देती है जो कुछ दिन बाद कालिमा में बादल जाती है। एक्जिमा की शुरुआत त्वचा के मोड़ों जैसे कुहनी, गर्दन का पिछला भाग पैर का ऊपरी भाग, हथेली के पिछले हिस्से और घुटनों के नीचे वाले हिस्सों से होती है। एक्जिमा में छोटी, छोटी लाल रंग की फुंसिया निकलती हैं और बाद में काली हो जाती हैं। एक्जिमा में भी केवल स्टीरायड(Steroids) वर्ग की दवाइयाँ दी जाती हैं। ये भी आटो इम्यून डीजीज(Auto Immune Disease) है।

आयुर्वेद और सोराइसिस

आयुर्वेद में त्वचा के सभी रोगों को कुष्ठ नाम से कहा गया है। चरक संहिता मे लिखा है – स्पर्श इंद्रिय (त्वचा) को विकृत करने वाले रोग का नाम कुष्ठ है सोराइसिस को विसर्प कुष्ठ कहा गया है। सुश्रुत संहिता निदान में कहा गया है “त्वचा, रक्त, मांस को दूषित करके शीघ्र ही फैलता है इसमें बैचैनी, जलन, दर्द (जैसे काँटा चुभनाया मधुमक्खी के डंक की तरह दर्द) और त्वचा के स्पर्शज्ञान (Feeling) का कम होना आदि लक्षण पाए जाते हैं उसे विसर्प कुष्ठ कहते हैं”

आयुर्वेद में एक्जिमा

आयुर्वेद में एक्जिमा को चर्मदल कहा गया है। चरक संहिता चिकित्सा स्थान, अध्याय 7 श्लोक 24 में लिखा है – जिस चर्म रोग में त्वचा में लाल रंग दिखाई दे, खुजली हो रही हो, फफोले निकले हों, वेदना (त्वचा के जिस हिस्से मे एक्जिमा है वहाँ पर दर्द) हो, ऊपर से त्वचा फटती हो और जिसमे स्पर्श (Feeling) सहन न होता हो अर्थात एक्जिमा के स्थान पर छूने से भी परेशानी हो उसे चर्मदल कहते हैं।आयुर्वेद की द्रृष्टि से ये दोनों रोग वात पित्त के बढ़ाने से होते हैं दोनों के लक्षण कुछ हद तक समान है इसलिए इन दोनों की आधुनिक तथा आयुर्वेदिक चिकित्सा भी एक समान है।

परहेज

(किसी भी चर्म रोग मे ये चीजें छोड़ दे) मांस, दूध, दही, लस्सी, तेल (सरसों के तेल को छोड़ कर), कुलथी की दाल, उरद(माह) की दाल, सेम, ईख के बने पदार्थ (चीनी, गुड खांड, मिश्री आदि), पिट्ठी से बनी वस्तुएं जैसे दहीबड़ा, कचौरी आदि, खटाई जैसे इमली, नींबू, अमचूर, कांजी आदि, विरोधी भोजन (जैसे दूध के साथ नमक, खटाई, जामुन आम आदि, घी के ऊपर ठंडा पानी, पानी में शहद आदि), अध्यशन (पहले खाए हुए भोजन के न पचने पर भी भोजन या कुछ भी ऐसे ही खा लेना), अजीर्ण (अपच) में भोजन, खाना विदाही अर्थात जलन करने वाले भोजन जैसे:- लाल/हरी मिर्च, राई, अदरक, रायता, शराब/सिरका आदि, अभिष्यन्दी जैसे:- दही, खीर, बर्फी, आइसक्रीम आदि, दिन में सोना और रात में जागना छोड़ दे।इन परहेजों का सख्ती से पालन करें। दूध/दही और मीठा बिलकुल भी न खाए। अन्यथा कितनी ही दवा लेते रहो कोई भी फायदा नहीं होगा। कई वैद्य नमक बंद कहते हैं परंतु उसकी कोई जरूरत नहीं है। किसी के कहने पर चने को अधिक न खाए। चना अधिक खाने से शरीर में खून की कमी हो जाती है। काली मिर्च का प्रयोग करें। खटाई के लिए टमाटर, आवंला प्रयोग करें।  अगर आप इस रोग से पीड़ित हैं और थक चुके है दवाईयां खा-खाकर, और फ़िर भी आपको आराम नहीं मिल रहा तो घबराएं नहीं। आयुर्वेद में इसका स्थायी इलाज है। जीवक आयुर्वेदा चर्म रोगों के इलाज़ आयुर्वेदिक द्वाईयों(Handmade Ayurvedic Medicines) एवं पंचकर्म विधि से करता हैं, जिसके अच्छे परिणाम देखे गए हैं। अतिरिक्त जानकारी के लिए आप हमें सम्पर्क कर सकते हैं, हमारे फ़ोन नम्बर वैबसाइट पर उपलब्ध हैं।


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अस्थमा से घबराएं नहीं, आयुर्वेद में है पूर्ण इलाज़

श्वसन नलिका में किसी संक्रमण और रोग के कारण खांसी आना और सांस लेने में तकलीफ़ होना, अस्थमा रोग (दमा रोग) कहलाता है। आपने किसी न किसी को सांस लेने में मुश्किल होने पर इंहेलर पम्प का इस्तेमाल करते देखा होगा। यह किसी भी उम्र में किसी को भी हो सकती है। इस बीमारी में श्वसन नलिका में अंदर की तरह सूजन आ जाती है। इस सूजन के कारण सांस की नली काफ़ी संवेदनशील हो जाती है। जिससे फेफड़ों में हवा कम पहुंचती है।
अस्थमा एक प्रकार की एलर्जी है, जिस कारण सांस लेने में तकलीफ़ हो जाती है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति सांस लेने में दिक़्क़त महसूस करता है, अक्सर उसकी सांस फूल जाती है या फिर सांस लेने में परेशानी होती है। अस्थमा रोग दो तरह का होता है – स्पेसिफ़िक और नॉनस्पेसिफ़िक ।

1. स्पेसिफ़िक इसमें किसी एलर्जी के कारण सांस फूलने लगती है।
2. नॉन स्पेसिफ़िक इसमें भारी काम करने पर, मौसम में बदलाव या फिर आनुवांशिक कारणों से समस्या होती है।

अस्थमा रोग के कारण

  •  मिलावटी खान पान और ग़लत आदतें
  •  तनाव, क्रोध या डर
  •  ब्लड में संक्रमण
  •  पालतू जानवरों से एलर्जी
  •  मद्यपान या मादक पदार्थों का सेवन
  • खांसी, जुकाम और नज़ला
  •  मिर्च मसालेदार चीज़ें खाना
  •  फेफड़े और आंतों की कमज़ोरी
  •  सांस की नली में धूल जाना या ठंड लगना
  •  मोटापा
  • अनुवांशिकता; परिवार में पहले किसी को दमा रोग हो
  • दवाइयों के प्रयोग से कफ़ सूख जाना
  • प्रदूषण
  • महिलाओं के हार्मोंस का बदलाव

अस्थमा रोग के लक्षण

  • सांस लेने में अत्यधिक परेशानी
  • बीमारी के चलते सूखी खांसी
  • सख़्त और बदबूदार कफ़
  • सांस लेते समय ज़ोर लगाने पर चेहरा लाल होना
  • छाती में जकड़न महसूस होना
  • ज़ोर ज़ोर सांस लेने के बाद थक जाना और पसीना आना

अस्थमा रोग में खान-पान

  • हल्का और जल्दी पचने वाला भोजन खाएँ
  • लौकी, तरोई, टिंडे, मेथी, अदरक और लहसुन को खाने में प्रयोग करें
  • मोटे पिसे आटे की बनी रोटियाँ और दलियाँ खाएँ
  • मुन्नका और खजूर खाएँ
  • गुनगुना पानी पिएँ

दमा का आयुर्वेदिक उपचार

आयुर्वेदिक दवाओं से इलाज करने के सबसे बड़ा फ़ायदा ये है कि इनके साइड इफ़ेक्ट नहीं होते हैं, और बीमारी का जड़ से इलाज होता है।

  • 2 चम्मच आंवले का पाउडर किसी कप में डालकर इसमें 1 चम्मच शहद अच्छे से मिक्स करें। हर दिन सुबह इसे खाने से अस्थमा कंट्रोल में रहता है।
  • दो तिहाई हिस्सा गाजर जूस और एक तिहाई हिस्सा पालक जूस, एक गिलास जूस पिएँ।
  • जौं, बथुआ, अदरक और लहसुन का सेवन अस्थमा के रोगी के लिए फायदेमंद है।

कहाँ करें उपचार

अस्थमा के उपचार के लिए आयुर्वेदिक इलाज़ बेहतर तरीका है, जीवक आयुर्वेदा में अस्थमा के मरीजों को अच्छा लाभ मिला है।  यदि मरीज़ को समय पर दवाओं से इलाज किया जाए तो इस  बीमारी का जड़ से इलाज सम्भव है।


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